1974 आंदोलन और जेपी

0

— प्रभात कुमार —

18 मार्च के पहले जेपी ने कहा जेपी कानपुर में बातै कहते हुए कहते हैं  दोस्तों यह मुकेश कहता था की आप प्रेरणादाई मार्गदर्शन दीजिए ।जी तो बहुत चाहता है लेकिन मजबूरी है आयु के कारण नहीं ,स्वास्थ्य के कारण महाकवि बच्चन जी को इस पंक्ति पर से मेरी तर्पण समझ सकेंगे। कवि ने कहा है आज लहरों में निमंत्रण तीर पर कैसे रुकूं मैं? आज लहरों में निमंत्रण….

नदी की लहरें बुलवा दे रहे हैं तब तीर पर कैसे रुक जा सकता है? वास्तव में रुकना नहीं चाहता समाज में उठ रही इन तरंगों में कूदना चाहता हूं। बेबस दिल की छटपटाहट एक समय था युवकों में बहुत प्रिय था और युवक हृदय सम्राट के नाम से पुकारा जाता था लेकिन अब वह जवान नहीं रही दिल में जवानी आज भी है लेकिन स्वास्थ्य गिर चुका है। इसकी लाचारी है इसीलिए आप लोगों की अपेक्षाओं की पूर्ति ना कर पाया तो क्षमा करना।…

देश की हालत को देखते हुए मैं कानपुर के सभा में युवकों को आवाहन किया… यूथ फॉर डेमोक्रेसी… लोकतंत्र के लिए युवा। इस आवाहन को लेकर आंदोलन खड़ा हो गया था ।उस सभा में मैंने कहा था कि,,, समाज जीवन की सभ्यता और आवश्यकताओं के साथ जिसका कोई तालमेल नहीं है ऐसी पुरानी पद्धति की शिक्षा चल रही है। हर साल हजारों ग्रेजुएट बाहर निकलते हैं , उन लोगों को नौकरी नहीं मिलती और उसके कारण असंतोष बढ़ता जा रहा है। यह सारा कुशासन मिस गवर्नमेंस के कारण सरकारी गलत नीतियों के कारण हो रहा है

सन 42 की स्थिति देख रहा हूं। इतिहास दोहराता भी है नहीं भी दोहराता । आज की स्थिति सन 42 की स्थिति से एक माने में भिन्न है बात सही है लेकिन परिस्थिति उतनी ही क्रांतिकारी है। युवा शक्ति को आवाहन- भारत की यह युवा शक्ति सोई हुई है ऐसा तो नहीं कह सकते लेकिन वह अधिकांश कॉलेज यूनिवर्सिटी या कुछ स्थानीय छोटे-मोटे मसलों में लगी हुई है या भिन्न-भिन्न पार्टियों के स्वयंसेवक बनाकर उनके झंडे उठाने वाली बनकर रह गई है। उन राजनीतिक पार्टियों में जिस मात्रा में गतिशीलता क्रांतिकारिता या नव निर्माण का विचार रहा ,उस अनुपात में युवक आगे बढ़े। इस प्रकार मैंने देखा कि देश की युवा शक्ति आज छोटे-छोटे प्रश्नों में उलझी हुई है या विभिन्न पार्टियों में बैठी है इस कारण युवकों की एक सम्मिलित शक्ति नहीं बन पाई।
इस वजह से मैं आवाहन किया _यूथ फॉर डेमोक्रेसी यानी लोकतंत्र के लिए युवा शक्ति। मे मै करता भी क्या मुझे रहा नहीं गया मेरी बेबसी लाचारी हे-,हेल्पलेस थी मैंने आवाहन किया और मुझे खुशी है युवकों ने उसका अच्छा उत्तर दिया। ….

गुजरात के आंदोलन में आप लोगों की जो दैन है कंट्रीब्यूशन है वह बहुत बड़ी है। आप लोगों ने सारे देश की युवा शक्ति का मार्गदर्शन किया है। शांति स्थापना के हेतु आप लोग उपवास कर रहे थे तभी मैंने कहा था कि सफलता की अपनी एक कमजोरी होती है उसे अभियान घमंड होता है इस अर्थ में सफलता एक चुनौती होती है। इसीलिए सफलता के बाद नम्रता बढ़नी चाहिए बहुत किया लेकिन जो करना बाकी है उसे हिसाब से बहुत थोड़ा हो पाया है। लिटिल डन फास्ट अनडन। इसीलिए दिमाग उड़ने ना लग जाए अपनी शक्ति को पहचान कर आगे कदम बढ़ाना है कहीं मन में यह ना हो कि हम जो चाहे सो कर सकते हैं हमारे ध्यान में रहे कि हमारी क्या-क्या मर्यादाएं हैं।

जोश जगाया,होश संभाला

अभी मैं मुकेश और मनीषी के साथ बात कर रहा था। मैंने कहा की बापू के विचारों को मानता नहीं था। मार्क्सवादी था और हिंसक क्रांति में विश्वास करता था ।लेकिन मैं बापू का सिपाही था, क्योंकि मैंने देखा की देश की बड़ी-बड़ी क्रांतिकारी पार्टियां भी जनशक्ति पैदा नहीं कर सकी, वह महात्मा गांधी ने की। आंदोलन में उनके भाषण सुनता था तो लगता था कि इस बूढ़े ने ठंडा पानी डाल दिया, जोश ठंडा कर दिया लेकिन बापू ऐसा समझबूझकर करते थे, क्योंकि जो काम हम लोगों को करना था वह कितना बड़ा था। एक भी कम गलत ना उठे, जोश और होस दोनों का मेल रहे यह देखना जरूरी था।
क्रमशः।

(गुजरात विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों की सभा में अहमदाबाद 14 फरवरी 74 का अंश)

Leave a Comment