नेहरू और जयप्रकाश नारायण: सम्मान, स्नेह और वैचारिक संबंधों की कहानी

0

वाहरलाल नेहरू और जयप्रकाश नारायण (जेपी) दोनों ही भारतीय आजादी की लड़ाई के बड़े नेता थे। दोनों के बीच गहरा सम्मान और प्यार था, भले ही उनके रास्ते और विचार कई बार अलग हुए। नेहरू कांग्रेस के मुख्य नेता और भारत के पहले प्रधानमंत्री बने, वहीं जेपी ने गांधीवादी समाजवाद और जनता की राजनीति को अपनाया।

1952 के पहले आम चुनाव के बाद, नेहरू ने जेपी को अपनी सरकार में उपप्रधानमंत्री बनने का न्योता दिया, और उन्हें ‘अंतरात्मा’ का रक्षक बनाना चाहा – ऐसा व्यक्ति जो उन्हें सही-गलत का मार्ग दिखाए। नेहरू को विश्वास था कि जेपी जैसे ईमानदार और आदर्शवादी व्यक्ति के साथ वे देश को अच्छी दिशा दे सकते हैं।

नेहरू ने यह भी चाहा कि कांग्रेस और जेपी की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी एक हो जाएं, ताकि दोनों मिलकर देश का नेतृत्व करें। यह नेहरू के जेपी के प्रति गहरे सम्मान का प्रमाण है।

जेपी ने नेहरू के सभी प्रस्तावों को विनम्रता से मना कर दिया। जेपी खुद को गांधी का अनुयायी मानते थे और सत्ता की राजनीति से दूर रहना चाहते थे। वे समाज सेवा और जनता के बीच रहकर बदलाव लाना चाहते थे। नेहरू को दुख हुआ कि जिसे वे अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे, वह यह जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं था।

नेहरू और जेपी के विचारों में मतभेद भी थे, लेकिन दोनों ने कभी व्यक्तिगत कड़वाहट नहीं रखी। नेहरू अक्सर कहते थे कि वे हमेशा सही नहीं हैं और उन्हें ऐसे साथी चाहिए जो खुलकर असहमति जताएं। जेपी ने कई बार नेहरू की नीतियों की आलोचना की, लेकिन दोनों के बीच बातचीत और सम्मान बना रहा।

दोनों नेताओं के रिश्ते में गहरा मानवीय जुड़ाव था। नेहरू, जिनके मंत्रिमंडल के कई सदस्य खुलकर असहमति नहीं जताते थे, जेपी को हमेशा एक सच्चे मित्र और आलोचक के रूप में देखते थे। जेपी भी नेहरू के आदर्शवाद और देशभक्ति की इज्जत करते थे, भले ही वे उनके राजनीतिक रास्ते से सहमत न हों।

नेहरू और जयप्रकाश नारायण का रिश्ता भारतीय राजनीति में आपसी सम्मान और स्नेह की मिसाल है। नेहरू का जेपी को उत्तराधिकारी बनाना चाहना और जेपी का सत्ता से दूर रहना – दोनों ने लोकतंत्र को नई ऊंचाई दी। उनके बीच संवाद, असहमति और सम्मान ने भारतीय राजनीति को गरिमा दी।

यह कहानी बताती है कि कैसे दो महान नेता, अलग रास्तों पर चलते हुए भी, एक-दूसरे के प्रति गहरा सम्मान रख सकते हैं – और यही लोकतंत्र की असली सुंदरता है।

Leave a Comment