पटेल और गांधीजी की अद्भुत जोड़ी

0
Gandhi And Sardar Patel

रदार पटेल की गांधीजी से निकटता बारडोली सत्याग्रह से हुई जब गांधीजी ने 12 मार्च 1930 को नमक सत्याग्रह चलाया तो 241 किलोमीटर की इस यात्रा में पटेल गांधीजी के साथ साये की तरह चले ,गांधीजी ने ही उन्हें ‘ सरदार ‘ की उपाधि दी थी

बहुत कम लोगों को पता है कि गांधी दोनों हाथों से उतनी ही सफ़ाई के साथ लिख सकते थे। 1909 में इंग्लैंड से दक्षिण अफ़्रीका लौटते हुए उन्होंने नौ दिन में अपनी 271 पेज की पहली किताब हिंद स्वराज ख़त्म की थी। जब उनका दाहिना हाथ थक गया तो उन्होंने करीब साठ पन्ने अपने बाएं हाथ से लिखे।(उनकी दाएं व बाएं हाथ की लिखाई सलंग्न फोटो में है )

हर कोई गांधी के नेहरू से नज़दीक होने की बात करता है लेकिन गांधी पटेल से भी उतने ही नज़दीक थे, कम या ज़्यादा नहीं। पटेल और गांधी तीन साल एक साथ जेल में रहे थे। लेकिन 1916 में जब गांधी दक्षिण अफ़्रीका से लौटने के बाद गुजरात क्लब में भाषण दे रहे थे, पटेल उसी क्लब में ब्रिज खेल रहे थे और उन्होंने ये मुनासिब नहीं समझा कि वो खेल छोड़ कर गाँधी को सुनने जाएं।

बाद में उन्हीं पटेल ने गांधी से प्रभावित हो कर सूटबूट पहनना छोड़ कर धोती कुर्ता पहनना शुरू कर दिया था। जेल में पटेल, गांधी के लिए दातून छीलते थे। उनका आपस में मज़ाक भी चलता था कि गांधी के ले दे कर दो दाँत हैं और उनके लिए भी दातून छीलने की मशक्कत की जाती है।

प्रमोद कपूर बताते हैं, ”गांधी कागज़ को बरबाद करने में यकीन नहीं करते थे और पटेल को पुराने कागज़ों से लिफ़ाफ़े बनाने में महारत हासिल थी। गांधी मानते थे कि पटेल के बनाए लिफ़ाफ़े उनके लिए भाग्यशाली हैं क्योंकि उनमें भेजे पत्र शासन कभी नहीं रोकता था।”

महात्मा गांधी की हत्या से दो दिन पहले इंदिरा गांधी अपने चार साल के बेटे राजीव गांधी और बुआ कृष्णा हठी सिंह के साथ गांधीजी से मिलने बिरला हाउस गई थीं।

प्रमोद कपूर लिखते हैं, ”उन सब को देखते ही गांधीजी खुशी से बोले थे…तो राजकुमारियाँ मुझसे मिलने आई हैं। उनमें बात हो ही रही थी कि राजीव ने खेल खेल में आगंतुकों के लाए फूल गांधी के पैरों में बांधने शुरू कर दिए। गांधी ने मुस्करा कर राजीव के कान खींचे और कहा ऐसा मत करो बेटे, सिर्फ़ मरे हुए लोगों के पैर में फूल बाँधे जाते हैं।”

शायद गांधी को अपनी मौत का आभास हो चला था. दो दिन बाद उनकी हत्या कर दी गई।

जब गांधी की शव यात्रा का इंतज़ाम किया जा रहा था तो बदहवास और किसी दूसरी दुनिया में खोए नेहरू ने माउंटबेटन से कहा था, ”चलिए बापू से ही पूछते हैं क्या कुछ किया जाना है.”
जब गांधी के शव के सामने उनकी भतीजी मनु उनका प्रिय भजन गा रही थीं तो नेहरू उनके पास आकर बोले थे, ”और ज़ोर से गाओ, क्या पता बापू जाग ही जाएं.”

31 जनवरी, 1948 को जब गांधी के बेटे देवदास गांधी ने उनकी चिता को अग्नि दी तो उसका आंखों देखा हाल सुना रहे मेलविल डिमैलो का गला रुंध गया.

बाद में उन्होंने लिखा, ”मैं कमेंट्री समाप्त हो जाने के बाद भी उस वैन की छत पर बैठा रहा जहाँ से मैं कमेंट्री कर रहा था. अचानक मुझे नीचे से वैन के हुड को पकड़ने की कोशिश करते दो हाथ दिखाई दिए. मैंने ग़ौर से देखा तो वो पंडित नेहरू थे. मैंने उनके हाथों को पकड़कर वैन की छत पर खींच लिया. उन्होंने छूटते ही पूछा, ”तुमने गवर्नर जनरल को देखा है?” मैंने जवाब दिया वो तो आधे घंटे पहले गए. उनका दूसरा सवाल था, सरदार पटेल दिखाई दिए? मैंने कहा वो भी कुछ मिनटों पहले जा चुके हैं. मैंने महसूस किया कि दुख की इस घड़ी में दोस्त, दोस्तों से बिछड़ गए थे.”

सरदार पटेल के नेहरू के बारे में विचार जो उनके एक लेख में स्पष्ट होते हैं-

“आयु में बड़े होने के नाते मुझे कई बार उन्हें उन समस्याओं पर परामर्श देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है जो शासन-प्रबन्ध या संगठन के क्षेत्र में हम दोनों के सामने आती रही हैं। मैंने सदैव उन्हें सलाह लेने को तत्पर और मानने को राज़ी पाया है। कुछ स्वार्थ-प्रेरित लोगों ने हमारे विषय में भ्रान्तियाँ फैलाने का यत्न किया है और कुछ भोले व्यक्ति उनपर विश्वास भी कर लेते हैं, किन्तु वास्तव में हम लोग आजीवन सहकारियों और बन्धुओं की भाँति साथ काम करते रहे हैं। अवसर की माँग के अनुसार हमने परस्पर एक दूसरे के दृष्टिकोण के अनुसार अपने को बदला है, और एक दूसरे के मतामत का सर्वदा सम्मान किया है जैसा कि गहरा विश्वास होने पर ही किया जा सकता है। उनके मनोभाव युवकोचित उत्साह से लेकर प्रौढ़ गम्भीरता तक बराबर बदलते रहते हैं, और उनमें वह मानसिक लचीलापन है जो दूसरे को झेल भी लेता है और निरुत्तर भी कर देता है। क्रीड़ारत बच्चों में और विचार-संलग्न बूढ़ों में जवाहरलाल समान भाव से भागी हो जाते हैं। यह लचीलापन और बहुमुखता ही उनके अजस्त्र यौवन का, उनकी अद्भुत स्फूर्ति और ताज़गी का रहस्य है।”

Leave a Comment