— प्रोफेसर राजकुमार जैन —
अंग्रेज़ी भद्र समाज और उसके समाचार पत्रों ने सोशलिस्ट नेता राजनारायणजी की तस्वीर, एक गंवार, अशिक्षित, हुल्लड़बाज़, असभ्य नेता के रूप में गढ़ी थी, क्योंकि यह वर्ग सरकारी पदों, सत्ता द्वारा मिले साधनों को भोग रहा था। पूंजीपति घराने भला कैसे राजनारायण जैसे सोशलिस्ट को बख्श देते।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एम.ए., एल.एल.बी की उपाधि लेना राजनारायणजी के व्यक्तित्व के लिए एक छोटी बात थी। राजनारायणजी का अध्ययन कितना व्यापक था, इसकी एक मिसाल आपातकाल में जब वे हिसार जेल में बंदी थे, तो उन्होंने श्रीमती इन्दिरा गांधी को एक पत्र उस समय भेजा, जब वह रूस के दौरे पर जा रही थीं। इस लंबे खत में अन्य बातों के अलावा, उन्होंने रूस और हथियारों के बारे में जो लिखा था, आज रूस और यूक्रेन के युद्ध में उसकी प्रतिध्वनि सुनाई दे रही है। राजनारायणजी जेल में थे कोई लायब्रेरी या सहायक सामग्री उनको उपलब्ध नहीं थी। मात्र अपने अनुभव, ज्ञान, स्मृतियों, अध्ययन के आधार पर उन्होंने लिखा था।
जिला जेल हिसार
दिनांक 14.5.1976
श्रीमती इन्दिरा गांधी जी,
प्रधानमंत्री
नई दिल्ली
माननीया
….. मैं चाहता हूं कि आप रूसी नेताओं से सन् 1945 के पूर्व और सन् 1945 के बाद के हथियारी जगत पर ज़रूर बात करें। सन् 1945 के पूर्व भले लोगों की नज़र में हथियार बुरे थे। अब बेमतलब हो गए हैं दोनों में फ़र्क है। गांधी, ईसा मसीह, गौतम बुद्ध की दृष्टि में हथियार खराब थे। सुकरात हथियारों को खराब मानते थे। उनसे नफ़रत करना सीखाते थे। हिरोशिमा-नागासाकी यादें अभी ताज़ा है। एक बम में सब साफ़। ड्रेसडेन शहर में एक दिन में इतने गोले गिरे कि साठ-सत्तर हज़ार आदमी एक दिन में मर गये। वास्तव में आज के पूर्व की लड़ाई होती थी, हार-जीत की, मगर अब जो विश्व युद्ध होगा वह होगा नरसंहार का। इस समय पचीसों अरब रुपया दुनिया हथियार बनाने में लगा रही है। अब युद्ध का अर्थ है सर्वनाश। …. हथियारों की होड़ क्यों ? यदि इसे रोका नहीं गया तो दुनिया खत्म होगी। रूसी नेताओं को यह बात बताना जोर के साथ ज़रूरी है। भारत इसमें अगुवाई करे, क्योंकि भारत नहीं करेगा तो कौन करेगा?
