— सुरेंद्र किशोर —
गांधी सेतु (पटना) के समानांतर निर्माणाधीन गंगा पुल का नाम डा.राम मनोहर लोहिया के नाम पर रखा जाना चाहिए। इस तरह आसपास के तीन पुल के नाम हो जाएंगे –गांधी-लोहिया -जय प्रकाश। कुछ राजनीतिक कर्मियों का कभी यही नारा भी था। बिहार की राजनीति, खास कर समाजवादियों की राजनीति में डा.लोहिया का बड़ा योगदान था।साठ के दशक में इन पंक्तियों के लेखक सहित अनेक युवजन लोहिया की वैचारिकी और सच्चरित्रता से प्रभावित होकर सक्रिय राजनीति में आये थे। बिहार में उस योगदान के अनुपात में डा.लोहिया के नाम पर कोई बड़ा स्मारक नहीं है। सन 1967 के स्वायत्त शासन मंत्री भोला प्रसाद सिंह ने दक्षिण पटना के 950 एकड़ जमीन में लोहिया नगर बसाया था। अब भी उस नगर को लोगबाग कंकड़बाग ही कहते हैं -लिखते हैं।यानी, लोहिया नगर का नाम गोल हो गया।
———————–
एक पुरानी याद
———–
सन 1967 में बिहार में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बन रही थी। सी.पी.आई.और भारतीय जनसंघ साथ-साथ महामाया प्रसाद सिन्हा के मंत्रिमंडल में शामिल होने को तैयार नहीं हो रहे थे। स्वाभाविक है ,कारण वैचारिक था। तब डा.लोहिया पटना में थे। दैनिक सर्चलाइट के अनुसार ,लोहिया ने जनसंघ और सी.पी.आई.के चंद प्रमुख प्रादेशिक नेताओं के साथ बंद कमरे में गुप्त बैठक की। दोनों दलों को राजी किया। पहली बार जनसंघ और सी.पी.आई.के प्रतिनिधि संयुक्त मोर्चा सरकार के मंत्री साथ-साथ बने थे।वह राजनीतिक चमत्कार डा.लोहिया के कारण ही संभव हो सका था।वैसा चमत्कार न तो पहले हुआ और न बाद में।