— डॉ. जयन्त जिज्ञासु —
इस देश के वंचितों के लिए 43 वर्षों तक अनवरत संसद में आवाज़ बुलंद करने वाले, आज़ाद भारत में साढ़े चार साल जेल की यातना भोगने वाले, ज़ोर-ज़ुल्मत-वर्चस्व के ख़िलाफ़ सड़क को गरमा कर रखने वाले, लोकसभा का कार्यकाल बढ़ा कर 6 साल किये जाने के ख़िलाफ़ मधु लिमये के साथ इस्तीफ़ा देने वाले देश के दूसरे मात्र सांसद, 1974 से 2019 तक देश का हर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले दार्शनिक क़िस्म के प्रखर समाजवादी नेता, राष्ट्रनिर्माता, लोकपुरुष, मंडल मसीहा शरद यादव का जन्म 1 जुलाई 1947 को मध्यप्रदेश के होशंगाबाद (अब नर्मदा पुरम) ज़िले की बाबई तहसील के एक छोटे-से गांव आंखमऊ के एक किसान नंदकिशोर यादव व सुमित्रा यादव के घर हुआ था. ग्रामीण परिवेश में पले बढ़े शरद यादव की शिक्षा-दीक्षा मध्य प्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर ज़िले में हुई. उन्होंने जबलपुर के राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. पढ़ाई में अव्वल रहने वाले शरद यादव गोल्ड मेडल से भी नवाज़े गए. उन्होंने जबलपुर से छात्र राजनीति में कदम रखा. वे 1970 में जबलपुर विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे. महान समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया को अपना आदर्श बनाने वाले शरद यादव ने मात्र 27 वर्ष की उम्र में 1974 में पहली बार जबलपुर से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा और ऐतिहासिक जीत दर्ज़ की. उन्हें दादा धर्माधिकारी की सलाह पर लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने जनता प्रत्याशी (पीपल’स कैंडिडेट) बनाया, और चुनाव चिह्न था – हलधर किसान. जब देश में लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाया गया, तो विरोधस्वरूप इस्तीफ़ा देने वाले सिर्फ़ दो सांसद थे- एक मधु लिमये, और दूसरे शरद यादव. तब शरद यादव की प्रशंसा करते हुए जयप्रकाश नारायण ने उन्हें पत्र लिखा:
प्रिय शरद,
तुमने लोकसभा से त्यागपत्र देकर त्याग का जो साहसपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए थोड़ी है. देश के नौजवानों ने तुम्हारे इस क़दम का हृदय से स्वागत किया है, जो इस बात का सबूत है कि युवा वर्ग में त्याग, बलिदान के प्रति आदर की भावना क़ायम है. तुम्हारे इस क़दम से लोकतंत्र के लिए संघर्षशील हज़ारों युवकों को एक नयी प्रेरणा मिली है. मेरा विश्वास है कि इस उदाहरण से उनमें वह सामूहिक विवेक जाग्रत होगा जो लोकतंत्र के ढांचे में पुनः प्राण-प्रतिष्ठा करने के लिए आवश्यक है.
मैं तुम्हें अपनी हार्दिक शुभेच्छाएं और आशीर्वाद भेजता हूं.
तुम्हारा सस्नेह,
जयप्रकाश
शरद यादव का जीवन घटनाओं से भरा है, रोज़ कोई घटना हो जाती थी. मीसा में 2 बार वे बंद रहे. कुल 18 महीने की सज़ा भोगी. वे पहले नेता हैं जो आपातकाल के पहले भी मीसा के तहत जेल भेजे गये. विभिन्न आंदोलनों में वे मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़, जबलपुर, इंदौर, विलासपुर, बालाघाट, सिवनी, भोपाल व रीवा, उत्तरप्रदेश के एटा तथा चंडीगढ़ के जेलों में रहे. संघर्ष ही करते रहे, चैन से नहीं बैठे. जेपी आंदोलन के वे यशस्वी सेनानी रहे.
तेज़तर्रार भाषणों की शैली ने उन्हें जननायक बना दिया था और वे 1977 में छठवीं लोकसभा के लिए दुबारा जबलपुर से सांसद चुने गए.
साल 1978 में वे जनता पार्टी के यूथ विंग युवा जनता के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. 1980-84 तक युवा लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. 1985 में लोक दल के राष्ट्रीय महासचिव बने। 1980 में जबलपुर से पराजय के बाद संजय गांधी के असामयिक निधन के चलते अमेठी उपचुनाव में वे चौधरी चरण सिंह के कहने पर राजीव गांधी के ख़िलाफ़ विपक्ष के साझा प्रत्याशी बने. 1984 में इंदिरा सहानुभूति लहर में बदायूं से हारने के बाद 1986 में लोकदल की ओर से वे पहली बार संसद के उच्च सदन राज्यसभा के सदस्य चुने गए. उसके बाद तो जैसे उनके राजनैतिक सफ़र को पंख लग गए और वह नित नए मुकाम को छूने लगे.
