— शिवदयाल —
धरमपाल (1922-2006), यह उनका जन्मशती वर्ष है, चिंतक और अध्येता थे, कोई पेशेवर इतिहासकार नहीं, लेकिन उन्होंने ब्रिटिश-पूर्व भारत में शिक्षा तथा भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर ऐतिहासिक महत्व का काम किया, वह भी आत्मप्रेरणा से। उन्होंने अंग्रेजों की गढ़ी भारत की उस छवि को तोड़ दिया जिसे हम आज तक सत्य मानते रहे थे, और ब्रिटिश-पूर्व भारत के प्रति एक नई समझ बनाई। उनका शोध-अध्ययन सरकारी अभिलेखों पर आधारित है, जिसके लिए उन्होंने देश-विदेश के तमाम अभिलेखागारों और पुस्तकालयों की खाक छानी। यों उन्होंने गाँधीजी पर, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारतीय पंचायतों आदि विषयों पर खूब लिखा है, लेकिन उनकी दो शोध-पुस्तकें अत्यंत मूल्यवान हैं – ‘अ ब्यूटीफूल ट्री: इंडीजीनस इंडियन एजुकेशन इन एटीन्थ सेन्चुरी’ तथा ‘इंडियन साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी इन एटीन्थ सेन्चुरी’।
‘अ ब्यूटीफुल ट्री’ जयप्रकाश नारायण की स्मृति को समर्पित है जिन्होंने इस कार्य को सहयोग और मार्गदर्शन दिया। धरमपाल ने लिखा है कि इस विषय पर शोध करने की जिज्ञासा और प्रेरणा गाँधीजी के उस विश्वास के चलते हुई जिसमें वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि अतीत में भारत में लोगों को शिक्षा सामान्य रूप से उपलब्ध नहीं थी। 1931 में लंदन में ‘भारत का भविष्य’ विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा था – ‘‘भारत आज पचास या सौ वर्ष पहले के मुकाबले कहीं अधिक असाक्षर है, क्योंकि ब्रिटिश प्रशासक जब भारत आए तो उन्होंने पहले से चल रही व्यवस्था को समझने और चलाने की बजाए उन्हें निर्मूल करना शुरू कर दिया। उन्होंने मिट्टी कोड़ कर जड़ों को देखना शुरू किया और उन्हें वैसे ही खुला छोड़ दिया, और नतीजा यह कि वह सुंदर वृक्ष सूख गया।’…
(स्रोत : भारत में शिक्षा : गौरव से ग्लानि की यात्रा, ‘स्वतंत्रत हुए स्वाधीन होना है’ में संकलित।)
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