आनेवाले 24 दिसंबर को सानेगुरुजी की 125 वी जयंती के बहाने!

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— डॉ. सुरेश खैरनार —

देश भर के राष्ट्र सेवा दल के सैनिकों तथा छात्रभारती, समाजवादी, आंतरभारती, सानेगुरुजी कथामाला और साप्ताहिक साधना परिवार के सभी साथीयो के नाम विनम्र निवेदन ! उन्नीसवीं शताब्दी के समाप्त होने के और बीसवीं शताब्दी शुरू होने के अंतिम सप्ताह में, 24 दिसंबर 1899 के दिन ! बीसवीं शताब्दी के शुरू होने के एक सप्ताह पहले ! महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के, पालगड नाम के, तीन से चार हजार जनसंख्या वाले छोटे से देहात में ! सानेगुरुजी का जन्म हुआ था ! यानी येशू ख्रिस्त के एक दिन पहले, और मेरे भी ! दो हजार एक सौ साल और इक्कीस दिन पहले, करूणा, प्रेम, दया और शांति के संदेश देने वाले भगवान येशू के जन्मदिन के सिर्फ एक दिन पहले ! समस्त महाराष्ट्र के संत ज्ञानेश्वर के बाद (माऊली)के नाम से जाने जाने वाले ! मातृहृदयी सानेगुरूजी का जन्म हुआ है !

शुरू के दिनों में भले ही आर्थिक स्थिति खाने – पीने के हिसाब से ठीक थी ! लेकिन भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में कब किसकी स्थिति बिगडेगी, यह कोई नहीं जानता ! एक तरह से जुआ ही होता है ! उसी तरह से शिक्षा की व्यवस्था भी नहीं रहने के कारण, उन्हें प्राथमिक शिक्षा से हायस्कूल तथा उच्च शिक्षा के लिए भी ! बहुत कष्टों से अपने एम ए तक कि शिक्षा के लिए, बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी ! इस कारण गरीबी, भुख तथा अभावग्रस्त परिस्थिती का सामना करते हुए, खुद के जीवन के अनुभवों से, गरीब तथा दबे-कुचले समाज के लिए स्वाभाविक रूप से नाता जुडा ! और जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय, उन्ही तबके के लिए काम करने मे गया !

हालांकि सानेगुरुजी ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद ! महाराष्ट्र के खान्देश जलगांव जिले के अंमलनेर नाम की जगह, प्रताप हायस्कूल में शिक्षक की नौकरी के लिए खान्देश एज्युकेशन सोसायटी द्वारा चलाए जा रहे स्कूल में आए थे ! 17 जून 1924 के दिन शिक्षक के रूप में जाॅइन किए हैं !

लेकिन सिर्फ़ शिक्षक के काम के अलावा, संवेदनशील स्वभाव के कारण ! खान्देशके किसानों, और मिल मजदूर वर्ग के लोगों की समस्याओं को लेकर ! आर्थिक – सामाजिक सुधार करने के लिए, उन्होंने उनके संगठन खड़े किए ! और संघर्ष कीया !
मुख्यतः धुलिया-जलगांव, अंमलनेर के प्रताप मील के, मजदूरों की युनियन, और खान्देश के किसानों का संगठन खड़ा किया ! और उसके बलबूते पर, उस समय उनकी उम्र २५ साल की थी ! और देशभर में स्वतंत्रता की लड़ाई जारी थी !

छ साल शिक्षक की नौकरी करने के बाद 21 अप्रैल 1930 के दिन ! सानेगुरुजी ने चुपचाप अपनी नौकरी से खुद ही गायब होकर ! देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में, शामिल होने का निर्णय लिया ! और अपने जीवन का पहला भाषण फैजपूर में दिया ! जिस फैजपूर में छ साल बाद ! कांग्रेस का पहला ग्रामीण क्षेत्र में राष्ट्रीय सम्मेलन ! 1936 के दिसंबर में संपन्न हुआ है ! एक तरह से सानेगुरुजी के जीवन का यह मोड आने वाले, बीस साल तक अथक प्रयासों की दास्तान है !
17 मई 1930 के दिन सानेगुरुजी को अंग्रेज सरकार ने अमळनेर की सभा में भाषण देने के कारण राष्ट्र द्रोह के अपराध में पंद्रह

महिनो की सजा सुनाई ! और धुलिया के जेल में बंद कर दिया ! लेकिन धुलिया के जेल में नौजवानों को भड़काने के आधार पर, उन्हें ढाई महीनों के भीतर ही ! दक्षिण भारत के उस समय के मद्रास प्रांत के त्रिचनापल्ली जेल में लेकर गए !
और यही जेल में उन्होंने आंतरभारती की कल्पना की है ! क्योंकि वह जेल एक मीनी भारत ही था ! तीन हजार कैदियों में लगभग भारत के सभी प्रदेश के कैदियों की भाषा और संस्कृति का परिचय गुरुजी को हुआ था ! और वहाँ उन्होंने तमिल भाषा सीखने का प्रयास किया ! और तमिल भाषा के संत कुरूवल्लूवर के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘कुरल’ का मराठी अनुवाद किया !

