मौजूदा चुनाव आयोग असंवैधानिक है

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The current Election Commission is unconstitutional

Kanak Tiwari

— कनक तिवारी —

लोकतंत्र मौजूदा भारत में सबसे मुश्किल दौर में तिनके की तरह उड़ाया जा रहा है। दुखद और अचरज है कि कथित हिटलरशाही से लोकतांत्रिक लड़ाई लड़ने की सही रणनीति अपनाने के बदले विपक्ष भी छोटे मोटे हथियारों पर भरोसा करता नज़र आ रहा है, संग्रहालय बनता लग रहा है, जबकि कायदा तो यही होता है कि हिटलरशाही की नाभि पर ही प्रहार करना चाहिए। फिलवक्त जनदृष्टि में राहुल गांधी, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, स्टालिन, शरद पवार, कम्युनिस्ट पार्टियां और तमाम छोटे बड़े नेता और समूह एकजुट दीखते तो हैं। वे सब केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग की हरकतों को लेकर आरोप लगाते हैं कि चुनाव आयोग सरकार के इशारों पर खुअेआम अहंकारी आचरण और गैरजिम्मेदार भाषा में पब्लिक डोमेन में बकवास भी कर रहा है। वह लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों और अनिवार्य प्रक्रियाओं को तोड़ मरोड़ कर बिखेर रहा है जैसे किसी पक्षी के पंख नोच नोचकर हत्यारे फेंक देते हैं। पूरे विपक्ष को लेकिन मछली की आंख नहीं दिखाई दे रही। नहीं बूझ पा रहा कि तोते की जान कहां है? पूर्वजों के बनाए संविधान की हर इबारत नागरिकों, लोकतंत्र और भविष्य के लिए भविष्य पाठ की तरह पढ़ी नहीं जा रही। इतिहास के कालजयी बुनियादी पाठ मिडिलफेलियों के पाठ्यक्रम में शामिल हो गए हैं। यह मुद्दा अन्यथा बेशकीमती है क्योंकि लोकतंत्र कीमती है।

(2) लोकतंत्र का संचालन आम चुनाव के जरिए होता है। 15 जून 1949 को चुनाव आयोग गठित करने का इरादा संविधान सभा में अनुच्छेद 324 (2) {प्रारूप संविधान में अनुच्छेद 289 (2))} पेश किया गया। प्रावधान उसी दिन जबरदस्त बहस का मुद्दा बना। प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा0 अम्बेडकर ने समझाया आखिरकार संविधान सभा में तय हुआ है कि चुनाव सम्बन्धी प्रावधानों को मूल अधिकारों के परिच्छेद से अलग रखा जाए क्योंकि मूल अधिकारों पर तो कई कारणों और इबारतों में सरकारों का प्रतिबंध होता है। कहा कि आधारभूत सवाल है कि चुनाव प्रक्रिया पर कार्यपालिका अर्थात् केन्द्र सरकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए। बताया कि संविधान सदस्यों में इस पर सहमति थी। इसलिए चुनाव प्रबन्धन ऐसे निकाय को सौंपा जाएगा जो चुनाव आयोग कहा जाएगा। अम्बेडकर ने दो टूक कहा संविधान के तहत 21 वर्ष (अब 18 वर्ष) की उम्र के किसी मतदाता को सरकार का विरोध करने के कारण और किसी पदाधिकारी की सनक के भी कारण वोट देने से वंचित नहीं किया जा सकता।