1988 में लोकदल, जनमोर्चा व जनता पार्टी के विलय के फलस्वरूप बने जनता दल के गठन में ताऊ देवीलाल, वीपी सिंह, श्री चंद्रशेखर व शरद यादव की अहम भूमिका थी. शरद यादव को जनता दल का महासचिव बनाया गया. 1989 में उत्तर प्रदेश के बदायूं से लोकसभा के लिए वे निर्वाचित हुए.
1989 से 90 तक विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में वे कपड़ा और फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज विभाग के मंत्री बने. और, यह उनके राजनैतिक जीवन का उत्कर्ष था जब वे मंडल कमीशन की एक अहम सिफ़ारिश लागू कराने वाले सूत्रधार बने. मधेपुरा के मुरहो से उन्होंने मंडल रथ निकाल कर उत्तर भारत में लोगों की सुषुप्त चेतना को जाग्रत करने का काम किया, और मंडल मसीहा कहलाए. केंद्र में शरद यादव, रामविलास पासवान व मधु दंडवते जैसे मंत्री तो राज्य में लालू प्रसाद व मुलायम सिंह जैसे मुख्यमंत्री ने मंडल आंदोलन को लोगों के ज़ेहन में गहरे घुसा दिया, और गांव-गली, खेत-खलिहान तक में उसकी अनुगूंज सुनाई पड़ने लगी.
प्रधानमंत्री वीपी सिंह जी समेत भारत सरकार के अधिकांश मंत्रियों की मौजूदगी में 8 अक्टूबर 1990 को पटना के गांधी मैदान में जनता दल की रैली में शरद यादव ने कहा था, “जनता दल ने अपने वायदे के मुताबिक हजारों सालों के शोषित पिछडों को आरक्षण देकर न केवल अवसरों में भागीदारी की है, बल्कि हमने उनकी सुषुप्त चेतना और स्वाभिमान को भी जगाने का काम किया है. जो हाथ अकलियतों के खिलाफ़ उठे, उन्हें थाम लो. तुम्हारे इस आंदोलन में अकलियतों का साथ कारगर साबित होगा”.
उसी रैली में लालू प्रसाद ने कहा था, “चाहे आसमान धरती पर गिर जाए या धरती आसमान में लटक जाए, मंडल कमीशन लागू होकर रहेगा। इस पर हम कोई समझौता करने वाले नहीं हैं”.
शरद यादव कहते थे, “हमारे जैसा आदमी मन में कल्पना करता है कि मरने के बाद नहीं कुछ पाना है, ज़िंदा रहते सब चीज़ ठीक करना है. जो लोग मेरे बारे में कहते हैं, जोड़-तोड़, फलाना-ढिमका, ये सब ग़लत शब्द हैं मेरे बारे में, न मैं कभी इनसे प्रभावित होता हूँ. और, न मैं चाणक्य-वाणक्य जैसी बातों से ख़ुश होता हूँ. मैं तो किसान मज़दूर का बेटा हूँ, इस जाति व्यवस्था, सामाजिक-आर्थिक जो ग़ैरबराबरी है, उसके ख़िलाफ़ संघर्षरत एक संग्रामी सिपाही हूँ. मैं किसी का लॉयल नहीं रहता, मैं उसूल का आदमी हूँ. मैंने किसी को नहीं छोड़ा, चौधरी चरण सिंह के मरणासन्न तक उनके साथ रहा. चौधरी देवीलाल इस पार्टी से चले गए बाहर, मैंने नहीं छोड़ा उनको. मुलायम सिंह इस पार्टी को छोड़कर बाहर चले गए. और, मैं किसी का आदमी नहीं हूँ, मैं उसूल का आदमी हूँ. कौन आगे और कौन पीछे है, इस बात पर न कभी मैंने राजनीति की है, न राजनीति करता हूँ. कौन किसके लिए क्या कह रहा है, इस पर भी मैं ज़्यादा नहीं जाता. और, मैं ये भी मानता हूँ कि आने वाला समय जो है; मैं तो अपने को इस देश में ग़रीब आदमियों की पार्टी बन जाए, उसमें ज़्यादा लगा रहता हूँ.”
1991 में शरद यादव जनता दल संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष बने. मंडल लगने के बाद 1991 में बदायूं से आश्चर्यजनक हार के बाद उसी वर्ष वे मधेपुरा (जहाँ एक प्रत्याशी की हत्या के चलते चुनाव स्थगित हो गया था, और सीट खाली थी) से 10वीं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. 1993 में वह समय आया जब वे जनता दल का प्रमुख चेहरा बने और जॉर्ज फ़र्णांडीस को हरा कर जनता दल पार्लियामेंट्री पार्टी के नेता बने. सीढ़ी दर सीढ़ी क़दम बढ़ाते हुए शरद यादव 1995 में जनता दल के कार्यकारी अध्यक्ष बने.
शरद यादव ने अपने जीवन में नैतिक व सैद्धांतिक आग्रह का पालन हमेशा किया. 1995 में जब जैन हवाला मामले में उनका नाम उछला, तो उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया, और कहा कि जब तक वे बेदाग़ नहीं साबित हो जाते, सदन में क़दम नहीं रखेंगे. इस वजह से 1996 में गठित यूनाइटेड फ़्रंट की सरकार में वे मंत्री भी नहीं बने. पर, यूनाइटेड फ़्रंट के आकार लेने में उनकी महती भूमिका रही.
