मोदी की मणिपुर यात्रा की महज औपचारिकता यह बताने के लिए काफी है कि आरएसएस के लिए राज का अर्थ भारत में अंग्रेज़ों के राज से ज़रा भी अलग नहीं है । इतिहास का सबसे मज़बूत राज होने पर भी अंग्रेज़ों को अपने स्वार्थ के अलावा जनता की दूसरी किसी चीज से कोई लेना-देना नहीं था । यहाँ तक कि उनमें भारत के लोगों को ब्रिटिश नागरिक बनाने की भी कोई इच्छा नहीं थी ।
शांति-व्यवस्था के लिए सिर्फ सेना-पुलिस और दमन यंत्र पर उनका यकीन था । भारत की जनता के जीवन में उनकी पैठ इतनी न्यूनतम थी कि आजादी के बाद ही उनकी यहां अता-पता तक नहीं मिलता ।जबकि आज़ाद भारत और पाकिस्तान, दोनों देशों में शासन जनता के जीवन से गहरी पैठ रखता है।
पाकिस्तान के पश्चिमी सैनिक शासकों ने जब पूरब के प्रति अंग्रेज़ों वाला रवैया अपनाया तो उसका परिणाम 1971 में बांग्लादेश के उदय के रूप में सामने आया ।मणिपुर और पूरे उत्तर -पूर्व पर गौर करें तो पता चलेगा कि हैं यहां मोदी सरकार की दिलचस्पी भी आरएसएस के विस्तार तक सीमित है ।
वे सिर्फ दमन की ताक़त से वहाँ शांति रखने पर विश्वास करते हैं ।इसीलिए मणिपुर में हिंसा की आग कहीं से बुझती नहीं दिखाई देती है । इस यात्रा में भी मणिपुर के लोगों ने मोदी का तिरस्कार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है ।
यह मामला सिर्फ मणिपुर या उत्तर-पूर्व या भारत के किसी भी हिस्से का नहीं है । यह आरएसएस की शासन की सामान्य नीति को दर्शाता है ।यह राजशाही और ब्रिटिश राज से अपनाई गई नीति है। अपने निजी और आस-पास के मित्रों के हितों को साधो और व्यापक जनगण को डंडों के बल शांत रखो ।अंग्रेज़ चले गए पर आज उनके छोड़े हुए दूत शासन पर बैठे हैं।
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