— विनोद कोचर —
फ्रांस में हजरत पैगम्बर के कार्टून से उपजे आक्रोश के बाद घटी हिंसक घटनाओं, फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा कार्टून बनाने वाले के समर्थन में दिये गए बयान और अन्य देशों में हो रहे हिंसक व अहिंसक प्रदर्शनों के संदर्भ में, आज मुझे याद आ रहे हैं भारत के ख्यातिलब्ध चित्रकार मक़बूल फिदा हुसैन।
हुसैन को जितना सम्मान भारत ने दिया, हिन्दू देवी देवताओं से संबंधित, उनकी विवादित पेंटिग्स ने उतना ही कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों को सबसे ज्यादा आहत किया.। उसका असर ये हुआ कि 2006 में हुसैन के खिलाफ लगातार विरोध प्रदर्शन, मुकदमे हुए, उन्हें जान से मारने की धमकियां भी मिलने लगीं.
इन सबसे हुसैन इतना दुखी हुए कि उन्होंने स्वेच्छा से भारत छोड़ दिया. वे लंदन और दोहा में निर्वासित जीवन बिताने लगे. 2010 में उन्हें कतर की नागरिकता मिल गई. 9 जून 2011 को लंदन में उनका निधन हो गया.
कलाकार तो कला के दीवाने होते हैं और दुनिया के बारे में, कुदरत के बारे में, नर नारियों के बारे में अपनी अद्भुत कल्पनाओं को चित्रों, कविताओं, लेखों आदि के माध्यम से अभिव्यक्त करते हैं लेकिन उनसे ये अपेक्षा भी रहती है कि उनकी अभिव्यक्तियाँ सारगर्भित हों।कई बार ऐसा भी होता है कि सारगर्भित लेकिन गूढ़ शैली वाली अभिव्यक्तियाँ साधारण लोग समझ नहीं पाते और कला पर अश्लीलता या आस्थाओं पर हमला करने के आरोप लगाकर कलाकार की जान तक लेने पर ऐसे लोग उतारू हो जाते हैं।इस तरह के लोग हर कौम में पाए जाते हैं।
आज जब मोहम्मद पैगम्बर के कार्टून बनाने वाले के पक्ष में खड़े होकर फ्रांस के राष्ट्रपति का समर्थन किया जा रहा है तब ये सवाल तो पूछा ही जा सकता है कि मकबूल फिदा हुसैन के खिलाफ खड़े हुए लोगों और कार्टून रचयिता समर्थक लोगों की मानसिकता में क्या यही समानता नहीं है कि ये दोनों सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम कौम विरोधी क्षुद्र एवं अमानवीय मानसिकताएं हैं जो मुस्लिम आस्थाओं को चोटिल करके खुश होती हैं और खुद की आस्थाओं के चोटिल होने पर आपे के बाहर होकर किसी की जान तक लेने पर उतारू हो जातीं हैं?
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