1996 में एक बार फिर बिहार की मधेपुरा सीट से वे लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. संसद की वित्त समिति के वे चेयरमैन बने.
इस तरह शरद यादव उन चुनिंदा 5 राजनेताओं में से एक रहे जिनको देश के 3 राज्यों से चुन कर लोकसभा पहुंचने का गौरव हासिल हुआ था. देश के 3 राज्यों से लोकसभा सदस्य निर्वाचित होने का गौरव उनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, नरसिम्हा राव और अटल बिहारी वाजपेई तथा पूर्व स्पीकर मीरा कुमार को ही हासिल है. मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार की राजनीति का अहम चेहरा रहे शरद यादव ने अपने हुनर और जुदा अंदाज़ से केंद्र की राजनीति में भी अपनी अलग पहचान बनाई.
1997 में वे जनता दल के पूर्णकालिक अध्यक्ष बने. 1998 में हार के बाद 1999 में लोकसभा के लिए पुनः मधेपुरा सीट से निर्वाचित हुए.
1999 में जनता दल में एक और टूट हुई, देवेगौड़ा ने जनता दल (सेक्युलर) बना लिया, और शरद यादव के नेतृत्व में जनता दल और रामकृष्ण हेगड़े की पार्टी लोकशक्ति का विलय हो गया, और जनता दल यूनाइटेड अस्तित्व में आया.
1999 में शरद यादव राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का हिस्सा बने और अटल सरकार में 1999 से 2001 तक नागरिक उड्डयन विभाग के मंत्री रहे. 2001 से 2002 तक श्रम मंत्री व 2002 से 2004 तक खाद्य, उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के मंत्री रहे.
2003 में जनता दल यूनाइटेड और समता पार्टी के विधिवत विलय के बाद शरद यादव 2006 से लगातार 2016 तक जनता दल (यू) के अध्यक्ष बने रहे. वे 2009 में एनडीए के कार्यकारी संयोजक बने और 2010 से 2013 तक संयोजक के रूप में काम करते रहे, और दो बार भारत बंद कराया.
2004 में मधेपुरा से हार के बाद वे दूसरी बार राज्यसभा सदस्य बने. राजनैतिक ऊंचाइयों पर पहुंचने का सिलसिला बदस्तूर जारी रखते हुए 2009 में वे 7वीं बार लोकसभा के सदस्य निर्वाचित हुए, और संसद की शहरी विकास समिति के चेयरमैन बने.
साल 2012 में संसद में उनके बेहतरीन हस्तक्षेप के लिए उन्हें उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार से नवाज़ा गया. 2014 में मधेपुरा से लोकसभा का चुनाव हारने के बाद वे तीसरी बार राज्यसभा के सदस्य और 2016 में चौथी बार राज्यसभा के सदस्य हुए.
एनडीए में शामिल होने के लेकर जब मैं उन्हें कुरेदने की कोशिश करता था कि क्या उन्हें अपने फ़ैसले पर कभी अफ़सोस होता है, तो वे थोड़ा रुक कर गहरी सांस लेते हुए कहते थे, “इतिहास में दुविधा के लिए कोई जगह नहीं हुआ करती. इतिहास बहुत बेरहम होता है, बड़ा निष्ठुर व निर्मम मूल्यांकन करता है. उस वक़्त एनडीए के साथ नहीं जाने का देवेगौड़ा जी का निर्णय सही था, मैं ग़लत था”. यह अहसास उनके आत्मनिरीक्षण की प्रकृति का सूचक है.
2017 में शरद यादव ने देश के ताने-बाने की हिफ़ाज़त के लिए विपक्षी दलों को गोलबंद कर “साझा विरासत बचाओ अभियान” शुरू किया जिसके सम्मेलन दिल्ली, मुंबई, जयपुर, इंदौर आदि शहरों में आयोजित हुए.
2019 का लोकसभा चुनाव वे हार गए, पर लोगों के लिए आवाज़ उठाने के उनके जज़्बे में कोई कमी नहीं आई. मार्च 2022 में शरद यादव ने लोकतांत्रिक जनता दल का विलय लालू प्रसाद नीत राष्ट्रीय जनता दल में करते हुए कहा कि अब समाजवादी राजनीति को तेजस्वी यादव आगे ले जाएंगे.
1974 के अपने प्रथम लोकसभा चुनाव से लेकर 2019 के अपने आखिरी चुनाव तक देश का कोई ऐसा आम चुनाव नहीं है जो शरद यादव ने न लड़ा हो! जनहित के उनके सवालों व ओजस्वी भाषणों से देश की संसद भरी हुई है.
शरद यादव ने अपने राजनैतिक जीवन में तीन सबसे बड़े प्रयास किये:
पहला, मंडल आयोग की एक अहम सिफ़ारिश – पिछड़ों के लिए केंद्रीय सेवाओं में 27 फीसदी आरक्षण लागू करवाने में बेहद सक्रिय व अहम भूमिका निभाई.