कुरल को तमिल भाषा का वेद माना जाता है ! ‘कुरल’ का अर्थ दो चरण है ! और ‘कुरूवल्लूवर’ में 1330 चरण है ! इस तरह की महत्वपूर्ण साहित्य कृति का ! अनुवाद करने के अलावा, ‘पत्री’ नाम का काव्य संग्रह भी लिखा है ! इस के अलावा गुरुजी ने चार नाटक त्रिचनापल्ली के जेल जीवन में लिखे हैं ! और कुछ अंग्रेजी, फ्रेंच भाषा के साहित्यकारों के साहित्य का भी अनुवाद किया है ! 23 मार्च 1931 के दिन सानेगुरुजी को त्रिचनापल्ली के जेल से रिहा कर दिया गया ! और उसी दिन लाहौर जेल में भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को रात में फांसी की सजा दी गई ! तो गुरुजी ने अंमलनेर में उस सजा के खिलाफ सभा करते हुए ! अंग्रेज सरकार के इस कुकृत्य की भर्त्सना की है !

इसके बाद आचार्य विनोबा भावे के साथ खान्देशके दौरेम ! गुरुजीको जीवन में पहली बार ! साथ – साथ मिलकर घुमने का अवसर मिला था ! और उस कारण विनोबाजी के नजदीक जाने का भी ! और विनोबा के व्यक्तिमत्त्व को देखते हुए ! उन्होंने उनका चरित्र भी लिखा है ! और 1932 में फिर धुलीया के जेल में साथ-साथ रहने का मौका मिला !

और इसी जेल में विनोबा के ‘गिता प्रवचनों’ को, सानेगुरूजी ने नोट्स लेने के कारण आज यह किताब की शक्ल में ‘गीताई’ के शिर्षक से उपलब्ध है ! उस जेल में काफी भीड़ होने के कारण ! कुछ कैदियों को नासिक जेल में ले जाया गया, जिसमें गुरुजी भी थे ! और इसी जेल में, उन्होंने उनकी सबसे चर्चित और प्रसिद्ध किताब ! ‘श्यामू की माँ’ का लेखन 36 रातो में पूरा किया है ! यह उनका एक तरह से आत्मचरित्र ही है ! और इसी किताब को पढकर महाराष्ट्र में एक पीढ़ी संस्कारित हुई है ! और आज भी काफी लोगों को प्रेरित करने का काम करती है ! शायद मराठी की सब से ज्यादा मात्रा में बिकने वाली किताब में’ श्यामची आई’ का समावेश होता है ! और इसी कारण आचार्य अत्रे ने ‘श्यामची आई’ पर मराठी में सिनेमा तैयार किया है ! और शायद मराठी फिल्मों में पहली फिल्म है ! जिसे राष्ट्रीय स्तर का ‘राष्ट्रपति सुवर्ण मयूर’ पुरस्कार मिला है !

इसके पहले धुलीया जेल में ही ! उन्होंने रविंद्रनाथ टागौर के ‘साधना’ और ‘स्वदेशी समाज’ इन दोनों किताबों का अनुवाद किया है ! विश्वप्रसिद्ध रचनाओं का अनुवाद करके, मराठी भाषी लोगों के लिए सानेगुरुजी ने बहुत बड़ा योगदान किया है ! अपने खुद के कविता, निबंध, कथा, उपन्यास के अलावा, अन्य साहित्य के अनुवाद कार्य में सानेगुरुजी के बराबर मराठी भाषी साहित्यकार दुसरा नही देखा हूँ ! कुलमिलाकर 51 साल के जीवन में साहित्य, सार्वजनिक कार्य ! तथा उनके सहवास में आये युवा पीढ़ी को संस्कारित करने के ! उनके कार्यकाल को देखते हुए लगता है ! कि गुरुजी खुद ही एक स्कूल थे ! और उसी का परिणाम 4 जून 1941 को राष्ट्र सेवा दल की स्थापना की घटना हुई है ! क्योंकि घोर सांप्रदायिकता के उपर खड़ा किया गया आर. एस. एस. के साथ ! मुकाबले हेतु ही ! राष्ट्र सेवा दल की स्थापना की गई है !

