सरदार पटेल की सुपुत्री मणि बेन पटेल 26 मार्च सन 1931 को यूरोप जाने से पहले महात्मा गांधी से आत्मीयता से गले मिलती हुईं। सरदार पटेल एक कामयाब वकील थे और उन्होंने अपने बेटे डाया भाई पटेल और बेटी मणिवेन को अंग्रेज़ी माध्यम में शिक्षा दिलवाई थी। पत्नी के असामयिक निधन के बाद दोनों संतानों को मुंबई में अंग्रेज़ गवर्नेस के पास छोड़कर वल्लभभाई पटेल बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गए थे। वहां से लौटने के बाद उनकी वकालत बहुत अच्छी चमक गई थी।
लेकिन महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह ने उन्हें सोचने को मजबूर कर दिया और इससे सरदार के जीवन की दिशा बदल गई। धीरे-धीरे वो गांधी से जुड़े और अपना सबकुछ उन्होंने आंदोलन में झोंक दिया।
मणि बेन पटेल गांधीजी द्वारा चलाये गए सविनय अवज्ञा आंदोलन , भारत छोडो आंदोलन में सक्रिय रहीँ व कई बार जेल भी गईं। सरदार पटेल के निधन के पश्चात मणिबेन ने नेहरू के आग्रह पर खेड़ा दक्षिण से 1952 का लोकसभा चुनाव लड़ा और वे लोकसभा में पहुंची।
मणि बेन अपने सार्वजनिक जीवन में पिता के ही मार्ग पर चलती रहीं लेकिन उनके भाई डाया भाई पटेल ने अलग रास्ता चुना। डायाभाई पटेल को 1957 के चुनाव में कांग्रेस की तरफ़ से लोकसभा चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया गया लेकिन उन्होंने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और महागुजरात आंदोलन में शामिल हो गए। इंदुलाल याग्निक और अन्य नेताओं ने मिलकर महागुजरात जनता परिषद के नाम से पार्टी बनाई थी। इंदुलाल याग्निक ने डाया भाई से कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया गया था।
डाया भाई पटेल ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “मणि बेन ने नम आंखों से मुझसे कहा कि पिता जी की मौत हो गई है तो तुम कांग्रेस के ख़िलाफ़ कैसे चुनाव लड़ सकते हो।”
अपनी बहन के इस तरह के बोल से वे काफ़ी आहत हुए थे। और उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला कर लिया था। पर बाद में वे राज्यसभा के लिए तीन बार चुने गए।
डाया भाई पटेल की पत्नी भानुमति बेन को 1962 के लोकसभा चुनाव में स्वतंत्र पार्टी ने भावनगर से और डाया भाई के साले पशा भाई पटेल को साबरकांठा से चुनाव में खड़ा किया था। इस चुनाव में कांग्रेस भारी बहुमत से जीती। भानुमति बेन को सिर्फ़ 14,774 वोट मिले और पशा भाई पटेल भी बुरी तरह से चुनाव हारे । कांग्रेस की ओर से गुलजारी लाल नन्दा जीते।
* स्वतंत्र भारत के पहले लोकसभा चुनाव में मणिबेन ने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में खेड़ा (दक्षिण) सीट पर 59298 मतों से जीत दर्ज की थी।
* 1957 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में आणंद सीट से जीत हासिल की थी।
* गुजरात के अलग राज्य बनने के बाद 1962 के लोकसभा चुनाव में मणिबेन ,स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवार नरेंद्र सिंह महेडा से हार गईं थीं।
* वर्ष 1964 में कांग्रेस ने उन्हें पुनः राज्यसभा भेजा जहां वे 1970 तक इसकी सदस्य रहीं।
* 1973 में मणिबेन ने साबरकांठा सीट से उपचुनाव जीता और लोकसभा में वापस लौटीं।
* 1977 में मणिबेन मेहसाना सीट से चुनाव लड़ा और एक लाख से ज़्यादा वोटों से जीत दर्ज की।
1973 में सरदार पटेल के पुत्र डाया भाई की मृत्यु हो गयी । श्रीमती इंदिरा गांधी उन्हें अपना भाई कहती थीं। 1990 में सरदार पटेल की पुत्री मणिवेन पटेल का निधन हो गया।
फेसबुक मेमोरी में से यह पोस्ट अनायास निकल आयी अपडेट जानकारी सहित प्रस्तुत कर रहा हूँ। सरदार पटेल और उनके परिजनों को सादर नमन।