दूसरा, महिला आरक्षण में क़ोटे के अंदर क़ोटे की लड़ाई में एक धाकड़ पार्लियामेंटेरियन की तरह सदन में संज़ीदा व तर्कपूर्ण बहस की. पार्लियामेंट की उस वक़्त की प्रोसिडिंग उठा कर देखते हैं तो नायाब मिसाल उभरती है जब वे अपने ही जनता दल की अगुवाई वाली सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री आइ. के. गुजराल तक को नहीं बख़्शते, और कहते हैं, “प्राइम मिनिस्टर क्या भगवान होता है? जब तक पिछड़े-पसमांदा तबके की महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता, हम सुकरात की तरह ज़हर पी लेंगे, लेकिन रिग्रेसिव फॉर्म में लागू नहीं होने देंगे.”
फिर, यूपीए II के दौरान क़ोटे में क़ोटा पर बहस करते हुए उन्होंने कहा, “मैं कहता हूँ सुकरात अकेला मर गया ज़हर खाकर, हम ज़हर खाकर इस सदन में मर जाएंगे लेकिन सच ये है कि हिन्दुस्तान के 90-95 ℅ लोगों का गला काट कर महिला रेज़र्वेशन लाने नहीं देंगे! कौन कहता है महिला आरक्षण, हम कहते हैं सौ फ़ीसदी करो, लेकिन भारत की हक़ीक़त को छोड़ कर करोगे, और कहोगे कि सबलोग सहमत हो जाओ? इस देश की माँएं गुलाम हैं तो जाति व्यवस्था के चलते. जीवन के हर क्षेत्र में भरे हुए हैं हज़ारों वर्षों से देश चलाने वाले लोग चाहे ब्यूरोक्रेसी हो चाहे मीडिया हो चाहे सरकारें हों! सिर्फ़ सदन में थोड़ा-बहुत चेहरा बदला है. ग़रीबों के हाथ में वोट आया है तो हर तरह का इंसान यहाँ, हर बिरादरी का मामूली आदमी आया है. तो उसकी संख्या घटाने के लिए ये लेकर आए हो! हिन्दुस्तान की माँ आज़ाद हो सकती है, हर तरह की बीमारी मिट सकती है, तोड़ो जाति को. हम सारे रेज़र्वेशन वापस करेंगे. जाति बंधन करके मुट्ठी भर लोग इस देश को हज़ारों बरस से चला रहे हैं. लोकतंत्र में कुछ संख्या में हमलोग यहां आ गए, आपके दिल और दिमाग़ में दर्द है. हो सकता है आपके मन में न हो! लेकिन ये महिला रेज़र्वेशन इस देश के शूद्रों-अति शूद्रों की संख्या घटाने के लिए लेकर आए हैं.”
और, शरद यादव समेत लालू प्रसाद व मुलायम सिंह की ही देन है कि संसद में 177 के आसपास जो सिर्फ़ एक खास तबके की ही महिलाएं आज से 25 साल पहले पहुंच जातीं, उस पर रोक लगी हुई है, और आस बंधी हुई है कि जब कभी लागू होगा तो उस फेहरिस्त में फूलन देवियों, भगवती देवियों व सकीना अंसारियों की जगह भी बची रहेगी.
तीसरा, जातिवार जनगणना के विमर्श को ग़ज़ब की धार शरद यादव ने प्रदान की, और दलों के दायरे से परे हर धड़े के उपेक्षित तबके के सांसदों को अनेक बार इस मुद्दे पर उन्होंने गोलबंद किया.
सुपर स्पेशियलिटी वाले संस्थानों जैसे एम्स में रेज़र्वेशन लागू कराने में शरद यादव की प्रभावी भूमिका का सहज अंदाज़ा उस वक़्त संसद में उनके लगातार दमदार हस्तक्षेप से लगता है.
मंडल आंदोलन के दौरान कमीशन की सिफ़ारिशों को लागू करने की घोषणा के बाद जब वे मंडल रथ लेकर निकले थे, तो उत्तर भारत के कोने-कोने में उनका दार्शनिक भाषण हुआ. उसकी एक झलक उनकी इस तक़रीर में मिलती है, “जितने लोग यहाँ आए हो, अब लड़ाई महाविद्यालय में नहीं, अब लड़ाई ले जाना है हल पर, लड़ाई ले जाना है खेत पर, खलिहान पर. लड़ाई ले जाना है हिन्दुस्तान के बाज़ार में, झुग्गी और झोपड़ी में. वहीं है आपका आदमी, वहीं है इस देश का मालिक. मालिक को सड़क पर उतारने का काम करना है हक़ के लिए, और शांति के साथ करना है, ये मैंने उस दिन आपसे कहा था. आजकल बहस चली हुई है कि वीपी सिंह ने इस देश को जाति में बांट दिया. हम पार्लियामेंट से बाहर इस बहस को लाना चाहते हैं. महात्मा बुद्ध और महावीर, ये दो महापुरुष पैदा हुए जिन्होंने कहा – जाति तोड़ो, जाति गुनाह है, जाति पाप है. वो भगवान थे इस देश के. कबीर और नानक जिन्होंने कहा कि जाति तोड़ो. आंदोलन करने वाले लोगो, महात्मा फूले, बाबा साहेब अम्बेडकर, पेरियार, लोहिया, जयप्रकाश, गांधी, ये वो शानदार लोग हैं जिनको दुनिया और देश की जनता मानती है कि ये महापुरुष हैं. स्वामी दयानंद, इन सारे लोगों का सपना और अरमान, स्वामी विवेकानंद, इन सब लोगों का अरमान था कि हिन्दुस्तान की जाति व्यवस्था मिटे! मैं पूछना चाहता हूँ कि दुनिया की सबसे लम्बी गुलामी किसकी है? हम हिन्दुस्तानियों की है, हम भारतीयों की है. सबसे लम्बी उम्र की गुलामी हमने पार की है. दुनिया में एक हमलावर नहीं है जिसके सामने हम जीतने का काम किये हैं. कोई कारण नहीं है, मुट्ठी भर लोगों ने कहा, हम राज करेंगे!”