कांग्रेस की स्थापना 1885 के बाद पहली बार ! कांग्रेस के अधिवेशन को किसी देहात में आयोजित करने का श्रेय सानेगुरुजी कोही जाता है ! खान्देश के जलगांव जिले के फैजपूर नामके देहात में 1936 मतलब कांग्रेस की स्थापना के 51 साल बाद ! वह अर्धशताब्दी पूरी करने के बाद, अधिवेशन फैजपूर में साने गुरुजी के अथक प्रयासों से संपन्न हुआ ! जिसके अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू थे ! जिसमें ‘राष्ट्र सेवा संघ,’ नामक स्वयंसेवकों का अधिवेशन के लिए स्वयंसेवक संघठन का गठन करके ! अपने अगुआई में सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में प्रथम अधिवेशन संपन्न कराने के लिए ! सानेगुरुजी की मेहनत रंग लाई ! और मुझे अभिमान है कि इस राष्ट्र सेवा संघ के स्वयंसेवकों में मेरे पिताजी भी थे !

साने गुरुजिके जीवन का और महत्वपूर्ण पडाव हैं ! जनवरी 1941 में धुलिया जेल में मधु लिमये बच्चों के वॉर्ड में बंद थे ! और उनकी और गुरुजिके साथ पहली बार आमने-सामने की भेंट ! उस समय मधूजी गिनकर अठारह साल के थे ! और गुरुजी बयालीस पार कर चुके थे ! मतलब एक पिता के उम्र के साने गुरुजी ! बेटे के उम्र के मधू लिमये के साथ ! धुलिया जेल में पहली मुलाकात में समझ जाते हैं ! कि यह लडका वैचारिक रूप से बहुत ही परिपूर्ण है ! और खान्देश के मिल मजदूर और किसानों के आंदोलनों के कारण ! गुरुजी कम्युनिस्टों की सोहबत में रहने के कारण कम्युनिस्ट प्रभाव में थे ! लेकिन दुसरे विश्वयुद्ध में कम्युनिस्ट पार्टी के ढुलमुल नितियो के बारे में ! ( पहले स्टालिन और हिटलर के बीच दुसरे महायुद्ध को लेकर युद्ध बंदी का समझौता हो चुका था ! और पोलैंड के बटवारे की बात तय की गई थी !

इस लिए उस युध्द को शुरू में कम्युनिस्ट ‘साम्राज्यवाद के विरुद्ध युद्ध’ कह रहे थे ! लेकिन हिटलर ने उसके बावजूद रशिया पर हमला करने के बाद कम्युनिस्टों का रवैया बदलकर वह ‘लोकयुध्द’ बोलने लगे ! ) और समाजवाद के उपर ! मधू लिमये के धुलिया जेल में उन्नीस भाषण हुए ! और उन भाषणों की नोट्स साने गुरुजी ने लेने के कारण ! कम्युनिस्ट प्रभाव वाले गुरुजी ! एक बेटे के उम्र के लड़के के प्रभाव में आकर ! शुद्ध सोशलिस्ट बने ! और कम्युनिस्ट पार्टी के दुसरे महायुद्ध से लेकर ! बयालीस के भारत छोडो आंदोलन के दौरान भी ! विरोधी भुमिका के कारण ! सानेगुरुजी का कम्युनिस्ट पार्टी से पूरी तरह से मोहभंग हो गया ! और वैचारिक रूप से ! मधू लिमये के प्रभाव में आने वाले समय में रहे हैं ! बहुत ही स्नेह और आदर गुरुजी मधूजी के बारे में रखते थे ! यहां तक कहा जाता है ! “कि अगर गुरुजी और मधूजी के 1950 में अच्छी तरह से मुलाकातें होती ! तो शायद गुरुजी ने आत्महत्या नही की होती !”

और उसमें से आगे पांच सालों बाद, चार जून 1941 को राष्ट्र सेवा दल की ! स्थापना करने की बात, एस. एम. जोशी, एन. जी. गोरे, भाऊसाहेब रानडे, शिरूभाऊ लिमये, अण्णासाहेब सहस्रबुद्धे ! इत्यादि समाजवादी लोगों के मन में आई ! जिसे सानेगुरुजी अपना प्राणवायु कहा करते थे ! और उसकी वजह आर. एस. एस. के स्थापना के कारण ! सोलह साल पस्चात, बढती हुई घोर सांप्रदायिकता और जातीयता के ! प्रचार-प्रसार को रोकने के लिए ही ! राष्ट्र सेवा दल का गठन किया गया है ! यह बात मुझे बार – बार दोहराने की एकमात्र वजह ! हम राष्ट्र सेवा दल के देशमरके फैले हुए लोग यह भुल गए हैं !

