आचार्य नरेंद्र देव की राष्ट्रीयता पर दृष्टि

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Narendra Dev
आचार्य नरेंद्रदेव (31अक्टूबर 1889 - 19 फरवरी 1956)

Parichay Das

— परिचय दास —

।। एक ।।

चार्य नरेंद्र देव का राष्ट्रीयता संबंधी दृष्टिकोण उनके समाजवादी आदर्श और भारतीय सभ्यता के प्रति गहन समझ से प्रभावित था। राष्ट्रीयता को वे एक ऐसे विचार के रूप में देखते थे जो केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक, सामाजिक और नैतिक मूल्यों का एक समग्र स्वरूप है। उनका मानना था कि भारत जैसे बहुसांस्कृतिक देश में, जहाँ विभिन्न जातियाँ, धर्म, भाषाएँ, और सांस्कृतिक परंपराएँ मौजूद हैं, राष्ट्रीयता का मतलब सभी को जोड़ने वाली एक साझा पहचान बनाना है। उनके विचारों में राष्ट्रीयता का एक गहन मानवीय और सह-अस्तित्व पर आधारित दृष्टिकोण है, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के सिद्धांतों पर आधारित है।

भारत की राष्ट्रीयता पर आचार्य नरेंद्र देव का दृष्टिकोण उस समय के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों और समाज सुधारकों से अलग था। उनके लिए राष्ट्रीयता केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं था, बल्कि एक ऐसा आंदोलन था जो भारतीय समाज में गहराई से व्याप्त असमानताओं और अन्याय का अंत कर सके। आचार्य नरेंद्र देव ने भारतीय समाज की विविधता को राष्ट्रीयता की जड़ माना और इस पर बल दिया कि भारत की वास्तविक राष्ट्रीयता तभी संभव है जब समाज के सभी वर्गों को, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या समुदाय से हों, समान अधिकार और मान्यता मिले। उनका मानना था कि एक मजबूत और समावेशी राष्ट्रीयता तभी विकसित हो सकती है, जब समाज के सभी हिस्से एक दूसरे के प्रति सम्मान, सहिष्णुता और समझ का भाव रखें।

आचार्य नरेंद्र देव का राष्ट्रीयता का विचार भारतीय सभ्यता के उस आदर्श पर आधारित था, जिसमें सह-अस्तित्व और बहुलता को महत्व दिया गया है। उनका मानना था कि भारतीय समाज ने सदियों से विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया है। उन्होंने इस विविधता को राष्ट्रीयता का एक प्रमुख आधार माना और इस पर बल दिया कि भारत की राष्ट्रीय पहचान इसी बहुलता में निहित है। उनके अनुसार, भारतीय राष्ट्रीयता का विकास केवल तभी संभव है जब यह समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं को स्वीकार कर सके। वे मानते थे कि भारतीय राष्ट्रीयता का मतलब केवल एकजुटता नहीं है, बल्कि एक ऐसा समावेशी दृष्टिकोण है जो विभिन्नताओं को साथ लेकर चल सके।

आचार्य नरेंद्र देव के अनुसार, भारत की स्वतंत्रता का असली अर्थ तभी साकार हो सकता है जब समाज के सभी वर्गों को समान रूप से इस स्वतंत्रता का अनुभव हो। उनके लिए राष्ट्रीयता का मतलब केवल विदेशी शासन से मुक्ति प्राप्त करना नहीं था, बल्कि समाज के भीतर भी सभी प्रकार की असमानताओं का अंत करना था। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि राष्ट्रीयता की सच्ची भावना का विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक समाज के भीतर जातिगत, धार्मिक और आर्थिक भेदभाव समाप्त नहीं हो जाते। उनके अनुसार, समाज में जितनी अधिक असमानताएँ होंगी, राष्ट्रीयता का विकास उतना ही मुश्किल होगा। उनका मानना था कि एक स्वस्थ और मजबूत राष्ट्रीयता के लिए यह आवश्यक है कि समाज के सभी वर्गों के बीच समानता और न्याय का भाव हो।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रीयता और सामाजिक सुधार के उनके विचार अत्यंत प्रासंगिक थे। उनके विचारों में एक समावेशी राष्ट्रीयता का अर्थ स्वतंत्रता संग्राम को एक ऐसी दिशा में ले जाना था, जहाँ समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार मिले। वे मानते थे कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता पर्याप्त नहीं है; इसके साथ सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता भी उतनी ही आवश्यक है। आचार्य नरेंद्र देव के लिए, राष्ट्रीयता का वास्तविक अर्थ समाज में एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना करना था जिसमें हर व्यक्ति को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का अधिकार मिले। उनके अनुसार, राष्ट्रीयता और समाजवाद का आपस में गहरा संबंध है। उनका मानना था कि समाज में समानता और न्याय के बिना सच्ची राष्ट्रीयता का विकास नहीं हो सकता, क्योंकि जब तक समाज में अन्याय और असमानता है, तब तक समाज में एकता का विकास संभव नहीं है।