लालू प्रसाद (फॉडर केस) और लालकृष्ण आडवाणी (हवाला केस) दोनों चार्जशीटेड थे, मगर प्रधानमंत्री पद से हटते हुए संपूर्णता में दिए गए एचडी देवेगौड़ा के भाषण के एक अंश को चल रही जांच के बीच में एक मोटिव के तहत अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा संदर्भ बना कर कुछ इशारा करने पर शरद यादव ने लोकसभा में उठ कर प्रतिकार किया। उन्होंने कहा, “अध्यक्ष जी, आदरणीय अटल जी (से मैं कहूं), जो मैं महसूस करता हूं, वो (देवेगौड़ा जी) ठीक बोले और निश्चित तौर पर जो उन्होंने कहा, उस भावना को लेना चाहिए कि उनकी पार्टी के भी लोग बहुत से केसों में फंसे हुए हैं। उन्होंने किसी मामले में किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं किया है। ये बात उन्होंने कही थी, अपने दिल से कही थी, उस दिन दिल से बोल रहे थे वो। इसलिए उसको इस संदर्भ में इधर-उधर मोड़ना, ये वाजिब बात नहीं है”।
अटल बिहारी ने इस पर तंज़ करते हुए कहा, “मैं कोई तोड़-मोड़ नहीं कर रहा हूं, मैं शब्दों का सीधा-सादा अर्थ निकाल रहा हूं। उन्होंने ये साफ़ कहा कि जिन पर आरोप है और जिनकी जांच हो रही है, उनमें एक उनकी पार्टी का मुख्यमंत्री भी है। यही तो मैं कह रहा हूं। मगर यादव जी, आपको मुझसे थोड़ा ज़्यादा पता होना चाहिए। कृपया, बता दीजिए सदन को, वो कौन मुख्यमंत्री है”।
इस पर शरद यादव ने जवाब दिया, “ये आप भी जानते हैं। लालू प्रसाद जी हमारे अध्यक्ष हैं। फॉडर स्कैम की इन्क्वायरी चल रही है। इन्क्वायरी के कोई नतीजे नहीं आए हैं। उसके पहले ही शक कर देना, उसके पहले ही कोई चीज़ का इशारा कर देना, ये वाजिब नहीं है अटल जी। अध्यक्ष जी, आडवाणी जी के ऊपर आरोप रहा है। एक मेंबर ने हमने कभी नहीं कहा होगा कि वो… हमने नहीं कहा। फिर मैं कह रहा हूं कि ये इंक्वायरी चल रही है। और अभी कोई फ़ैसला नहीं आया है। इसके पहले यदि आप कोई मोटिव रखेंगे, ये वाजिब बात नहीं है”।
अटल बिहारी फिर नहीं रुके और कहा, “अध्यक्ष जी, मेरे मित्र श्री शरद यादव श्री लालू प्रसाद यादव की आडवाणी जी के साथ तुलना न करें। आडवाणी जी पर आरोप लगा, आडवाणी जी ने लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी, पार्लियामेंट आने से मना कर दिया और कहा कि जब तक आरोप हटेगा नहीं, मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा। और आपके मुख्यमंत्री घोषणा कर रहे हैं कि अगर मैं जेल भेज दिया गया तो वहां से भी मुख्यमंत्री का काम चलाएंगे”।
शरद यादव ने इस पर ज़ोरदार जवाब दिया, “अटल जी, आप अकेले ऐसा मत समझिए। इस पार्टी में भी लोग हैं। मैं भी था इस सदन में इसमें, आप कंपेरिजन की बात करते हैं, यानी इस सदन में हम भी थे, हमने कोई गुनाह नहीं किया, हमको भी यहां फंसाया गया, और सच्चे लोगों का आज भी जो बिहार में हैं, दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। तब आप कोई बात कहेंगे, तब मैं मानूंगा। इसके पहले मत कहिए। तुलना जो है, हां ठीक है हमलोग जो हज़ारों बरसों में पहली बार आए हैं, हमारी और आपकी तुलना नहीं हो सकती, वाजिब बात है। वाजिब बात है, आपकी ज़बान बहुत बढ़िया है, ये पूरा सदन आपका है, हम सब जानते हैं। लेकिन, ऐसा मत करिए कि हमारे ऊपर आरोप लगने के पहले… दोष लग जाए तो ज़रूर आप कहिए, मैं आपको नहीं रोकूंगा। तुलना करना, सही बात कह रहे हैं आप, हमारी तुलना नहीं हो सकती। हमारी (लालू जी) और उनकी (आडवाणी जी) तुलना नहीं हो सकती। आपकी और हमारी तुलना नहीं हो सकती। हम जब बोलेंगे, हमारी बात नहीं छपेगी, आपकी सब पूरी बात छपेगी। हम सब जानते हैं इसको। आप मत करिए इसको। इस बात को मत लगाइए। यानी इस सदन में आप भी बोले हैं बजट पर, और मैं भी बोला हूं, आपका पूरा बयान पूरे देश में छपा है, और मेरा पांच लाइन नहीं छपा है। हममें और आपमें अंतर है, ज़रूर अंतर है। आप जो अभी वर्ण व्यवस्था की बात कर रहे थे, आप मतलब वर्ण के प्रभाव के आदमी हैं अटल जी, इसीलिए आप मौज में हैं अटल जी। हममें और आपमें ज़रूर अंतर है, इसमें कोई शक नहीं। हमारी, आपकी तुलना नहीं हो सकती है”।
