— प्रेमकुमार मणि —
जिन लोगों से किन्हीं अर्थों में मैँ प्रभावित हुआ, उन में रामस्वरूप वर्मा (1923-1998) भी हैँ. वह समाज सुधारक, राजनेता, पत्रकार और चिन्तक थे. उत्तरप्रदेश सरकार में कुछ समय केलिए वित्त मंत्री और लम्बे समय तक उत्तरप्रदेश विधान सभा के सदस्य रहे. वह समाजवादी राजनीतिक धारा से जुड़े थे. 1970 के आसपास समाजवादी राजनीति से सम्बद्ध कुछ लोगों ने वर्णवाद विरोध का फलसफा अपनी नीति से जोड़ा, उनमें वर्मा जी अग्रणी थे. बिहार के एक समाजवादी नेता जगदेव प्रसाद के साथ मिल कर एक नया राजनीतिक दल शोषित समाज दल संगठित किया. बाद में कांशी राम ने इसी धारा को आगे बढ़ाते हुए बहुजन समाज पार्टी बनाई.
लेकिन वर्मा जी आज याद किये जाते हैँ अर्जक संघ के संस्थापक के रूप में. महाराष्ट्र में बाबा साहब ने हिन्दुत्व के पुरोहित-वाद को चुनौती देने केलिए दीक्षाभूमि में नवबौद्ध आन्दोलन का शंखनाद किया था. उत्तर भारत के मिहनतकश लोगों को पुरोहितवाद से मुक्त करने केलिए वर्मा जी ने अर्जक संघ स्थापित किया था. यह कुलीन हिन्दुत्व को दी गयी एक सांस्कृतिक चुनौती थी.
वर्मा जी का एक रूप तब दिखा, जब बिहार के बेल्छी में दलितों का नरसंहार हुआ. उन्होने इसका तीखा विरोध किया. उनकी बात अखबारों ने नहीं छापी. जब उनके इलाके में फूलन देवी ने बेहमई कांड किया तब वह अकेले राजनेता थे जिन्होने फूलन का औचित्य स्पष्ट किया. उन्ही के वक्तव्य से फूलन के सामूहिक बलात्कार की बात सामने आयी थी.
वर्मा जी से मेरी आत्मीयता थी. विभिन्न विषयों और बिन्दुओं पर उन से बात करना दिलचस्प होता था. उनकी तार्किकता बेजोड़ थी. 1976 की बरसात में वर्मा जी, मोतीराम शास्त्री जी और लक्ष्मण चौधरी मेरे गाँव वाले घर पर तीन रोज रहे. असुविधाओं और मूसलाधार बारिश के बीच कहीं आना-जाना मुशकिल था. आपातकाल का दौर. वह संक्षिप्त वर्षावास बुद्ध के वर्षावास की याद दिलाता है. जाने कितने बिन्दुओं पर चर्चा हुई.
वर्मा जी से अनेक बिन्दुओं पर मैँ विमत होता था, फिर भी मैँ हमेशा उनका स्नेहभाजन रहा. तर्क और विमर्श करने में उनका मन लगता था. भारतीय चिन्तन परम्परा के अपने समय में वह जीवित प्रतिनिधि थे. जनक, बुद्ध और नागसेन के व्यक्तित्व के कुछ अंश उनमें समाहित थे. वह बार-बार कहते थे क्रोध और नफरत के साथ विमर्श संभव नहीं है. लोकतंत्र का पहला पाठ है विरुद्ध मत के साथ भी मित्र भाव रखना. अंधश्रद्धा और भक्ति उन्हें पसंद नहीं थी. वह कहते बीते हुए कल मैने जो कहा वह आने वाले कल भी कहूँ यह जरूरी नहीं है. जिस विचार में धारा या प्रवाह नहीं, वह जड़ हो जाता है.
उनसे आखिरी मुलाकात सासाराम रेलवे प्लेटफार्म पर हुई. 1990 के आस-पास की बात है. किसी जलसे में उन्हें बुलाया गया था. प्लेटफार्म की सीमेंट वाली कुरसी पर मैने उन्हें बैठे देखा. वह लौट रहे थे. उनकी गाड़ी आने में देर थी. उनके मेजबान कहीं इधर-उधर गए हुए थे. वर्मा जी अखबार में ड़ूबे हुए थे. मैँ वर्षों बाद उन्हें देख रहा था.कृशकाय हो चुके थे. गोरे मुखड़े पर सुनहले फरेम का चश्मा. मैने प्रणाम किया तो उन्होने पहचान लिया. ट्रेन आने में देर थी. उन्हें स्टेशन मास्टर के कमरे में ले आया. फिर दुनिया भर की बातें.
काश! वह आज होते.
आज उनकी पुण्य तिथि है.
उनकी स्मृति को प्रणाम.
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