आचार्य नरेंद्र देव का राष्ट्रीयता का विचार गांधीवादी सिद्धांतों से भी प्रभावित था। उनके लिए राष्ट्रीयता का अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं था, बल्कि यह नैतिक और आध्यात्मिक सुधार का भी प्रतीक था। उन्होंने सत्य और अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांतों को राष्ट्रीयता के विकास का आधार माना। उनके अनुसार, राष्ट्रीयता का विकास केवल तब ही हो सकता है जब समाज में नैतिकता और मानवीय मूल्यों का भी विकास हो। उन्होंने इसे एक नैतिक और सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में देखा, जिसमें समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का समान रूप से अधिकार हो। उनके लिए, राष्ट्रीयता का एक मुख्य उद्देश्य समाज में एक ऐसा वातावरण तैयार करना था जहाँ हर व्यक्ति को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का सम्मान हो।

भारतीय समाज में व्याप्त जातिवाद, सांप्रदायिकता और असमानता पर आचार्य नरेंद्र देव की आलोचना उनके राष्ट्रीयता के विचार का एक महत्वपूर्ण पहलू था। उनका मानना था कि जब तक समाज में जातिवाद और सांप्रदायिकता का प्रभाव रहेगा, तब तक सच्ची राष्ट्रीयता का विकास संभव नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि राष्ट्रीयता का विकास केवल तब संभव है जब समाज के सभी वर्गों के लोग एक-दूसरे के साथ सम्मान और समझ का व्यवहार करें। उनके अनुसार, भारतीय समाज की प्रगति और एकता के लिए यह आवश्यक है कि समाज में किसी भी प्रकार की भेदभावपूर्ण विचारधारा का अंत हो।

उनके विचारों में राष्ट्रीयता का एक आदर्श रूप प्रस्तुत किया गया है, जहाँ समाज के सभी वर्गों के लोग मिलकर एकता, समानता और न्याय के लिए काम करते हैं। वे मानते थे कि भारतीय समाज की विविधता ही उसकी ताकत है और इसे एक राष्ट्रीय पहचान का आधार बनाना चाहिए। उनके विचारों में एक आदर्श समाज का चित्रण है जहाँ न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता का भी अधिकार सभी को प्राप्त हो। आचार्य नरेंद्र देव ने समाज के हर वर्ग को राष्ट्रीयता का हिस्सा मानते हुए, इसे एक नैतिक और आध्यात्मिक आंदोलन के रूप में भी देखा।

उनके राष्ट्रीयता संबंधी विचारों का आधुनिक संदर्भ में भी बहुत महत्व है। भारतीय समाज आज भी सांप्रदायिकता, जातिवाद और आर्थिक असमानता जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। आचार्य नरेंद्र देव का यह मानना था कि जब तक समाज में ये असमानताएँ और भेदभाव बने रहेंगे, तब तक राष्ट्रीयता का वास्तविक विकास संभव नहीं है। उनके विचार हमें यह संदेश देते हैं कि राष्ट्रीयता का विकास केवल एक राजनीतिक प्रक्रिया नहीं है; यह एक नैतिक और सांस्कृतिक आंदोलन भी है जो समाज में हर व्यक्ति की गरिमा, समानता और स्वतंत्रता की रक्षा करता है।