क्योंकि 35 साल पहले अक्तुबर 1989, भागलपुर के दंगे के बाद ! मैंने यही बात राष्ट्र सेवा दल के अर्धशताब्दी के समय (1991) ! विस्तार से तत्कालीन पदाधिकारियों को लिखे पत्र में लिखा था ! “कि आने वाले समय में कम-से-कम पचास साल तक भारतीय राजनीति का केंद्र बिंदु सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिकता ही रहेगा !” इसलिए राष्ट्र सेवा दल के पचास साल पुरे होने के उपलक्ष्य में आनेवाले पचास साल की भारत की संसदीय राजनीति का केंद्र बिंदु सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिक राजनीति के इर्द-गिर्द में रहने वाली है ! इसलिए राष्ट्र सेवा दल के अर्धशताब्दी के समारोह में तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति के. आर. नारायणन प्रमुख अतिथी के रूप में आने वाले थे ! इसलिए मैंने अपने पत्र में आग्रह किया था कि “राष्ट्रपति के उपस्थिति में राष्ट्र सेवा दल ने आने वाले कम-से-कम दस साल, सिर्फ सांप्रदायिकता के सवाल पर ही राष्ट्र सेवा दल के देशमरके कार्यकर्ताओं को शपथ दिलाई जानी चाहिए ! कि 1991 से 2001 तक का एक दशक, हमारे कार्यकर्ता प्रमुख रूप से सांप्रदायिकता के सवाल पर काम करेंगे ! ” लेकिन मेरे पत्रों को जवाब तो दूर की बात है ! मुझे एकनॉलेज तक नहीं मिला है ! यह पत्राचार गुजरात के दंगों के ग्यारह साल पहले का है ! और किसी नरेंद्र मोदी के राजनीतिक जीवन की शुरूआत होने के पहले का है !

सानेगुरुजी अत्यंत संवेदनशील और कविहृदय के साहित्यकारों में से एक रहे हैं ! उन्होंने सिर्फ मनोरंजन के लिए ही साहित्य नहीं लिखा है ! अगल – बगल के शोषण तथा विषमता तथा अन्याय, अत्याचार तथा घोर सांप्रदायिक – जातियता के खिलाफ ! अपनी साहित्यिक रचना कथा, उपन्यास, कविता तथा उनके निबंध है ! उदाहरण के लिए उनका लिखा हुआ ! मेरा सबसे प्रिय गित ! जिसे मैं यूनो का गित बनाने की इच्छा रखता हूँ ! “सच्चा धर्म वहीं है जो दुनिया को प्रेम अर्पित करना चाहिए !” ( खरा तो एकची धर्म जगाला प्रेम अर्पावे ! ) जैसा अर्थपूर्ण गीत ! संत ज्ञानेश्वर के “पसायदान की बराबरी करता है”!

इसी तरह ‘शामू की माँ ‘नाम का उपन्यास, आत्मचरित्रात्मक लेखन, वैश्विक कलाकृती मे शुमार होता है ! और जिसे पढकर महाराष्ट्र की कितनी पिढीयो को संस्कारित करने का श्रेय सानेगुरुजी को जाता है ! कम-से-कम हमारे जैसे लोगों को संस्कारित करने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है !

जिसपर मराठी के मशहूर साहित्यकार और संपादक आचार्य अत्रे जी ने फिल्म भी बनाई है ! और प्रथम बार किसी मराठी फिल्मों में से राष्ट्रपति के स्वर्ण मयूर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है ! उसी तरह भारतीय संस्कृति नाम की किताब, भारत की गंगा – जमुनी संस्कृति के महत्व को रेखांकित करते हुए ! भारत की बहुआयामी संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए, भारतीय संस्कृति यह किताब भारत की सभी भाषाओं में अनुवाद करने की आवश्यकता है !

और इसी कड़ी में उन्होंने आंतरभारती की कल्पना अपने मृत्यु के पहले लिखी है ! जिसमें भारत जैसे बहुभाषी, बहुसांस्कृतिक देश के लोगों ने अपनी भाषा के अलावा अन्य प्रदेश की भी भाषा सीखने की कोशिश करनी चाहिए ! और एक दूसरे की संस्कृति को जानने – समझने के लिए एक दूसरे प्रदेश में जाकर वहां के खान – पान, त्योहारों से लेकर साहित्य कला तथा भाषाएं भी सिखनी चाहिए ! अन्यथा आजादी के बाद भी हमारे देश में आपस में ही मेलजोल नही होगा ! तो विश्व के विभिन्न देशों से क्या होगा ?