और फिर बहुत चालाकी से अटल बिहारी ने कहा, “अध्यक्ष जी, मुझे अफ़सोस है कि सारे विवाद में मीडिया को घसीटा जा रहा है। ये तरीक़ा ठीक नहीं है। कभी-कभी मेरा वक्तव्य भी नहीं छपता है और आपका छपता है”।
शरद यादव ने इस पर कहा, “ठीक कहा मैंने, सच मानो!”
फिर मुलायम सिंह खड़े हुए और कहा, “इन्होंने कहा, ए शरद जी… (फिर शरद यादव मुलायम सिंह को बोलने देते हैं, क्या अंडरस्टैंडिंग थी! अटल बिहारी इल्ड नहीं कर रहे थे, फिर भी मुलायम सिंह अपनी बात कहते रहे जो सुनने पर लगा कि ज़रूरी था कहा जाना।) अदालत ने जब मुज़फ्फ़रनगर की घटना में मुझे निर्दोष साबित कर दिया है तो आप क्यों बोलते रहते हैं? और रोज़ाना आप बोलते है। और यही बात है अध्यक्ष महोदय तो और भी बातें निकलेंगी। बहुत-सी बातें मेरे पास हैं, सभी निकलेंगी, ऐसा मत समझिए। जब मुज़फ्फ़रनगर की घटना में जज का जजमेंट आ गया है, हमारे ऊपर कोई आरोप नहीं, उसके बाद भी ये बोलते रहते हैं… ये रोज़ाना बोले जाते हैं। और अगर ये है तो चीरफाड़ की जाएगी तो इन्हें पता चल जाएगा”।
अलाव जल रहा था। शरद यादव हाथ सेक रहे थे, रात के 9 बजने वाले थे। देर शाम का यह वह समय होता था जब वे तसल्ली से बातें करते थे, और कुछ अनसुनी बातें साझा करने के बाद ठठा कर हंसते भी थे, आज से 6 वर्ष पूर्व उन्होंने मुझसे इस वाक़ये को साझा किया था, और बताया था कि उस दिन की बहस के बाद वाजपेयी जी पानी-पानी थे। संसद की बहस ख़त्म होने पर बाद में फिर अटल बिहारी ने शरद यादव से कहा, “आपके मुख्यमंत्री और अध्यक्ष लालू प्रसाद आडवाणी जी नहीं हो सकते! कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली!” इस पर शरद यादव ने एजिटेटेड होकर कहा था, “पहली बार आप असल बात बोल रहे हो पंडित जी कि लालू तो गंगू तेली (गांगेय और तैलंग भी राजा थे) के वंशज हैं, मगर आडवाणी राजा भोज के। पंडिताई आखिर छलक ही जाती है… क्या कीजिए, नीचे तो हमने बदल दिया, मगर ऊपर (प्रेस गैलरी) आपका ही आदमी है। कल हमने 45 मिनट भाषण किया, 4 लाइन छपी, और आपने 4 मिनट बोला, तो 4 कॉलम में छपा”।
मैंने शरद यादव को थोड़ा छेड़ा (ऐसा करने पर वे बातचीत में थोड़ा खुलते थे, बात को और आगे बढ़ाने में फिर उनका मन लगता था) कि आप अटल बिहारी के वर्ण की धारा और प्रभाव पर इतना कैसे बरस पड़े? उन्होंने कहा, “अटल जी ने मुझे “यादव जी” कह कर उकसाने की कोशिश की और देश-दुनिया को यह बताना चाहा कि मैं लालू प्रसाद का बचाव इसलिए कर रहा हूं कि हम सजातीय हैं। जबकि मैं उसूल की बात कर रहा था कि हमारे रवैये में दोहरापन नहीं होना चाहिए”।
मैं यह मानता हूं कि चंद विचलनों को छोड़ दें तो लालू प्रसाद, शरद यादव, लालू प्रसाद, मुलायम सिंह यादव व रामविलास पासवान भारतीय राजनीति के वो चेहरे हैं जिन्होंने समकालीन संसदीय राजनीति की धारा को अपनी शर्तों पर मोड़ा और स्वाभिमान के साथ राजनीति की। मीडिया निर्मित उदार छवि वाले बड़े बने फिरते नेताओं के सामने ख़ुद्दारी के साथ बहस की, उनके फूहड़ व असंवेदनशील वक्तव्यों तथा उनकी हर जगह हावी होने की प्रवृत्ति पर अपने उर्वर हस्तक्षेप के ज़रिए उन्हें असहज किया, उन्हें थोड़ा लोकतांत्रिक होने पर बाध्य किया। शायद हम फिर ऐसे मंज़र देख सकें क्योंकि नाउम्मीदी कुफ़्र है!
