— विनोद कोचर —
सुप्रीमकोर्ट की न्यायमूर्ति जस्टिस बी वी नागरत्ना अपने अनेक क्रांतिकारी,संवेदनशील और संविधान सम्मत फैसलों के लिए हमेशा सम्मानपूर्वक याद की जाएंगी। नोटबन्दी को गैरकानूनी करार देने वाली जस्टिस बी वी नागरत्ना द्वारा, इसके पहले भी कई ऐसे फैसले दिए गए हैं जो न केवल उनकी न्यायप्रियता अपितु उनके प्रगतिशील सामाजिक और आर्थिक ,क्रांतिकारी नजरिये को भी प्रतिबिंबित करते हैं। उनका ऐसा ही एक फैसला पढ़कर मुझे याद आया आरएसएस के पूर्व सरसंघचालक श्री कु सी सुदर्शन का वो दकियानूसी बयान जिसमें उन्होंने सुश्री सोनिया गांधी को अवैध संतान बताकर आरएसएस के पतनशील चरित्र को उजागर किया था। जस्टिस बी वी नागरत्ना ने साल2021में कर्नाटक पॉवर ट्रांसमिशन कारपोरेशन के एक सर्कुलर के खिलाफ सुनाए गए क्रांतिकारी फैसले में ये लिखा था कि,
“…इस दुनिया में कोई बच्चा बिना मां-बाप के, पैदा नहीं होता।बच्चे के पैदा होने में उसका कोई योगदान नहीं होता।इसलिए कानून को इस तथ्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि नाजायज मां-बाप हो सकते हैं लेकिन नाजायज बच्चे नहीं।”
सोनिया गांधी को नाजायज संतान बताने वाले सुदर्शन जी के बयान का प्रतिवाद करते हुए, तब मैंने अपने प्रेस वक्तव्य में, तत्कालीन लोकसभा सांसद और समाजवादी चिंतक मधु लिमये द्वारा 1975 में, लोकसभा में पेश उस मातृवंश विधेयक का भी उल्लेख किया था जो डॉ राममनोहर लोहिया के ‘सप्त क्रांति’ सूत्रों के सातवें क्रांति सूत्र, ‘स्त्री-पुरूष समता की क्रांति’ पर आधारित था।
मधुजी द्वारा पेश मातृवंश विधेयक के अनुसार,
‘भारत के किसी भी नागरिक को अपने पिता का नाम या माता का नाम, अपने नाम के साथ जोड़ने का अधिकार रहेगा।पिता का नाम लगाना ही अनिवार्य हो, ऐसा नियम नहीं चल सकता।किसीको भी ‘दासी पुत्र’ या ‘अवैध’ कहना कानूनी अपराध होगा।इस कानून का उल्लंघन करने वाले को एक महीना सश्रम कारावास और 500रुपये जुर्माना होगा।जुर्माना न देने की स्थिति में, एक महीने की और सजा होगी।’
संसद में यह विधेयक पेश करते समय मधुजी ने कहा था कि, ‘आज विश्व में सप्तक्रांति का सप्तरंगी इंद्रधनुष निर्माण हुआ है और ये सभी क्रांतियां परस्पर संबद्ध हैं।’
इस विधेयक को अगर तत्कालीन महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वीकार कर लिया होता तो नर-नारी समता का ये क्रांति सूत्र उसी समय कानून की शकल अख्तियार कर चुका होता और सोनिया गांधी को अवैध संतान कहने के अपराध में सुदर्शनजी को जेल की हवा खानी पड़ जाती।
बहरहाल, नोटबन्दी को ग़ैरकानूनी करार देने वाली जस्टिस बी वी नागरत्ना का हम अभिनंदन करते हैं।
बकौल दुष्यंत:-
एक चादर सांझ ने सारे नगर पर डाल दी!
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है!
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है!!