उनके विचारों के अनुसार, भारतीय समाज की स्थिरता और प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि समाज में जाति, धर्म और अन्य विभाजनकारी तत्वों का अंत हो। उनका मानना था कि समाज में एकता और सहयोग का विकास केवल तब संभव है जब लोग एक-दूसरे के प्रति सम्मान और समझ का भाव रखें। उनके राष्ट्रीयता संबंधी विचार आज भी भारतीय समाज में एक समतामूलक और न्यायपूर्ण व्यवस्था की स्थापना के लिए प्रेरणा देते हैं। उनके अनुसार, समाज में सच्ची राष्ट्रीयता का विकास तभी हो सकता है जब समाज के सभी वर्गों के लोग एक समान अधिकारों और कर्तव्यों के साथ समाज का हिस्सा बनें।

आचार्य नरेंद्र देव के राष्ट्रीयता संबंधी विचार भारतीय समाज के लिए एक आदर्श दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। उनके अनुसार, राष्ट्रीयता का वास्तविक अर्थ केवल राजनीतिक स्वतंत्रता नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा आंदोलन है जो समाज के हर व्यक्ति को उसके अधिकारों और गरिमा का पूर्ण सम्मान प्रदान करता है। उनके विचारों में समाज में सह-अस्तित्व, नैतिकता और मानवीयता के मूल्यों का विकास राष्ट्रीयता की जड़ में निहित है। वे मानते थे कि समाज में एक सच्ची राष्ट्रीयता का विकास तभी हो सकता है, जब समाज में हर व्यक्ति को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का अधिकार मिले।

।। दो ।।

आचार्य नरेंद्र देव की दृष्टि में भारतीय राष्ट्रीयता का अर्थ केवल ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने से नहीं था, बल्कि एक ऐसे समाज की स्थापना करना था जिसमें हर व्यक्ति को समानता, न्याय और सम्मान प्राप्त हो। उनके विचार आज भी समाज में जातिगत भेदभाव, सांप्रदायिकता और आर्थिक विषमता जैसी समस्याओं का समाधान सुझाते हैं, जो भारतीय समाज के लिए एक आदर्श दिशा-निर्देश की तरह हैं।

उनका मानना था कि भारतीय राष्ट्रीयता का आधार एक समग्र संस्कृति और सभ्यता की भावना है, जिसमें विभिन्न धर्म, भाषाएँ, और सांस्कृतिक परंपराएँ आपस में समाहित होती हैं। वे यह मानते थे कि भारतीय राष्ट्रीयता की पहचान कभी भी एक ही धर्म, जाति या भाषा के आधार पर नहीं की जा सकती, बल्कि यह विविधता के उत्सव में निहित है। इस दृष्टिकोण से आचार्य नरेंद्र देव की राष्ट्रीयता का विचार एक सार्वभौमिक और समावेशी दृष्टिकोण है, जो भारतीय समाज को एकजुट रखने में सहायक हो सकता है।

उनके अनुसार, राष्ट्रीयता का मतलब एक ऐसा सामूहिक चेतना का विकास करना है, जिसमें समाज के हर वर्ग को अपनी भूमिका और कर्तव्य का बोध हो। इसके लिए उन्होंने समाज में शिक्षा के प्रसार और लोगों में नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों के विकास पर बल दिया। वे मानते थे कि एक सच्ची राष्ट्रीयता का विकास तभी हो सकता है, जब समाज में हर व्यक्ति अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझे और उसके प्रति समर्पित रहे। उनके लिए राष्ट्रीयता केवल राजनीति और सत्ता का सवाल नहीं था; यह एक नैतिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण था, जो समाज के हर सदस्य के जीवन को अर्थ और दिशा प्रदान करता था।

