दिशोम गुरु शिबू सोरेन श्रद्धांजलि और संकल्प सभा सम्पन्न

0
Dishom Guru Shibu Soren tribute and resolution meeting concluded

झारखंड के संघर्ष नायक रहे शिबू सोरेन के प्रति श्रद्धांजलि देने के लिए झारखंड जनाधिकार महासभा द्वारा एक विचार सभा आयोजित हुई। श्रद्धांजलि देने और संकल्प लेने के साथ झारखंड आंदोलन – सपने, संघर्ष और चुनौतियां विषय पर सहभागियों ने अपने विचार भी व्यक्त किए।

परिसर स्थित अखड़ा में पहले आदिवासी और हिन्दी गीतों के साथ सांस्कृतिक भावांजलि का एक दौर चला। उसके बाद दिशोम गुरु के चित्र पर पुष्पार्पण हुआ। गीतों और फूलों की इस श्रद्धांजलि में प्रियशीला, मीना मुर्मु, कैरोलिना किस्कु, बबीता, मेरीनिसा हांसदा, एलिना होरो, लीना पद्म, किरण, टॉम कावला, कुमार चन्द्र मार्डी, फैसल अनुराग, टोनी पी एम, श्रीनिवास आदि की विशेष भागीदारी रही । उसके बाद उपस्थित सारे लोगों ने पुष्पांजलि दी। यह सत्र प्रवीर पीटर के संचालन में चला।
झारखंड आंदोलन के सपने, संघर्षों और चुनौतियों के साथ शिबू सोरेन को समझने के सत्र में बहादुर उरांव, फैसल अनुराग, दिशोम गुरू के सहकर्मी दुलड़ चंद्र नायक, कोल्हान क्षेत्र के विस्थापन विरोधी आंदोलनों के संगठनकर्ता कुमार चन्द्र मार्डी, शमीम जैसे साथियों ने सम्बोधित किया।

टॉम कावला ने इस सत्र का विषय प्रवेश किया। उन्होंने शिबू सोरेन के पिता सोबरन मांझी के सूदखोर विरोधी संघर्ष और सूदखोरों द्वारा उनकी हत्या की पृष्ठभूमि से लेकर शिबू सोरेन के आंदोलनकारी बनने तक की यात्रा संक्षिप्त रूप से रखी। शिबू सोरेन राजनेता से ज्यादा लोगों की समस्याओं को समझने वाले नेता रहे। शिबू सोरेन के संघर्ष से दुनिया के सामने झारखंड की सूदखोरी की भीषण सच्चाई सामने आयी। झारखंड में एक जागृति आयी। एक बार गिरफ्तारी के बाद दुमका में तीन लाख लोग शिबू को वापस लेने की मांग पर कुछ दिनों तक जमे रहे। आदिवासियों की इतनी बड़ी भीड़ भी उग्र और आक्रामक नहीं रही। राजनेता के रूप में शिबू सोरेन विफल रहे। यही विफलता आदिवासी नेता के रूप में उनकी सफलता थी। किसी विधायक ने, बेटा बहू विधायक ने भी उनके लिए जरूरी होने पर सीट खाली नहीं किया। जाहिर है वे आलाकमान , कमांडर शैली का नेतृत्व नहीं करते थे। तीर धनुष लेकर बाजार जाने पर पाबंदी की कोशिश को उन्होंने यह कहकर नकार दिया कि क्या सिक्खों के कृपाण पर पाबंदी संभव है?

