मंदिर-मस्जिद विवाद

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Vinod kochar

— विनोद कोचर —

मंदिर-मस्जिद विवाद पर दिए गए अंतरिम आदेश को पारित करते हुए सुप्रीमकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा है कि,’ हमने यह आदेश सामाजिक सद्भाव और शांति बनाए रखने के उद्देश्य से जारी किया है।’ न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के इस उद्देश्य की हम तहेदिल से सराहना करते हैं।

लेकिन यक्ष प्रश्न तो ये है कि क्या आरएसएस/भाजपा परिवार,1925से ही जिस मुस्लिम मुक्त हिन्दू भारत के सपने को साकार करने की दिशा में,2014के पहले छिटपुट तरीकों से और 2014 के बाद तूफानी गति से आगे बढ़ रहा है, वह न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के इस सराहनीय उद्देश्य को स्वीकार करेगा?

याद कीजिये 2002 –जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में भड़काए गए मुस्लिम संहारक और हिन्दू बलात्कारियों का महिमामंडन करने वाले उन भीषण दंगों को जिनसे प्रफुल्लित होकर आरएसएस ने अपने पूर्णकालिक प्रचारक एवं भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के जरिये उस नफरती ,हिंसक और बलात्कारी ‘दंगा दिवस’ को ‘शौर्य दिवस’ कहलवाकर नरेंद्र मोदी को अपनी आंखों का तारा बना लिया था।प्रधानमंत्री की कुर्सी नरेंद्र मोदी को इसी दंगे का पुरस्कार का ही था।

गुजरात के उस दंगे का संबंध अयोध्या के विवादित बाबरी मस्जिद-राममंदिर विवाद से ही था जिसका मुकदमा सुप्रीमकोर्ट में विचाराधीन था। इसी कड़ी में याद कीजिये सुप्रीमकोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ,डी वी चंद्रचूड़ व अन्य न्यायाधीशों द्वारा दिये गए उस फैसले को जिसमें बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने को अवैध मानते हुए भी संविधान और कानून को धता बताते हुए, सिर्फ हिंदुओं की आस्था से सहमत होते हुए विवादित स्थल पर राममंदिर बनाने के फैसले की उस पूर्व पृष्ठभूमि को जब सुप्रीमकोर्ट में कार्यरत एक महिला कर्मचारी द्वारा रंजन गोगोई पर यौन शोषण का आरोप, उस आरोप की सुनवाई स्वयं रंजन गोगोई के नेतृत्व में गठित न्यायपीठ द्वारा किया जाना, रंजन गोगोई को आरोप मुक्त किया जाना और अरोपमुक्ति के फैसले को गोपनीय रखा जाना, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा रंजन गोगोई से उनके चेम्बर में मुलाकात, मुलाकात में हुई बातचीत को भी गोपनीय रखा जाना और राममंदिर के पक्ष में पारित फैसले के बाद रंजन गोगोई के रिटायर होते ही उन्हें राज्यसभा की सदस्यता रूपी पुरस्कार नामधारी ???से नवाजना।

इसी कड़ी में याद कीजिए पूर्व चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ का वह फैसला जो प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट के प्रावधान की उद्देश्यपूर्ण व्याख्या की बजाय आरएसएस/भाजपा परिवार को खुश करने वाली व्याख्या करते हुए, ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की अनुमति देकर देश की हजारों मस्ज़िदों के सर्वे एवं खुदाई के दरवाजे खोलकर देश में भाईचारे, सद्भावना और शांति को नष्ट करने के आरएसएस के सपनों में उनका साथ देना।

उपरोक्त वर्णीत घटनाक्रमों में जिस परिस्थित्यात्मक साक्ष्य का संदेश छिपा है ,वह तो यही कहता मालूम पड़ता है कि वर्तमान हिन्दूराष्ट्रवादी केंद्र सरकार का मुस्लिम संहारक चेहरा सुप्रीमकोर्ट के संवैधानिक कर्तव्यों को अपने ठेंगे पर रखता है।वह न्यायाधीशों को डराता भी है, प्रलोभन के जाल में फंसाता भी है उन्हें संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की बजाय हिंदुओं की आस्था के पक्ष में फैसले पारित करने के लिए बाध्य भी करता है।

चीफ जस्टिस संजीव खन्ना के प्रति पूरे सम्मान के साथ उनसे अपील है कि:-

इस उपवन की पगडंडी पर बचकर जाना परदेसी!
यहाँ मेनका की चितवन पर मत ललचाना परदेसी!

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