सानेगुरुजी जैसे संवेदनशील लोग दुनिया में कभी-कभी ही पैदा होते हैं ! हमारे देश में कविगुरू रविंद्रनाथ टागौर , महात्मा गांधी, आचार्य विनोबा भावे,संत ज्ञानेश्वर – तुकाराम, संत कबीर नानकदेव, बश्वेशरजी, महात्मा फुले, डॉ. राम मनोहर लोहिया, डॉ. बाबासाहब आंबेडकर, आचार्य जावडेकर, आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण की कड़ी में सानेगुरुजी का नाम आता है !
कुल मिलाकर इक्क्यावन साल और पांच महीने और अठारह दिन के जीवन में ! महाराष्ट्र में एक पीढ़ी अपने खुद के सामने स्वतंत्रता, जनतंत्र, समता और सर्वधर्मसमभाव के मुल्यो के उपर ! समाज बनाने के लिये उन्होंने तैयार की है ! और उसके बाद भी, वह सिलसिला जारी है ! हम राष्ट्र सेवा दल के सैनिकों का भले ही सानेगुरुजी के 11 जून 1950 मृत्यू के बाद जन्म हुआ होगा, और हमें उन्हें देखने और सुनने का मौका नही मिलने के बावजूद ! उनके साहित्य और उनके सहवास में रहे मेरे पिताजी से लेकर, एस. एम. जोशी, एन. जी. गोरे, बैरिस्टर नाथ पै, मधु लिमये,प्रोफेसर मधू दंडवते, प्रोफेसर ग. प्र. प्रधान, यदुनाथ थत्ते, कवी वसंत बापट जैसे हमारे सार्वजनिक जीवन के पिता समान लोगों, से जो भी सुना, पढा उससे हम राष्ट्र सेवा दल के सैनिकों का व्यक्तित्व बनने में बहुत मदद हुई है !

सानेगुरुजी का जन्म भले ही कोंकण में हुआ था ! और उनकी प्राथमिक शिक्षा कोंकण और महाविद्यालय की शिक्षा मुंबई तथा पुणे में हुई थी ! लेकिन उन्हें अपने शिक्षक की नौकरी के कारण महाराष्ट्र के खान्देश नामके आंमळनेर के प्रताप हायस्कूल मे शिक्षक की नौकरी ! और (धुळे, जळगाव और नाशिक) विभाग में अपना कार्यक्षेत्र, उनके सामाजिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कामो के लिए, उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय खान्देश के क्षेत्र में रहा है ! लगभग आधा जीवन !

प्रताप हायस्कूल का छात्रावास भी था ! तो सानेगुरुजी को छात्रावास के अधिक्षक की अतिरिक्त जीम्मेदारी भी सौंपी गई थी ! जिसकारण सानेगुरुजी के भीतर का मातृहृदय प्रकट होकर, छात्रों को माँ के जैसा प्रेम और उनके बीमारी के समय जो सेवा सानेगुरुजी ने की है ! उसीके चलते उन्हें मातृहृदयी या माऊली (माँ) भी कहा जाता है ! और इस तरह की सेवा का लाभ लिए विद्यार्थियों मेसे कुछ महाराष्ट्र के सार्वजनिक जीवन में आये मधुकरराव चौधरी, शिवाजीराव पाटील उनके बड़े भाई उत्तमराव पाटील, प्रकाश मोहाडीकर इत्यादी लोगों ने अपने अनुभवों के आधार पर उन्हें मातृहृदयी कहा है !

सानेगुरुजी के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और आखिरी कार्य, पंढरपूर के विठ्ठल मंदिर मे हरिजन प्रवेश के लिए किया गया उपवास है ! इसके पहले डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी ने नासिक के काला राम मंदिर के एक मार्च 1930 के दिन छ साल तक मंदिर प्रवेश करने के लिए सत्याग्रह किया था ! और उसके प्रतिक्रिया स्वरूप उन्होंने उसी साल येवला तालुका जो नासिक जिले में ही आता है ! अपनी इतिहास प्रसिद्ध घोषणा की थी कि “मैं हिन्दू धर्म में पैदा जरूर हुआ हूँ ! लेकिन मैं मरने के पहले हिंदू धर्म का त्याग अवश्य करूंगा !” लेकिन हिंदू धर्म के अंतर्गत कर्मठ लोगों के उंचनिंच भेद-भाव के कारण ! बीस साल पस्चात डॉ. बाबा साहब अंबेडकरजी को अपने लाखों अनुयायियों के साथ ! नागपुर में 1956 के 14 अक्तुबर दशहरे के दिन ! बौद्ध धर्म की दिक्षा लेनी पडी है ! और हजारों सालों से यही सिलसिला जारी है !