आचार्य नरेंद्र देव ने यह भी माना कि राष्ट्रीयता का विकास केवल तब हो सकता है जब समाज में सर्वधर्म समभाव और सहिष्णुता का वर्चस्व हो। भारतीय समाज की सांप्रदायिक विविधता को ध्यान में रखते हुए उन्होंने धर्म को व्यक्ति का निजी मामला मानते हुए यह कहा कि एक सच्ची राष्ट्रीयता का निर्माण तभी संभव है, जब लोग एक-दूसरे के धर्म और आस्थाओं का सम्मान करें। उनके अनुसार, धर्म का इस्तेमाल कभी भी राजनीति और सत्ता के लिए नहीं होना चाहिए क्योंकि यह समाज में विभाजन और विघटन को बढ़ावा देता है। उनका मानना था कि राष्ट्रीयता का उद्देश्य समाज में एकजुटता और सहयोग की भावना को बढ़ावा देना होना चाहिए, न कि किसी भी तरह की धार्मिक पहचान के आधार पर विभाजन करना। इस दृष्टिकोण से वे धर्मनिरपेक्षता को भारतीय राष्ट्रीयता का एक मूलभूत तत्त्व मानते थे।

उनके दृष्टिकोण से प्रेरित राष्ट्रीयता का विचार समाज में एक नई चेतना का संचार करता है। उनके अनुसार, एक सच्ची राष्ट्रीयता का विकास तभी हो सकता है, जब समाज में हर व्यक्ति को सम्मान, स्वतंत्रता और समानता का अधिकार प्राप्त हो। उनके विचार यह संकेत देते हैं कि समाज में जब तक आर्थिक असमानता, जातिगत भेदभाव, और धार्मिक कट्टरता का प्रभाव रहेगा, तब तक राष्ट्रीयता का वास्तविक स्वरूप उभर नहीं सकता। आचार्य नरेंद्र देव के लिए राष्ट्रीयता का मतलब समाज के सभी वर्गों के लिए एक समान अवसरों और अधिकारों की उपलब्धता है। वे मानते थे कि एक ऐसा समाज ही एक सच्ची राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व कर सकता है, जहाँ हर व्यक्ति को उसकी क्षमताओं और प्रतिभा का पूरा-पूरा उपयोग करने का अवसर मिले।

आचार्य नरेंद्र देव ने राष्ट्रीयता के संदर्भ में यह भी कहा कि एक आदर्श समाज की स्थापना केवल तब ही संभव है जब समाज में आर्थिक असमानताओं का अंत हो। उन्होंने समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए भी आवाज उठाई और समाज में हर व्यक्ति को समानता और न्याय का अधिकार दिलाने पर जोर दिया।

उनके विचारों में यह साफ झलकता है कि भारतीय राष्ट्रीयता को विकसित करने के लिए एक व्यापक समाज सुधार की आवश्यकता है। वे मानते थे कि जब तक समाज में जातिवाद, सांप्रदायिकता और भेदभाव का प्रभाव रहेगा, तब तक राष्ट्रीयता का विकास संभव नहीं है। उनके अनुसार, राष्ट्रीयता का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य समाज के हर व्यक्ति को उसके अधिकारों और जिम्मेदारियों का बोध कराना है। उनका मानना था कि समाज में सभी वर्गों के लोगों को समान रूप से अवसर प्राप्त होने चाहिए और कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार के सामाजिक और आर्थिक भेदभाव का शिकार नहीं होना चाहिए। उनके इस विचार में समाज की एक नई चेतना का बोध होता है, जो न केवल राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी समाज को एक नई दिशा देने का काम करता है।

आचार्य नरेंद्र देव ने यह भी माना कि राष्ट्रीयता का उद्देश्य केवल राष्ट्र की राजनीतिक और आर्थिक प्रगति नहीं है, बल्कि यह समाज के सभी व्यक्तियों की नैतिक और आध्यात्मिक उन्नति का भी प्रतीक होना चाहिए। उनके अनुसार, समाज में नैतिकता और मानवता के मूल्यों का विकास राष्ट्रीयता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए। वे मानते थे कि समाज में एक सच्ची राष्ट्रीयता का विकास तभी हो सकता है, जब समाज में हर व्यक्ति को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का अधिकार मिले। उनके विचारों में यह स्पष्ट है कि समाज की प्रगति का मतलब केवल आर्थिक प्रगति नहीं है, बल्कि समाज में नैतिकता, सहयोग और समर्पण की भावना का विकास भी उतना ही आवश्यक है।

