— पंकज मोहन —
भारत के हिन्दुत्ववादी जनगण का आदर्श अमेरिका है। जब अमेरिका ने अपने देश में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों को बेड़ियों में जकडकर भारत भेजा, वे चिल्लाने लगे, भारत मे अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को भी हाथ-पैर बांधकर वापस भेजना चाहिये। जिस तरह अमेरिका ने बिन लादेन का सागर-दफन किया, उसी तरह वे औरंगजेब के कंकाल को समुद्र में फेंकना चाहते हैं।
बिन लादेन एक आतंकवादी संगठन का सरदार था और उसके हाथ अमेरिका के हजारों लोगों के खून से रंगे थे. बिन लादेन की लाश को समुद्र में फेंकवाने के पीछे अमेरिका की मंशा उसके नेतृत्व में उठ खडे हुये आतंकवादी संगठन की विस्मृति और विनाश थी। अमेरिका की दृष्टि अपने देश की वर्तमान और भविष्यकालिक सुरक्षा पर केन्द्रित होती है, इसलिए अमेरिका एक समृद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र है।
अफगानिस्तान के तालिबान मानसिक रूप से गुलाम हैं जो समझते हैं कि बुद्ध की बामियान प्रतिमा को तोडने से उनकी धरती शुद्ध हो जायेगी। भारत के अतीतजीवी कट्टरपंथी हिन्दू भी दिमागी गुलामी के शिकार हैं। बिन लादेन न तो अमेरिकी धरती की उपज था और न ही अमेरिकी इतिहास से उसका कोई सम्बन्ध था, लेकिन औरंगजेब भारतीय था, भारत के प्रभावशाली मुगल राजवंश का शासक था। उसका कब्र रहे या न रहे, वह भारतीय इतिहास का अविभाज्य अंग था, है और रहेगा। दूसरी बात, जिस तरह बामियान की बुद्ध प्रतिमा के टूटने से अफगानिस्तान के इतिहास से बौद्ध धर्म को नष्ट नहीं किया सकता और अफगानिस्तान की किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता, उसी तरह हमारे इतिहास की संस्कृति, राजनीति या समज को प्रभावित करने वाले किसी व्यक्ति के कब्र को उखाड फेंकने से हम अपने देश की भयावह दुर्दशा से निजात नहीं पा सकते।
देश को आगे बढाने के लिये कुशिक्षा के बदले स्तरीय शिक्षा की जरूरत है, भ्रष्टाचार को मिटाकर ईमानदार आचरण की आवश्यकता है, रोजगार के अवसर की जरूरत है ताकि हमारे हताश और दिग्भ्रमित युवा जमीन- जायदाद बेचकर अमेरिका-युरोप जाकर दर दर की ठोकरें न खायें और ट्रम्प उन्हें जंजीर में बांधकर और लात मारकर स्वदेश न भेजे। यहां अपेक्षाकृत अधिक मजबूत सीमा-सुरक्षा की जरूरत है ताकि चीन हमारी और ज्यादा जमीन न हडपे।
औरंगजेब से बदला लेना है, तो ऐसा भारत बनाओ जो औरंगजेब के जमाने के मुल्क से ज्यादा सुशिक्षित, समृद्ध और शक्तिशाली हो। मुगलकाल के आखिरी दौर में विश्व में भारत की जीडीपी का प्रतिशत दर पच्चीस प्रतिशत से अधिक था, वह आज घटकर तीन प्रतिशत हो गया है। विश्व अर्थव्यवस्था के अठारह प्रतिशत हिस्से पर चीन का कब्जा है। चीन अपने इतिहास के खानाबदोश मंगोल या मंचू राजवंश के शासकों के कब्र खोदने को राष्ट्रवाद नहीं मानता। चीन ट्रम्प को ललकार रहा है, अखाड़ों मे आ जाओ, हम लडने के लिये तैयार हैं। चीनी राष्ट्रवाद के मूल में सभी नस्ल की चीनी जनता की एकता और पारस्परिक सहयोग से विश्व के सर्वाधिक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र का निर्माण है।
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