क्योंकि मंदिर की मुर्ति पर आराम से कुत्ते – बील्ली चढ – उतर सकते हैं ! लेकिन अस्पृश्य समाज के लोग उस मूर्ति का दर्शन कर नही सकते ! और इसी कुप्रथाओं के कारण ! आज के ज्यादा से ज्यादा मुस्लिम, ख्रिश्चन तथा हिंदू धर्म छोडकर गए हैं ! और यह बात शिकागो जाने के पहले दक्षिण भारत के प्रवास के दौरान स्वामी विवेकानंद जी ने भी अपने भाषणों में कहीं है ! कि “भारत में ख्रिश्चन या इस्लाम धर्म का आगमन हमारे जाति-व्यवस्था के कंधों पर बैठकर ही हुआ है !” लेकिन इसके बावजूद तथाकथित हिंदूत्ववादी लोगों का गुस्सा ! अल्पसंख्यक समुदाय के उपर होने के मुख्य कारणों से यह भी एक कारण है !

इस बात पर सोच विचार करना तो दूर, उल्टा आज भी उत्तराखंड जिसका दूसरा नाम देवभूमि भी है ! दलितों को मंदिरों में प्रवेश नहीं है ! और उसी उत्तराखंड के हरिद्वार के धर्म संसद17, 18,19 दिसंबर यानी आजसे एक सप्ताह पहले ही संपन्न हुई ! जिसमें अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जो जहरीले भाषणों की झड़ी लगाई गई है ! उसके पीछे के कारण देखा जाए तो, हजारों साल पहले दलीतो ने जो हिंदू धर्म की घृणित जातीव्यवस्था के खिलाफ बगावत की है ! उसके खिलाफ गुस्सा जाहिर हो रहा है ! लेकिन किसी भी वक्ता के मुहसे हिंदू धर्म की उचनिच और उत्तराखंड के मंदिर दलितों के लिए खोलने की बात नहीं आई ! उल्टा उन्हीं के पूर्वजों ने इसी जातीप्रथा से तंग आकर दुसरे धर्म को अपनाया ! क्योंकि उन्हें मस्जिद, गिरजाघरों में बराबर का प्रवेश मिला है ! डॉ. राम मनोहर लोहिया की भाषा में “हिंदू धर्म की कट्टरपंथी और उदारपंथ की पांच हजार वर्ष पुरानी लड़ाई है ! जो आज चरम सीमा पर हमारे देश में चल रही है !”

हरिद्वार की धर्मसभा या कर्नाटक या देश के अन्य क्षेत्रों में अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों के उपर हो रहे हमलों के उदाहरणों से पता चलता है कि ! यह घृणा उसी बात को दर्शाते हैं ! सवाल देश और प्रदेश की सरकारों की अकर्मण्यता का है ! यह वही सरकारे है ! जिन्होंने दलितों तथा आदिवासी और महिलाओं के साथ हुई अत्याचारों की घटनाएं हुईं तो, उन्हें दबाने – मिटाने के लिए क्या – क्या नहीं किया ? यहां तक की जांच तथा घटना के बारे में जानकारी लेने के लिए, जाने वाले लोगों को देशद्रोह के कानून में जेलों में बंद कर दिया है ! और देश के भीतर गृहयुद्ध जैसे संगिन भाषणों को देखते हुए कोई भी,कोई कार्यवाही नहीं करना किस बात का प्रमाण है ?

और प्रधानमंत्री, गृहमंत्री जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर बैठे हुए लोगों की चुप्पी, अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन देने की बात है ! एक तरह से अघोषित हिंदू राष्ट्र की तरफ इशारा करते हुए, उन्होंने भारत की बहुआयामी संस्कृति को मिटाने की शुरुआत कर दी है ! सानेगुरुजी के 125 वी जयंती के अवसर पर यह सब देखकर और भी हैरान करने वाली बात है !

1932 के ऐतिहासिक पुना पॅक्ट के बाद ! महात्मा गाँधी के नेतृत्व में हुई हरिजन यात्रा के दौरान, संपूर्ण देश में हजारों की संख्या में मंदिरों के कपाट हरिजनो के लिए खोले गए थे ! लेकिन कुछ मंदिरों में आज भी हरिजनो को प्रवेश नहीं है ! यह बात साने गुरूजी जैसे संवेदनशील लोगों को बहुत अखरती थी ! और महाराष्ट्र – कर्नाटक के सबसे लोकप्रिय मंदिर पंढरपुर के विठ्ठल मंदिर में हरिजनो को प्रवेश नही था ! देश की स्वतंत्रता नजर के सामने आ रही थी ! लेकिन हरिजनो के लिए विषमतावादी मानसिकता के कुछ लोगों के कारण प्रवेश वर्जित था ! इसलिये सानेगुरुजी ने 1946 के नवम्बर माह में समस्त महाराष्ट्र का ध्यान आकर्षित करने वाली घोषणा कर दी ! कि जबतक पंढरपुर के मंदिर में हरिजनो को प्रवेश नहीं दिया जाता तब तक आमरण अनशन जारी रहेगा !

