— राकेश अचल —
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूचियों के विवादास्पद सघन अभियान के बाद से मै परेशान हूँ और सोच रहा हूँ कि मै अगली बार विधानसभा या लोकसभा चुनाव में मतदान कर भी पाऊंगा या नहीं, क्योंकि मेरे पास तो नागरिकता प्रमाणपत्र जैसा कोई दस्तावेज है ही नहीं.
भारत ने आजादी के बाद से अब तक प्रत्येक नागरिक को आधार कार्ड देने की मुहिम तो चलाई लेकिन नागरिकता प्रमाण पत्र के बारे में कभी नही सोचा. भारत में सत्ता में बने रहने के लिए दर अअसल इससे पहले कभी कोई राजनीतिक दल चुनाव में गैर भारतीयों के भाग लेने को लेकर फिक्रमंद हुआ भी नहीं. भाजपा ने भी दो चुनाव बिना किसी डर के जीते लेकिन जब तीसरे आम चुनाव में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 400 पार का नारा जनता ने नकार दिया तो भाजपा को फिक्र हुई और भाजपा सरकार के कहने पर पहली बार केंद्रीय चुनाव आयोग यानि केंचुआ ने बिहार से मतदादाओं की नागरिकता जांचने की मुहिम शुरु की, जो कि अब सुप्रीम कोर्ट में जेरे बहस है.
मै इस मुहिम के साथ खडा होता यदि ये मुहिम भारत सरकार का गृह मंत्रालय उसी तर्ज पर चलाता जैसे कांग्रेस सरकार ने आधार पहचान पत्र के लिए देशव्यापी मुहिम चलाई थी. मेरी जानकारी में दुनिया के तमाम देशों में जन्मजात और अनुवांशिक नागरिकता प्रचलित है इसलिए सभी के पास अलग से कोई नागरिकता प्रमाण पत्र नही होता. नागरिकता प्रमाणपत्र उन्ही परदेशियों के लिए जारी किया जाता है जो इसके लिए बाकायदा आवेदन करते हैं. भारत में आमतौर से कोई भी शासकीय सुविधा या अधिकार पाने के लिए आयकर प्रमाण पत्र से ज्यादा महत्व आधार पहचान पत्र को दी जा रही है.. मेरे पास वंशानुगत या जन्म आधारित नागरिकता है लेकिन इसका कोई प्रमाण पत्र नहीं है. आपके पास भी शायद नहीं होगा.
दुर्भाग्य देखिए कि जिस पारपत्र( पासपोर्ट) के आधार पर पूरी दुनिया हमें भारतीय मानकर अपने यहां आने- जाने देती है, कारोबार करने देती है उसी पासपोर्ट को हमारे अपने देश में नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं माना जाता.मान लीजिये कि यदि विदेशी सरकारें भी भारत सरकार की तरह पासपोर्ट के आधार पर हमें भारतीय मानने से इंकार कर दें तो हम कहीं के नहीं रहेंगे. क्योंकि पासपोर्ट जारी ही तब किया जाता है जब जन्म का, आवास का, संपत्ति का और पुलिस द्वारा चरित्र का सघन सत्यापन करा लिया जाता है.कमोवेश यही प्रक्रिया मतदाता पहचान पत्र जारी करने मे अपनाई जाती है. ऐसे में यदि बिहार या देश के किसी भी राज्य में जारी मतदाता पहचान पत्रों को संदिग्ध माना जा रहा है तो दोषी केंद्रीय चुनाव आयोग है. उसका बीएल ओ से लेकर जिला स्तर का अधिकारी दोषी है. उसके खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज होना चाहिए.
मान लीजिये कि बिहार में करोड, दो करोड मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से उन्हे गैर भारतीय मानकर काट भी दिए जाएं तो क्या भारत सरकार इन कथित गैर भारतीयों को कहाँ भेजेगी?
