भगवान के मामले में क्यों सुनवाई करे सुप्रीमकोर्ट ?

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Rakesh Achal

— राकेश अचल —

लिए एक तरह से अच्छा हुआ कि सुप्रीमकोर्ट ने ये साफ कर दिया कि वो भगवान के मामले में कोई सुनवाई नहीं करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने खजुराहो में भगवान विष्णु की सात फीट ऊंची मूर्ति की दोबारा स्थापना से जुड़ी याचिका खारिज कर दी। सुनवाई के दौरान सीजेआइ बीआर गवई ने याचिकाकर्ता से कहा कि वे भगवान से कहें कि वे खुद इस मामले में कुछ करें। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मूर्ति के सिर को नुकसान पहुंचाया गया है।

जनहित याचिका को प्रचार हित याचिका बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने ये कहते हुए याचिका सुनने से इनकार कर दिया कि इसमें केवल प्रचार पाना ही उद्देश्य नजर आता है। जाइए और भगवान से कहिए कि वे खुद कुछ करें। आप खुद को भगवान विष्णु का उपासक कहते हैं तो प्रार्थना करिये और थोड़ा ध्यान लगाइए।

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मूर्ति के सिर को नुकसान पहुंचाया गया है और अदालत से इसके पुनर्निर्माण में हस्तक्षेप की मांग की थी। पीठ ने कहा कि ये मामला पूरी तरह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के अधिकार क्षेत्र में आता है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि एएसआइ ही तय कर सकती है कि इसके पुनर्निर्माण की अनुमति दी जाए या नहीं। तब तक, यदि आप शैव धर्म के विरोधी नहीं हैं तो वहां जाकर पूजा कर सकते हैं। वहां काफी बड़ा शिवलिंग है, जो कि खजुराहो में सबसे बड़ा है।

दर असल भगवान पत्थर के हों या नान वायोलोजीकल उनके खिलाफ कोई भी अदालत सुनवाई कर भी नहीं सकती, क्योंकि दोनों में एक समानता होती है और वो ये कि भगवान बोलते नहीं है. वे सिर्फ सुन सकते हैं. सुनकर अनसुनी करना भगवान का विशेषाधिकार है. जस्टिस गवई का संदेश गहन है. उसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए और कम से कम किसी भगवान के मामले में माननीय अदालत को नहीं घसीटा जाना चाहिए.

भगवान सर्व समर्थ होते हैं. वे अपनी रक्षा आप कर सकणते हैं. उनके लिए या उनके फैसलों को लेकर किसी अदालत में कोई याचिका दायर नही कराई जा सकती.. भगवान की सिर्फ पूजा की सकती है. उनके जयकारे लगाए जा सकते हैं. भाजपा के भगवान का आज 76 वां जन्मदिन पूरे देश में सेवा पाख के रुप में मनाया जा रहा है.कायदे से आज का दिन राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाया जाना चाहिए. जैसे पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का मनाया जाता है बालदिवस के रुप में.

भारत का सौभाग्य है कि अवतार यहीं होते हैँ. कांग्रेस में श्रीमती इंदिरा गांधी को दुर्गावतार कहा गया था. उनके बाद माननीय नरेंद्र मोदी का अवतार हुआ है. कोई उन्हें विष्णु का अवतार मानता है तो कोई शिव का. वैसे खुद मोदीजी ने इस बात की पुष्टि की है कि वे कलियुग में नीलकंठ का अवतार हैं जो दुनियां का तमाम विष खुद पीते हैं. देश को मोदीजी जैसे ही विषपायी की जरुरत है. वे स्वस्थ्य रहें, प्रसन्न रहें 2047 तक क्या पुतिन और शी जिन पिंग की तरह आजीवन पंतप्रधान बने रहें.

मोदीजी को लेकर अब संघ और भाजपा को परेशान होने की जरुरत नहीं है. मोदीजी जी अवतार हैं और अवतारी का कोई कानू, कोई अदालत, कोई डोनाल्ड कुछ नहीं बिगाड सकता. जो मोदीजी से टकराएगा, वो चूर-चूर हो जाएगा. फिर चाहे ममता जी हों या राहुल गांधी. ये चाहे जितनी वोट अधिकार यात्राएं निकाल लें मोदीजी की सरकार का बाल वांका नहीं कर सकता, क्योंकि मोदीजी परम स्वतंत्र हैं. उनके ऊपर कोई नहीं हैऔर न कोई होगा.


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