उर्दू के प्रसिद्ध आलोचक और सम्पादक सी.एम. नईम की याद में

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Dr. Shubhnit Kaushik

— शुभनीत कौशिक —

र्दू के प्रसिद्ध आलोचक, अनुवादक और सम्पादक सी.एम. नईम (1936-2025) के इंतक़ाल की ख़बर मिली। ख़बर सुनकर मेरे ज़ेहन में उनके पढ़े हुए लेख कौंध गए। हिंदुस्तान की आज़ादी से एक दशक पहले बाराबंकी में पैदा हुए चौधरी मोहम्मद नईम शिकागो यूनिवर्सिटी में लम्बे समय तक प्राध्यापक रहे।

उनके लेखन से पहली बार वाबस्ता हुआ, अकबर-बीरबल के क़िस्सों और मुल्ला दोप्याजा पर लिखे उनके कमाल के लेख से, जो ईपीडबल्यू में छपा था। अकबर-बीरबल के लोकप्रिय क़िस्सों में पैबस्त इतिहास के ताने-बाने को जैसे नईम साहब ने इस लेख में खोला है, वह देखते ही बनता है। लोक-संस्कृति, साहित्य और इतिहास के अंतरसंबंधों में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को तो वह लेख ज़रूर पढ़ना चाहिए।

हिंदी-उर्दू भाषा विवाद और भाषा की राजनीति को जानने-समझने के सिलसिले में जेएनयू लाइब्रेरी के पत्रिकाओं वाले सेक्शन में ‘एनुअल ऑफ़ उर्दू स्टडीज़’ के पुराने अंकों की फाइल मिली, जिसके सम्पादक सीएम नईम थे। साल-दर-साल बड़ी प्रतिबद्धता और तन्मयता से उन्होंने यह पत्रिका निकाली, जिसका हर अंक विचारोत्तेजक लेखों, अनुवादों और उर्दू की अदबी तारीख़ की दस्तावेज़ी सामग्री से समृद्ध होता था।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1981 में ‘एनुअल ऑफ़ उर्दू स्टडीज़’ का पहला अंक छपा। उस अंक में लॉरेल स्टील, गेल मिनाल्ट, कार्लो कापोला, एवलीन डी. वैरेडी के लेख थे। कुर्रतुलऐन हैदर, रुख़साना सौलत, अल्ताफ़ हुसैन हाली, वज़ीर आग़ा जैसे लेखकों के पुस्तकों की समीक्षाएँ भी उस अंक में शामिल थीं, जो अधिकांशतः सीएम नईम ने लिखी थीं।

इससे पूर्व नईम साहब 1963 में ही कार्लो कापोला के साथ ‘महफ़िल’ नामक पत्रिका निकाल चुके थे, जो दक्षिण एशियाई साहित्य पर केंद्रित थी। ‘महफ़िल’ के पहले अंक में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, सआदत हसन मंटो, इंतिज़ार हुसैन से लेकर कबीर के पदों के अनुवाद और उन पर अंग्रेज़ी में टिप्पणियाँ छपी थीं।

इसी तरह संविधान सभा में भाषा के सवाल को लेकर पढ़ते हुए जब हसरत मोहानी के बारे में जानने की दिलचस्पी हुई, तब भी नईम साहब के ईपीडबल्यू में छपे एक लेख ‘द मौलाना हू लव्ड कृष्ण’ से हसरत मोहानी के वैचारिक गठन को समझने में बहुत मदद मिली।

नईम साहब ने उर्दू सीखने के लिए प्राइमर भी तैयार किए। बतौर अनुवादक भी उन्होंने मीर तकी मीर की आत्मकथा का ‘ज़िक्र-ए-मीर’ का अंग्रेज़ी अनुवाद किया। उन्होंने मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़ैज़, कुर्रतुलऐन हैदर के अंग्रेज़ी अनुवाद तो किए ही। साथ ही हरिशंकर परसाई की कहानियों और विभूति नारायण के उपन्यास ‘शहर में कर्फ़्यू’ का भी अंग्रेज़ी में तर्जुमा किया। अभी दो साल पहले ही उर्दू के रहस्यमयी, थ्रिलर और जासूसी उपन्यासों पर उनकी किताब ‘उर्दू क्राइम फ़िक्शन’ ओरियंट ब्लैकस्वान से छपकर आई थी।

‘एनुअल ऑफ़ उर्दू स्टडीज़’ के पहले अंक के आवरण पर ग़ालिब का यह शेर छपा था, उसे उद्धृत करते हुए नईम साहब को आख़िरी सलाम पेश करता हूँ :

है कहाँ तमन्ना का दूसरा क़दम या रब
हमने दश्त-ए-इमकाँ को एक नक़्श-ए-पा पाया

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