— आनंद कुमार —
डा. लोहिया ने गोवा से लेकर मणिपुर तक भारतीय राष्ट्रीयता का प्रकाश फैलाया। नेपाल और तिब्बत के दुःख को स्वर दिया। अमरीका में रंगभेद के खिलाफ सत्याग्रह का साहस दिखाया। ब्रिटिश पूंजीवाद और साम्राज्यवाद का जु़डवापन और चीनी साम्यवाद और विस्तारवाद की एकजुटता के खिलाफ लड़े। वर्ग, नस्ल, जाति और लिंगभेद के चतुर्भुजी अन्यायों के निर्मूलन को सप्तक्रांति का सर्वोच्च लक्ष्य बताया। स्वतंत्रता, समता और संपन्नता की त्रिवेणी के प्रवाह को समाजवादी समाज की रचना की बुनियादी शर्त बताते हुए नागरिक आजादी, सत्ता के विकेंद्रीकरण और उपयुक्त टेक्नोलॉजी की दिशा में आविष्कार की जरूरत समझायी। लेकिन लोहिया को चौतरफा चुनौतियों मिलीं। उनके जीवनकाल में गांधी का संरक्षण और मुट्ठी भर सत्याग्रही समाजवादियों का समर्थन उनकी कुल पूंजी थी। उनके समाजवादी दुनिया की रचना के आकर्षक सपने को उनके देहांत के
बाद जाति, भाषा, क्षेत्रियता और राष्ट्रीयता के चश्मों से देखते हुए धुंधला दिया गया है। सत्ता की सीढ़ीदार बनाने को प्राथमिकता दी गई। इससे स्वतंत्रता और नागरिक अधिकार, लोकतंत्र और विकेंद्रीकरण, समता और संपन्नता, पूंजी निर्माण और टेक्नोलॉजी सुधार, स्वावलंबन व विश्वनागरिकता और स्थानीय शासन और विश्व सरकार के बीच फासला बढ़ गया है।वैश्विक पूंजीवाद और प्रभुजाति वर्चस्व के दो पाटों में फंसी दुनिया के दुःखों की दवा नहीं मिलने से लोहिया विचार की नयी प्रासंगिकता है। लेकिन लोहिया विचार के नये वाहक और नये वाहन चाहिए।