(3) अम्बेडकर की तकरीर पर जागरूक सदस्य प्रो0 शिब्बनलाल सक्सेना ने सबसे पहले टिप्पणी की। कहा प्रावधान के अनुसार राष्ट्रपति ही आयोग को नियुक्त करेगा तो प्रधानमंत्री का हस्तक्षेप बल्कि उनका सीधा अधिकार ही आयोग को नियुक्त करने में हो जाएगा। सक्सेना का नायाब सुझाव था जो व्यक्ति नियुक्त किया जाए उसे सभी पार्टियों का विश्वास कमोबेश अनुपात में संवैधानिक प्रावधानों के तहत हासिल होना चाहिए। नियुक्ति केवल लोकसभा के बहुमत के ही आधार पर नहीं हो। लोकसभा और राज्यसभा के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन संयुक्त सत्र में उसे हासिल करना हो। उन्होंने कहा आज प्रधानमंत्री के रूप में जवाहरलाल नेहरू का चेहरा है। वे महान नेता और लोकतंत्र के सबसे बडे़ समर्थक हैं। कभी लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि पक्षपाती नस्ल का प्रधानमंत्री आ जाए। वह ऐसे व्यक्ति की नियुक्ति करा दे जिससे उसका और उसकी पार्टी का लगाातर फ़ायदा होता रहे। संविधान में प्रतिबंध हो कि भविष्य में कोई प्रधानमंत्री पक्षपात नहीं कर पाए। सदस्यों ने इस सुझाव को हाथों हाथ नहीं लिया कि कहीं भविष्य में कभी ऐसा व्यक्ति लोकप्रिय नहीं मिला तो चुनाव आयोग बनेगा कैसे?

(4) असम के कुलाधर चालिहा ने दो टूक कहा मुख्य चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति ही चुनेगा तो वह पार्टी का सदस्य होने से पार्टीपरस्त तो होगा। बहुत अनुभवी नेता हृदयनाथ कुंजरू ने खुली चेतावनी दी चुनाव आयोग को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त करने का प्रावधान रहने से केन्द्र सरकार का राजनीतिक पक्षपात और भ्रष्टाचार बेतरह बजबजाने लगेगा। उन्होंने चुनाव आयुक्तों को प्रमुख चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा हटाए जाने के प्रावधान की भी खिल्ली उड़ाई। सुझाव दिया इन मामलों के लिए संसद को अधिनियम बनाने का अधिकार होना चाहिए। नज़ीरुद्दीन अहमद ने केन्द्र सरकार की अहमियत घटाने से तो परहेज किया लेकिन ज़रूर कहा कि चुनाव पर नियंत्रण और देखभाल किसी अत्यधिक काबिल, स्वतंत्र और निष्पक्ष निकाय के हाथ में ही होना चाहिए।

(5) डाॅ0 अम्बेडकर द्वारा सुझाए गए प्रावधान का समर्थन अनुभवी सदस्य कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने किया। मुंशी का लेकिन अजीब तर्क था कि चुनाव आयोग को केन्द्र सरकार के व्यापक अनुदेशों के तहत ही रहना चाहिए। चुनाव आयोग को समानान्तर सत्ता नहीं बनाया जा सकता। फिर भी कुंजरू की तजबीज़ से मुंशी को सहमत होना पड़ा कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता के लिए नियुक्तिकर्ता राष्ट्रपति के हुक्म पर संसद द्वारा बनाए गए प्रावधानों के जरिए ही लगाम लगाया जाना जायज़ होगा। भ्रष्टाचार केवल राजनेताओं और उम्मीदवारों द्वारा नहीं सरकार द्वारा भी हो सकता है।

(6) देश को जानना चाहिए मुख्य चुनाव आयुक्त को भी कितनी अहमियत दी जाए को लेकर डा0 अम्बेडकर की अंतिम आधिकारिक राय क्या थी। आज उनके विचारों और स्पष्ट स्थापनाओं तथा संविधान संबंधी सैद्धांतिक और वैचारिक स्पष्टीकरण का मज़ाक ही नहीं उड़ाया जा रहा, उसकी हत्या कर दी गई है। संविधान नेताओं का मनोरंजक झुनझुना नहीं है। वह सफर में पढ़ा जाने वाला साहित्य नहीं है। किसी तांत्रिक की भाषा भी नहीं है, जहां केवल हुल्लड़ को बहुमत माना जाए या कुटिल अंधभक्तों की फौज को देश सौंप दिया जाए। अम्बेडकर की प्रज्ञा ने भारत के भविष्य के लिए स्वप्न देखा और उसकी सीमाएं भी तय कर दी थीं। अम्बेडकर के संवैधानिक ऐलानों पर आचरण के बदले संवैधानिक मूर्खताएं की गई हैं। अम्बेडकर ने नेहरू के साथ अगली संसदों पर भरोसा करते साहसिक ऐलान किए थे। अगली संसदों को कई नसीहतें भी दी थीं। ये नसीहतें संसदें लेकिन लगातार भूलती गई हैं।


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