दर असल केंचुआ के सघन पुनरीक्षण अभियान के पीछे कोई राष्ट्र भक्ति नहीं है. केंचुआ भूमिनाग से शेषनाग बनने की असफल, नाजायज़ कोशिश कर रहा है. दुर्भाग्य से केंचुआ के सामने हमारी न्यायपालिका भी असहाय नजर आ रही है क्योंकि केंचुआ के ऊपर सरकार का वरदहस्त है. और सरकार से टकराना अब आसान काम नहीं. सामान्य सांसद से लेकर उप राष्ट्रपति ही नहीं राष तक सुप्रीम कोर्ट की बखिया उधेडने में लग जाते हैं. यानि संवैधानिक संस्थाओं की तो छोडिए न्यायपालिका का अपमान करने में इन्हे संकोच नहीं होता, शर्म नहीं आती. देश में आपातकाल में भी कुछ -कुछ ऐसा ही हुआ था और जिसका खामियाजा देश ने भुगता था.
आपको बता दूं कि भारत में नागरिकता प्रमाण पत्र की सटीक संख्या के बारे में कोई आधिकारिक, सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ा नहीं है जो यह बता सके कि कितने लोगों के पास यह प्रमाण पत्र है। भारत सरकार, विशेष रूप से गृह मंत्रालय नागरिकता प्रमाण पत्र जारी करता है, लेकिन इसकी कुल संख्या को लेकर व्यापक डेटा सार्वजनिक डोमेन में आसानी से उपलब्ध नहीं है।
नागरिकता प्रमाण पत्र मुख्य रूप से उन लोगों को जारी किया जाता है जो जन्म, वंश, पंजीकरण, प्राकृतिकरण या क्षेत्रीय समावेशन के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करते हैं, नागरिकता अधिनियम, 1955 के मुताबिक, भारत में जन्मे अधिकांश लोग स्वतः नागरिक माने जाते हैं, और उनके लिए नागरिकता का प्रमाण आमतौर पर जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, या अन्य दस्तावेजों जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी आदि के माध्यम से स्थापित किया जाता है।दुर्भाग्य ये है कि इस मुद्दे पर हमारा सर्वोच्च न्यायालय और केंचुआ ही नहीं बल्कि सरकार भी एकमत नहीं हैं.
भारत में नागरिकता साबित करने के लिए आमतौर पर जन्म प्रमाण पत्र, भारतीय पासपोर्ट, वोटर आईडी, या अन्य सरकारी दस्तावेजों का उपयोग होता है। हाल ही में सरकार ने स्पष्ट किया है कि आधार कार्ड और पैन कार्ड को नागरिकता के प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। केवल जन्म प्रमाण पत्र और भारतीय पासपोर्ट को ही प्राथमिक दस्तावेज माना जाता है।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर बनाकर मौजूदा सरकार ने असम में एन आर सी प्रक्रिया के तहत नागरिकता सत्यापन करने का अभियान चलाया था जिसमें लगभग 1.9 मिलियन लोग नागरिकता साबित करने में असफल रहे थे, लेकिन इनमें से किसी को देश निकाला नहीं दिया गया. यही सब बिहार में बिना एन आर सी के करने की कोशिश की जा रही है. बिहार से किसी को नहीं निकाला जाएगा, केवल उनका मताधिकार छीना जाएगा ताकि वे भाजपा को न हरा सकें.
भारत की कुल जनसंख्या लगभग 140 करोड़ है, इनमें से अधिकांश लोग जन्म के आधार पर स्वतः नागरिक हैं।केवल उन लोगों को नागरिकता प्रमाण पत्र की आवश्यकता पड़ती है जो गैर-नागरिक पृष्ठभूमि से आते हैं या जिन्होंने पंजीकरण/प्राकृतिकरण के माध्यम से नागरिकता प्राप्त की है। ये आंकडा सरकार के पास होगा ही, लेकिन कहीं पै निगाहेँ, कहीं पै निशाना लगाना भाजपा की पुरानी आदत है.
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