उनकी दृष्टि में राष्ट्रीयता का सही अर्थ केवल राष्ट्रीय ध्वज और प्रतीकों का सम्मान नहीं, बल्कि समाज के हर व्यक्ति को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करना है। उनका मानना था कि एक आदर्श समाज की स्थापना केवल तब ही संभव है जब समाज में नैतिकता, मानवता और सहिष्णुता के मूल्यों का विकास हो। उनके लिए राष्ट्रीयता का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य समाज में एक ऐसा वातावरण तैयार करना था जहाँ हर व्यक्ति को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का सम्मान हो।

आचार्य नरेंद्र देव का राष्ट्रीयता का विचार भारतीय समाज के लिए एक आदर्श दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जिसमें समाज के सभी वर्गों के लोगों के लिए समानता, न्याय, और स्वतंत्रता का अधिकार निहित है। उनके विचारों में राष्ट्रीयता की अवधारणा एक नैतिक और सांस्कृतिक आंदोलन के रूप में प्रकट होती है, जो समाज में हर व्यक्ति की गरिमा, सम्मान, और स्वतंत्रता की रक्षा करता है।

उनके अनुसार, एक सच्ची राष्ट्रीयता का विकास केवल तब संभव है जब समाज के सभी वर्गों के लोग मिलकर समाज के लिए एक नई दिशा तय करें, जिसमें हर व्यक्ति को उसकी गरिमा, स्वतंत्रता, और समानता का अधिकार प्राप्त हो। उनके विचार आज भी भारतीय समाज में एक आदर्श व्यवस्था की स्थापना के लिए प्रेरणादायक हैं और समाज में सच्ची राष्ट्रीयता के विकास के लिए एक मानवीय और नैतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। आचार्य नरेंद्र देव का राष्ट्रीयता संबंधी दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि सच्ची राष्ट्रीयता का विकास तभी संभव है, जब समाज में हर व्यक्ति को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का अधिकार मिले और समाज में एकता, सह-अस्तित्व और न्याय का माहौल बना रहे।

।। तीन ।।

आचार्य नरेंद्र देव के विचार में राष्ट्रीयता का अर्थ समाज के सभी वर्गों के लिए स्वतंत्रता, समानता और न्याय सुनिश्चित करना था। वे मानते थे कि एक सच्ची राष्ट्रीयता का निर्माण समाज की विविधता को स्वीकार करने और उसे सम्मान देने के आधार पर ही संभव है। भारत जैसे बहुलता में एकता वाले समाज के लिए राष्ट्रीयता का उद्देश्य केवल स्वतंत्रता प्राप्ति नहीं था; बल्कि इसके साथ समाज में मानवीय और नैतिक मूल्यों का विकास भी अनिवार्य था। आचार्य नरेंद्र देव का यह दृष्टिकोण राष्ट्रीयता की गहरी समझ प्रस्तुत करता है, जो आज भी भारतीय समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

उनके अनुसार, भारतीय समाज में वास्तविक राष्ट्रीयता का विकास तभी हो सकता है, जब समाज के सभी वर्गों को समान रूप से स्वतंत्रता और सम्मान मिले। वे मानते थे कि एक सशक्त और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण केवल तब ही संभव है जब समाज में हर व्यक्ति को समान अधिकार प्राप्त हो। उनके दृष्टिकोण में, राष्ट्रीयता का मतलब सिर्फ एक राजनीतिक सिद्धांत नहीं, बल्कि एक ऐसी चेतना का निर्माण था, जिसमें हर व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता का आदर हो। वे मानते थे कि जब तक समाज में जातिगत भेदभाव, सांप्रदायिकता, और आर्थिक असमानता जैसी समस्याएँ बनी रहेंगी, तब तक राष्ट्रीयता का सच्चा स्वरूप उभर कर सामने नहीं आ सकेगा।

