अपने-अपने अनुमान का मंदिर

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Dhruv Shukla

— ध्रुव शुक्ल —


अपने से अनजान-सी काया में
अपने ही आह्वान का मंदिर है
अपनी ही पहचान की माया में
अपने ही अरमान का मंदिर है
अपने ही सुनसान की छाया में
अपने ही अनुमान का मंंदिर है


आकाश तीर्थ है सब का
प्रतिष्ठित मूरत सब की
वायु में घुला हुआ जप सब का
जल में तृप्ति सभी की
पृथ्वी में विश्वास सभी का

सब के गुरु हैं शब्द
स्वर हैं प्रार्थना सब की
देह के इसी एक मंदिर में
प्राण साक्षी सब के

यही एक मंदिर है सब का

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