इस खबरसे संपूर्ण महाराष्ट्रमे जबरदस्त हलचल मच गई ! यह घोषणा बोर्डी नाम के मुंबई के नजदीक एक समुद्री किनारे स्थित गांव में जब गुरूजी अपने भाई के घर पर विश्राम करने के लिए गए थे ! उस समय किए ! तो, एस. एम. जोशी , मधु लिमये, सेनापती बापट, अच्युतराव पटवर्धन और शिरूभाऊ लिमये यह पाच लोग तुरंत बोर्डी गए ! और उन्होंने गुरुजी को समझाने की कोशिश की ! कि इस तरह अचानक अनशन मत करो संपूर्ण महाराष्ट्र मे जनजागृती करने के बाद ही अनशन किजीये ! और इस तरह छ महिनों के प्रचार-प्रसार के बाद ही अनशन करने का निर्णय लिया गया !

इन छ महीनों में राष्ट्र सेवा दल के कलापथक द्वारा संपूर्ण महाराष्ट्र में, तथा अन्य लोगों की तरफ से मंदिर प्रवेश के आंदोलन का काफी जोर-शोर से प्रचार किया गया ! लेकिन मंदिर के बडवे (पंडे) लोगों ने पासा फेका की, अगर महाराष्ट्र का लोकमत मंदिर प्रवेश के तरफसे होगा तो मंदिर हरिजनो के लिए खोला जायेगा !

लेकिन यह बडवे लोगों की एक राजनीतिक चालाकी थी ! तो छ महिनों के बाद एक मई 1948 के दिन साने गुरुजी और सेनापती बापटने पंढरपूर मे जाकर तनपुरे महाराज के मठ में आमरण अनशन शुरू किया !

और इस बीच काफी सारे घटनाक्रम हुए ! जिसमें महात्मा गाँधी के तारो से लेकर आचार्य विनोबा भावे के पत्राचार के बावजूद, गुरूजी का दस दिनों के उपवास के बाद, मंदिर के बडवे मंदिर के दरवाजे हरिजनो के लिए खोलने के लिये राजी हुए ! 10 मई 1948 के रात साने गुरूजी ने 8-35 को अनशन की समाप्ति की ! यह साने गुरुजी के जीवन की अंतिम समय की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी ! क्योंकि भारत की स्वतंत्रता की सिर्फ़ कुछ औपचारिकताएं बाकी थी !

सवाल आजादी के बाद भारत के जाति-धर्म निरपेक्ष समता मुलक जनतंत्र कैसे बनेगा ? और पंढरपुर के मंदिर प्रवेश की लड़ाई उन्होंने उसी के अनुसार लडी है !

लेकिन सालभर के भीतर ही उन्हें निराशा ने घेर लिया ! कि भारत आजादी के बाद भी जो आदिवासी जंगल के बीच बाघों से नहीं डरता ! लेकिन पुलिस या फाॅरेस्ट के गार्ड से डरता है ! और अन्य समस्याओं को लेकर दुखी हो गये थे ! सबसे ज्यादा महात्मा गाँधी की हत्याके कारण 11 जून 1950 के दिन उन्होंने इस दुनिया से विदा होने का निर्णय लिया !

शायद साने गुरूजी, जयप्रकाश नारायण जैसे संवेदनशील लोग जो देश – दुनिया के सवाल पर इतने संवेदनशील होते थे कि, लाखों की जनसंख्या वाले सार्वजनिक सभाओं में रोते थे ! जोकि जेपी भले विवाहित थे ! लेकिन जीवन भर प्रभावती जी के साथ रहकर भी ब्रह्मचर्य का पालन किया ! और सानेगुरुजी तो आजन्म अविवाहित रहे ! इसलिये दोनों के पारिवारिक जीवन की समस्या नहीं थी ! लेकिन दोनों लोगों की समस्याओं के साथ इतने घुलमिल गये थे ! कि वह समस्याओं को अपनी निजी समस्या समझ कर उससे दुखी हो जाते थे ! और भरी सभा में अपने आंसुओं को रोक नहीं पाते थे ! जिस तरह पिछले तीन साल पहले के ! किसानों के नेता श्री. राकेश टिकैत के आंसुओं ने लगभग खत्म हो रहे, किसानों के आंदोलन में जान फुकी है ! यह आंसुओं के परिणाम का सब से ताजा उदाहरण है !

