भ्रष्टाचार के सगुण चेहरे

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lohiya

भ्रष्टाचार के कारण सारी व्यवस्था त्रस्त है| इसके उन्मूलन के लिए संसद से सड़क तक बहस छिड़ गई है| डॉ लोहिया कहा करते थे की दृष्टि दिशा और संकल्प-तीनों का होना अनिवार्य है| भ्रष्टाचार एक निर्गुण शब्द है| जब उसकी व्यापक व्याख्या की जाएगी और उसके उन्मूलन के लिए ठोस कार्यक्रम बनाए जाएंगे तब उसका सगुण स्वरूप दिखाई पड़ेगा| भ्रष्टाचार ने आचार,विचार,प्रवृति और प्रकृति को ग्रसित कर लिया है| भोगवाद के गंदे कूड़े पर भ्रष्टाचार के कीड़े जन्म लेते हैं, पलतेऔर बढ़ते हैं| जातिप्रथा के कारण उसको संरक्षण मिलता है|

भ्रष्टाचारी को जाति के नाम पर संरक्षण मिल जाता है| सभी राजनैतिक दलों के नेता, नौकरशाह और कुछ हद तक तथाकथित बुद्धिजीवी एक जुट होकर अपनी जाति वालों को बचानेमें लग जाते हैं| दूसरा है वर्ग चरित्र और वर्ग स्वार्थ के कारण भ्रष्टाचारी एक दूसरे को संरक्षण देते रहते हैं| इसके लिए सिद्धांत बनाने में उन्हें दक्षता हासिल है|

संपत्ति के संग्रह और खर्च पर नियंत्रण करने के लिए जब तक कानून नहीं बनेगा तब तक लोभग्रस्त समाज भ्रष्टाचार से पीड़ित रहेगा| न्यूनतम और अधिकतम आय के अंतर को परिभाषित किया जाना जरुरी है|……

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