आचार्य नरेंद्र देव का मानना था कि भारतीय समाज की जटिलता और विविधता को समझना राष्ट्रीयता का आधार होना चाहिए। भारत एक बहुसांस्कृतिक समाज है, जहाँ हर भाषा, हर क्षेत्र, और हर परंपरा का अपना एक अलग महत्व है। उनकी दृष्टि में, भारतीय राष्ट्रीयता को केवल एक भाषा, एक धर्म या एक संस्कृति के आधार पर परिभाषित नहीं किया जा सकता। उन्होंने भारतीय समाज की विविधता को सम्मान देने की आवश्यकता पर बल दिया और इसे राष्ट्रीयता का एक मूलभूत सिद्धांत माना। आचार्य नरेंद्र देव के अनुसार, भारतीय समाज की बहुलता ही उसकी ताकत है, और इसे एक साझा पहचान का हिस्सा बनाना भारतीय राष्ट्रीयता के विकास के लिए आवश्यक है।

उनके अनुसार, भारतीय राष्ट्रीयता का निर्माण एक साथ रहने की भावना, सह-अस्तित्व की आदत और एकता के बंधन को मजबूत करने से होता है। वे मानते थे कि समाज में सहिष्णुता, सहयोग और समर्पण का विकास होना चाहिए ताकि विभिन्न संस्कृतियाँ और परंपराएँ एक दूसरे का सम्मान कर सकें और एक साझा राष्ट्रीय पहचान का निर्माण कर सकें। उनके दृष्टिकोण में, राष्ट्रीयता केवल बाहरी स्वतंत्रता तक सीमित नहीं थी, बल्कि आंतरिक स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का एक रूप भी थी। वे मानते थे कि जब तक समाज में जातिवाद, सांप्रदायिकता और असमानता का प्रभाव रहेगा, तब तक राष्ट्रीयता का वास्तविक विकास संभव नहीं है।

आचार्य नरेंद्र देव ने गांधी के अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों को राष्ट्रीयता के निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका के रूप में देखा। उनका मानना था कि गांधी के विचारों में निहित सत्य और अहिंसा भारतीय समाज में एकता और सहिष्णुता के विकास के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने गांधी की तरह ही यह मान्यता रखी कि भारतीय समाज में राष्ट्रीयता का विकास तभी संभव है जब समाज में नैतिक और आध्यात्मिक चेतना का विकास हो। उनके अनुसार, राष्ट्रीयता केवल राजनीतिक आंदोलन नहीं है; यह एक नैतिक आंदोलन भी है, जो समाज में एक नई चेतना और एक नई दिशा की स्थापना करता है।

आचार्य नरेंद्र देव का मानना था कि भारतीय राष्ट्रीयता का आधार एक ऐसी समावेशी चेतना में होना चाहिए, जिसमें समाज के हर व्यक्ति को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का अधिकार मिले। उनका दृष्टिकोण यह संकेत करता है कि भारतीय समाज के विकास के लिए सामाजिक और आर्थिक स्वतंत्रता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी राजनीतिक स्वतंत्रता। वे मानते थे कि समाज में असमानता और अन्याय का अंत किए बिना राष्ट्रीयता का सच्चा विकास नहीं हो सकता। उन्होंने समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशीलता दिखाई और समाज के हर वर्ग को समान अवसर प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया।

उनका मानना था कि समाज में एक सच्ची राष्ट्रीयता का विकास तभी हो सकता है, जब समाज के सभी वर्गों के बीच समानता, न्याय, और सम्मान का भाव हो। उनके विचारों में समाज में एक ऐसी व्यवस्था की स्थापना का चित्रण है, जहाँ हर व्यक्ति को उसकी क्षमताओं और गुणों का उपयोग करने का अवसर प्राप्त हो।