राजनीति के माहिर खिलाड़ी होने के साथ शरद यादव व्यावहारिक व संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी थे. राजनीति में सक्रियता की वजह से उन्होंने थोड़ी देर से सही, लेकिन ठीक समय में 40 वर्ष की उम्र में डॉ. रेखा यादव से विवाह किया.
शरद यादव ज़िंदा आदमी की इबादत के हामी थे. वे संत प्रवृत्ति के लोगों व समाजसुधारकों को गुनते रहते थे. कबीर उन्हें बेहद प्रिय थे, और संचय व संग्रह की प्रवृत्ति से कोसों दूर शरद यादव अक्सर अपने भाषणों में मार्क्स और कबीर को उद्धृत करते हुए कबीर के दर्शन का सार तत्त्व बताते थे:
साईं इतना दीजिए जामे कुटुंब समाय
मैं भी भूखा न रहूँ साधु न भूखा जाय.
वे हमेशा बुद्ध, ईसा मसीह, गुरु नानक, कबीर, रविदास, बसवन्ना, ज्योतिबा फुले, पेरियार और सावित्रीबाई के गंभीर चिंतन को ही भारतीय जनमानस की आत्मा से जोड़कर देखते थे. गांधी के “अंतिम आदमी” व बाबासाहेब आंबेडकर के “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” के नारे के वे पक्षधर थे.
वे ग़रीबों, दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं को चेतनासंपन्न बनाने की खातिर जनजागृति का काम किया करते थे. उनका शायद ही कोई भाषण हो जिसमें उन्होंने पाखंड व अंधविश्वास से लोगों को निकालने के लिए उन्हें झकझोरा न हो! उनका मानना था, “दिल ही मंदिर है”. वे एक प्रबुद्ध इंसान थे। उनका मानना था कि भारत में जातियां सामाजिक कोढ़ है. इसलिए, जाति में आग लगाओ. वे हमेशा जमात बनाने के पक्षधर रहे जो इंसानियत को सर्वोपरि समझे.
शरद यादव जन कल्याणकारी कार्यों में व्यस्त रहने के बाद भी अपने रुचिकर विषयों के लिए समय निकाल ही लेते थे. बचपन से ही उन्हें पढ़ने-लिखने में खूब रुचि थी. उन्हें राजनैतिक लेख लिखने व अन्य लोगों के लिखे लेख पढ़ने में ख़ूब आनंद आता था. उन्हें अच्छा संगीत सुनने का भी बेहद शौक था. आख़िरी फ़िल्म उन्होंने “पाकीज़ा” देखी। कबीर का भजन हीरना कभी-कभी वे मन से गाते थे! ज़मीन से जुड़े होने की वजह से उन्हें कबड्डी, कुश्ती व हॉकी जैसे खेल पसंद थे. शरद यादव गठजोड़ की राजनीति के मंझे खिलाड़ी थे. दोस्ती निभाने में उनका कोई सानी नहीं था. हर राजनैतिक पार्टी में उनके घनिष्ठ मित्र थे. राजनीति के सितारे रहे शरद यादव 12 जनवरी 2023 को देश और दुनिया को अलविदा कह गए, और छोड़ गए ढेर सारी यादें, ढेर सारे क़िस्से जो शरद यादव जैसे नेता को जननेता बनाते हैं.
वस्तुतः, निर्मल जीवन जिया शरद यादव ने.
दास कबीर जतन से ओढ़ी
ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया.
सचमुच, शरद जी अंतिम सांस तक लड़ते रहे लोगों के लिए. 12 जनवरी, 2023 को जिस दिन उन्होंने आखिरी सांस ली, उस रोज़ भी राजस्थान के एक बहुत परेशान आदमी के लिए चिट्ठी लिखी.
अभी हाल तक यूपी में स्थानीय निकाय के चुनाव में आरक्षण के साथ छेड़छाड़ पर आपत्ति करते हुए निधन से 15 दिन पूर्व 29 दिसम्बर को प्रेस विज्ञप्ति जारी करना उनकी प्रतिबद्धता और बेचैनी को दिखाता है! देश में कहीं किसी के साथ अन्याय न हो, इसके लिए वे जीवन भर फ़िक्रमंद रहे!