बहादुर उरांव ने अपने रेलवे और बीड़ी मजदूरों के संघर्ष के साथ गुरुजी के सपनों की प्रेरणा बतायी। 6-7 मई 1978 गोस्सनर कॉलेज मैदान निर्मल मिंज, सीताराम शास्त्री, वीर भारत तलवार आदि की पहल से कॉन्फ्रेंस हुआ था। झारखंड आंदोलन को एक नयी गति दी गयी थी। झारखंड की लड़ाई अभी बाकी है। यह व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई है। गुरुजी ने गांव गांव घूमने के बाद चाईबासा में बड़ी रैली कर तीर धनुष पर लगी पाबंदी हटाने के लिए बिहार सरकार को बाध्य कर दिया था। उन्होंने कहा कि आज झामुमो गुरुजी के सपनों की दिशा में नहीं है। शराबबंदी गुरुजी के सपनों की दिशा में न्यूनतम कदम है।

फैसल अनुराग ने कहा कि इतिहास की समीक्षा अमूमन रहमदिल नहीं होती। 1911 से 1960 तक की अलग कहानी है। इस दौर ने पश्चिमी लोकतंत्र के मुकाबले आदिवासी समाज में अंतर्निहित लोकतांत्रिक संस्कृति की ओर ध्यान दिलाया। आज लोकतंत्र फासिज्म , सर्वसत्तावाद के दरवाजे पर खड़ा है। शिबू सोरेन ने तीन बातों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक, झारखंड में वर्गीय चेतना को जन्म दिया । यह 1960 के दौर से भिन्न है। दो, आंदोलन को सांस्कृतिक नजरिया दिया। यह बिरसा और सिद्धू कानो से लिया। शराब , निरक्षरता और बाल विवाह का विरोध किया। तीन, झारखंड आंदोलन में समाजवाद की वैचारिक दिशा को समर्थन दिया।

दुलर चंद नायक ने कुछ संस्मरण बताये। 1973 में महाजन के डर से लोग छिपते रहते थे। सारे जमीनों पर महाजनों का कब्जा था। और उस जमीन के असली मालिक कमियां के रूप में महाजनों के यहां गुलामी करते थे। धनकटनी आंदोलन में भागीदारी के कारण मुझे घर से निकाला गया। दिशोम गुरु ने महाजनों से पीड़ित जनों की जिन्दगी बदल दी। समस्या पीड़ितों के पास जाना , समस्या दूर करने की कोशिश करना ही श्रद्धांजलि होगी।

शिबू सोरेन हमेशा आदिवासी पहल और नेतृत्व पर जोर देते थे, अन्य समुदायों के नेताओं के पिछलग्गू बनने से रोकते थे। जंगल, जमीन पर अपने हक और शराब से मुक्ति शिबू सोरेन का नारा था। झारखंड के सारे ऐतिहासिक नायकों को इतिहास में सही जगह नहीं मिली है। जयपाल सिंह मुंडा के साथ साथ शिबू सोरेन की शख्सियत का भी जितना वस्तुगत और सकारात्मक आकलन होना चाहिए , अब तक भारतीय विश्लेषकों-चिंतकों ने नहीं किया है। इस तरह की अनेक बातें विविध वक्ताओं की ओर से आयीं।

चर्चा सत्र का संचालन अलोका कुजुर और दिनेश मुर्मु ने किया।

इस श्रद्धांजलि सभा सह विचार सत्र में चांडिल विस्थापित पुनर्वास आंदोलन के डोमन बास्के, अडाणी पावर प्लांट विरोधी आंदोलन से जुड़ी मैरीनिशा, युनाइटेड दिल्ली फोरम के अफजल अनीस, पोटका के सिद्धेश्वर भूमिज, नव जनवादी लोकमंच के रामकवीन्द्र सिंह, निर्मला एक्का, पी यू सी एल के शशि, जीवन किस्कु, ऐपवा की नन्दिता, मीना मुर्मु, एलिना होरो, मनोज भूइयां, माले के आर एन सिंह, अनिल कुमार हांसदा, बिलकन, बिरसा की अजीता, सिराज दत्ता, प्रवीर पीटर ने भी अपने लिए व्यक्त किए। सभा का समापन वक्तव्य मंथन ने दिया।


Discover more from समता मार्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Comment