उनके अनुसार, भारतीय राष्ट्रीयता का आधार एक समावेशी समाज है, जहाँ सभी को अपनी संस्कृति, भाषा और परंपरा का सम्मान करने का अधिकार है। वे मानते थे कि समाज में सहिष्णुता और एकता का विकास तभी संभव है जब लोग एक-दूसरे की सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं का सम्मान करें। उनका मानना था कि भारतीय समाज की विविधता ही उसकी पहचान है, और इसे राष्ट्रीयता के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण तत्व के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। उनके विचारों में यह स्पष्ट है कि भारतीय समाज की सच्ची प्रगति तब ही संभव है जब यह अपनी विविधता को स्वीकार कर उसे अपनी ताकत बनाए।

आचार्य नरेंद्र देव के विचारों में भारतीय राष्ट्रीयता का एक आदर्श रूप उभरता है, जहाँ समाज के हर व्यक्ति को समानता, न्याय और स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो। उनके अनुसार, समाज में एक सच्ची राष्ट्रीयता का विकास केवल तब ही हो सकता है जब समाज के सभी वर्गों के लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर एक साझा पहचान का निर्माण करें। उनके दृष्टिकोण में राष्ट्रीयता का उद्देश्य समाज में एक ऐसा वातावरण तैयार करना है, जहाँ हर व्यक्ति को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का सम्मान हो और समाज में सह-अस्तित्व और सहयोग का विकास हो।

उनका मानना था कि समाज में जातिवाद, सांप्रदायिकता, और भेदभाव को समाप्त करना राष्ट्रीयता का एक प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए। वे मानते थे कि जब तक समाज में असमानता और अन्याय का प्रभाव रहेगा, तब तक समाज में सच्ची एकता का विकास नहीं हो सकता। उनके अनुसार, भारतीय समाज को एक न्यायपूर्ण व्यवस्था की आवश्यकता है, जिसमें हर व्यक्ति को समान अवसर और अधिकार मिले।

आचार्य नरेंद्र देव का राष्ट्रीयता का दृष्टिकोण आज भी भारतीय समाज के लिए अत्यंत प्रासंगिक है। उनके विचार हमें यह प्रेरणा देते हैं कि समाज में एक स्वस्थ और न्यायपूर्ण व्यवस्था के बिना राष्ट्रीयता का उद्देश्य अधूरा है। उनका मानना था कि समाज में सहिष्णुता, न्याय और मानवता के मूल्यों का विकास राष्ट्रीयता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए। उनके विचार हमें यह सिखाते हैं कि राष्ट्रीयता केवल एक राजनीतिक विचार नहीं है; यह एक मानवीय और नैतिक आंदोलन है, जो समाज में हर व्यक्ति की गरिमा और स्वतंत्रता की रक्षा करता है।

उनके अनुसार, एक सच्ची राष्ट्रीयता का विकास तभी संभव है जब समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार और सम्मान मिले। उनका मानना था कि समाज में नैतिकता, सहयोग और सह-अस्तित्व का विकास होना चाहिए, ताकि भारतीय समाज एक सशक्त और न्यायपूर्ण राष्ट्रीयता की दिशा में अग्रसर हो सके। आचार्य नरेंद्र देव के विचारों में एक आदर्श समाज का चित्रण है, जहाँ सभी लोग एक दूसरे का सम्मान करते हुए एक साझा पहचान का निर्माण करते हैं।

उनके विचारों में समाज में एक नई चेतना और एक नई दिशा की स्थापना की प्रेरणा है। उनकी राष्ट्रीयता का दृष्टिकोण समाज के हर वर्ग को एकजुट करने का प्रयास करता है, जिसमें सभी को समान अवसर और अधिकार मिलें। भारतीय समाज में उनकी यह दृष्टि आज भी प्रासंगिक है, जो हमें यह सिखाती है कि सच्ची राष्ट्रीयता का विकास केवल तब ही संभव है जब समाज में हर व्यक्ति को उसकी गरिमा और स्वतंत्रता का अधिकार मिले और समाज में सह-अस्तित्व और सहयोग की भावना बनी रहे। आचार्य नरेंद्र देव का राष्ट्रीयता का यह विचार भारतीय समाज में एक नई चेतना का संचार करता है और एक न्यायपूर्ण और समानता-आधारित समाज की दिशा में मार्गदर्शन करता है।

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