और साने गुरूजी जैसे अति संवेदनशील लोग ! इन समस्याओं से संबंधित भावनिक एकाग्रता होने के कारण ! स्वतंत्रता के तीन साल होने आए, तो भी गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी, और पुलिस के अन्याय – अत्याचारोको देखकर ! बहुत ही बेचैन होकर अपने आप को इस दुनिया से विदा होने का निर्णय ले लिया !

ऐसे लोगों की तुलना में ! हमारी-आपकी संवेदनाएं बहुत थोथी होती हैं ! इस कारण हम लोग आराम से अपना जीवन जीने के आदी हो जाते हैं ! साने गुरूजी के जैसे लोग दुनिया में बहुत बिरले होते हैं ! देश – दुनिया की स्थिति को देखते हुए, कुल मिलाकर अपने जीवन की अर्धशताब्दी पूरी करने के बाद उन्होंने दुनिया से 11 जून 1950 के दिन चले जाना पसंद किया ! आज गुरुजी को हमारे बीच से सशरीर चले जाने को 75 साल होने जा रहे हैं ! और जन्म के 125 साल ! इस दरम्यान गत 30 – 35 सालों से सांप्रदायिक शक्तियों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है ! अभी पूरे विश्व में ख्रीस्त के जन्मदिन के अवसर पर मेरी ख्रिसमस मनाया जा रहा है ! लेकिन भारत में गत दो महीनों से लगातार चर्च तथा प्रार्थना स्थलों पर हिंदूत्ववादी लोग हमले कर रहे हैं ! इसके बीस साल पहले भी गुजरात में राज्य पुरस्कृत घृणा की राजनीति का दर्शन हुआ है !

पहले ख्रिश्चन धर्म के लोगो पर, और बाद में 27 फरवरी 2002 के गोधरा कांड के बाद हजारों की संख्या में अल्पसंख्यक जातियों के लोगों की हत्या, तथा उनके जीवन यापन के संसाधनों को एक पूर्वनियोजित योजना के तहत नष्ट करने का पोग्राम, स्वतंत्रता के बाद पहली बार किसी सत्ताधारी दल द्वारा किया जाता है ! और वही व्यक्ति उस हिंसा की राजनीति करके ही देश के सर्वोच्च पद पर बैठता है ! यह भारत के जनतंत्र की सब से बड़ी खामी के रूप में, इतिहास में दर्ज होने वाली दुर्घटनाओं में से एक है ! और सौ साल पहले के योरपीय खंड के जर्मनी और इटली के हिटलर और मुसोलिनी भी तथाकथित लोकतंत्र के द्वारा ही चुनाव जीत कर दुसरे महायुद्ध में समस्त विश्व के छातीपर मुंग दले है ! इसलिए चुनाव से जीत हासिल कर के सत्ता पर काबिज होना एकमात्र पैमाना नहीं हो सकता है !

आजादी के बाद के मुल्यो, तथा सानेगुरुजी जैसे संवेदनशील लोगो का सब से बड़ा पराजय है ! और सचमुच ही हम सानेगुरुजी के सपनों को पूरा करने के लिए कोशिश करने वाले सभी लोगों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है ! और मै गत पैतिस सालों से भी ज्यादा समय से इस संकट के बारे में लगातार लिख – बोल रहा हूँ ! लेकिन हमारे साथियों को समझाने में मै अभितक कामयाब नहीं हो पाया हूँ ! अब कोई भारत जोडो तो कोई नफरत छोडो जैसे सांकेतिक काम कर रहे हैं ! लेकिन सांप्रदायिकता तथा जाति-धर्म का द्वेष का प्रचार-प्रसार एक संघठन गत सौ साल से लगातार कर रहा है ! और जिसके परिणामस्वरूप आज इतिहास के क्रम में इतनी सांप्रदायिकता नही थी ! जितनी आज फैल चुकी है ! साने गुरूजी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि उन्होंने जीन कारणों से अपने आपको इस दुनिया से विदा कर लिया था ! उसे बेहतर बनाने के लिए हम सभी साथियों ने अपने आपको झोंक देना चाहिए ! अन्यथा हम यह लिखने – बोलने की स्थिति में भी, रहेंगे की नही मुझे शंका है ! और सबसे बड़ी जिम्मेदारी राष्ट्र सेवा दल के देशमरके साथीयो की है ! जिसे सानेगुरुजी अपना प्राणवायु कहा करते थे !

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