शरद यादव ने राष्ट्र-निर्माण हेतु वंचित समाज के लिए जो कुछ किया, उससे उऋण नहीं हुआ जा सकता! उन्होंने मंडल के ज़रिए दलित-पिछड़ा-आदिवासी एकता के लिए समाज को झकझोरने का जतन किया. शोषितों की सुषुप्त चेतना को जागृत करने की कोशिश की.
शरद यादव इतने आत्मीय नेता रहे कि बातचीत में कभी अहसास ही नहीं होने देते थे कि आप उनसे छोटे हैं। बस एक बार उन्हें इस बात का भान हो जाए कि आपके अंदर छिछलापन नहीं है तो फिर वे आपसे बहुत सहज होकर बात करते थे। वे विश्वास व विचार का रिश्ता क़ायम करते थे। जो उनसे क़ायदे से मिल लिया, फिर उसके दिल में वे हमेशा के लिए घर कर जाते थे। वे उन विरले नेताओं में रहे जो पढ़ने-लिखने और चिंतन करने की संस्कृति में गहरा यक़ीन रखते थे।
याद आता है कि एक बार ख़ुद से उन्होंने मेरी कटोरी में दही रख दिया। ग्रीन टी के लिए बोलते थे, “पानी है, पी जाओ!” बाहर की दुनिया में वे कभी-कभी बहुत अक्खड़ लग सकते थे जिन्हें दुनिया की कोई टकसाल नहीं ख़रीद सकती थी। पर, अंदर से वे बहुत कोमल हृदय के व्यक्ति थे।
आदमी जितनी ऊंचाई पर जाता है, वह उतना अकेला होता जाता है। कोई बहुत भरोसे का संवेदनशील व्यक्ति मिल जाए तो वह खिल उठता है। शरद यादव के चेहरे पर अच्छी गुफ़्तगू के बाद संतोष का भाव देखा है। उन्हें संवाद में मज़ा आता था। हमख़याल लोगों से बैठकर बातचीत उनकी बौद्धिक भूख शांत करती थी। वे अपने अनुभव को प्रेम से बांटना जानते थे।
कोरोना के सेकंड वेभ के बाद एक रोज़ बहन सुभाषिनी यादव ने कहा, “जयन्त भाई, आप जब आते हो और पापा से मिल कर जाते हो तो मैंने नोटिस किया है, वे बहुत ख़ुश होते हैं।” जब अधिक दिन हो जाते थे, तो स्वयं भी फ़ोन कर लेते थे और कहते थे, “आते!” अब वह आवाज़ कभी सुनाई नहीं पड़ती! उनकी वाणी में ओज था!
मुझे नहीं मालूम कि उनसे मेरा क्या रिश्ता था, पर वह बहुत नि:स्वार्थ व निश्छल रिश्ता था, और है। उनके जाने के बाद उन्हें दो बार सपने में देखा, वही चेहरे पर धीरे-धीरे फैलती हुई गम्भीर मुस्कान!
एक बार उन्होंने कहा, “मैं किसी और से नहीं कहना चाहता। मेरी इच्छा है कि यह तुम प्रेषित करो, क्यूंकि तुम डिस्टोर्शन नहीं करोगे!” और, मैंने अभीष्ट जगह हूबहू कन्वे किया। इतना भरोसा था उनका मुझ पर।
एक बार एक व्यक्ति ने मेरे बारे में उनसे शिकायत की कि सर आप किसको अपने पास बिठाते हैं? उ सब क्या रहेगा? शरद यादव सुनते रहे, और कहा, “चलो हो गया, निकलो!” जब मैं उनके यहां गया, तो बोले, “वो आदमी तो बड़ा (….)खोर है! तुम्हारे बारे में उल्टा-सीधा बोल रहा था!” मुझे सबसे ज़्यादा उनकी यह बात छू गई कि मेरी ग़ैरमौजूदगी में इतने बड़े नेता ने मुझ पर अपना भरोसा न सिर्फ़ बरक़रार रखा, बल्कि सामने वाले को यह संदेश भी दिया कि वे मेरे बारे में कुछ भी नकारात्मक नहीं सुनना चाहते! वे जिसको मानते थे तो फिर मानते थे!
सार्वजनिक जीवन में उन्होंने अंतिम क्षण तक अपनी गरिमा क़ायम रखी। बहुत बड़े इंसान थे! ऐसा शरद यादव ही कर सकते थे कि किंग महिन्द्रा को घंटे भर इंतज़ार कराएं और जयन्त जिज्ञासु जैसे अदने व्यक्ति को पहले बुलाकर बात करें। उनमें वाक़ई कबीर का फक्कड़पन, लोहिया की प्रखरता व जयप्रकाश की निर्मलता थी।
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था
हमीं सो गये दास्तां कहते-कहते।
आज उनकी दूसरी बरसी है, वे हमारे बीच न होकर कहीं ज़्यादा हैं, और “जनता के शरद” की गरिमापूर्ण राजनीति व लोगों से उनकी आत्मीयता हमेशा याद आती रहेगी.