पच्चीस अरब रुपया जो हथियारों, एटम, हाइड्रोजन बमों, प्रक्षेपास्त्रों को बनाने में लग रहे हैं, उसको नया मानव समाज बनाने में क्यों न लगावें? इस प्रश्न को उजागर करना भारत का काम है।
आज सबसे बड़ा भयंकर खतरा हथियारों की ग़ैर बराबरी को मिटाना है। और इस ग़ैर बराबरी को मिटाने के लिए हथियारों को ही समाप्त करना होगा । जब हथियार रहेंगे तो उनका इस्तेमाल होगा, आज हो या कल।
विकसित और अविकसित मुल्कों की ग़ैर बराबरी मिटानी होगी। टेक्नालॉजिकल हिसाब से भारत जितना उत्पादन करता था। 60 मिनट में, रूस 6 मिनट में और अमेरिका 3 मिनट में, इनमें बराबरी लानी होगी। …..जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समीप्यता का सिद्धांत (theory of approximation) लगेगा। आज रूस और अमेरिका अधिकतम कौशलता (maximum efficiem) के सिद्धांत पर चल रहे हैं, मगर उस अधिकतम कौशलता के सिद्धांत को संपूर्ण कौशलता (Total Efficiency) में बदलना होगा। जो संपूर्ण मानव समाज और सभी व्यक्तियों के लिए समानरूप से मान्य होगा। मैं चाहूंगा कि आप रूस को अभी और जब कभी अमेरिका में जायें या अपना प्रतिनिधि भेजें तो उसको स्पष्ट ढंग पर बोल दें कि यदि आपकी बात इस समय नहीं मानेंगे तो उनकी हालत डायनासोर (dinosaur) की होगी, जो अपने ही बोझ से मर जाएगा और विश्व के लिए खतरा पैदा करेगा। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में समानता का सिद्धांत लागू करना होगा। चाहे उत्पादन हो, वितरण हो, विनिमय हो, टेकनोलॉजी हो, मानव-मानव का सम्बंध हो। व्यक्ति के द्वारा व्यक्ति का, राष्ट्र के द्वारा राष्ट्र का, कम्यून के द्वारा कम्यून का शोषण सभी प्रकार का बंद होना चाहिए। एक अंतर्राष्ट्रीय श्रम का बंटवारा होगा, सभी को काम होगा और वैज्ञानिक ढंग से समुचित आवश्यक उत्पादन होगा।
अंत में राजनारायणजी लिखते हैं-
अब ढलान (जीवन) पर जा रहा है, अल्हड़पन नहीं है। आपकी बात सुनेगा। फ्रांसीसी अनातोले के सिद्धांतानुसार आप उनको कुछ स्पिरिट और मैटर, आत्मावाद और भौतिकवाद का पारस्परिक मेल बनाइए। चेतन-जड़ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह अस्तित्व, जलन कलंक के साथ ज़्यादा कारगर नहीं होता। सहअस्तित्व अच्छी चीज़ है।
भारतीय संस्कृति, गांधी परम्परा और मानवीय ज्ञान-विज्ञान भूत की अनुभूतियां, वर्तमान का सम्यक् ज्ञान और भविष्य का सपना हमारी पूंजी है, जो एक नया सत्य समाज बना सकता है।
आपातकाल में बंदी, बहुत से नेता और कार्यकर्ता जहां माफ़ीनामा लिखकर सरकार से रिहा होने की गुज़ारिश कर रहे थे, वही हिसार जेल में बंदी जीवन काट रहे राजनारायण बेखोफ़, बेबाकी के साथ प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी को लिखते हैं- आप हमारी बात को नोट कर लीजिएगा कि आपका इस्तीफा 12 जून 1975 को हो गया होता तो आप विश्व में एक नई आदर्शवादी जननेता के रूप में निखर कर आतीं। अद्वितीय बेजोड़ हो जातीं, जो लोग बराबर आपसे लाभान्वित होते हैं उन्होंने आपको ग़लत सलाह दी। आज सारा शासन, प्रशासन उसी खराबी को दूर करने में व्यस्त है।’’
यह इमरजेंसी काल आज-कल सत्ताधारी दल के चुनाव अभियान तेज करने की मशीनरी की तरह इस्तेमाल हो रहा है। कुर्सी कांग्रेस (इन्दिरा गांधी पार्टी) अपनी लोकप्रियता से नहीं, सरकारी साधनों से चुनाव जीतने की कलाबाजी कर रही है। सभी जगह विरोधी दलों को तोड़ने, लोगों को धमकाने, भ्रम फैलाने का व्यापक प्रचार हो रहा है। हम अपने दूरर्दशन, समाचार पत्रों में एक पार्टी का प्रचार करते है। आपको पढ़ने में या हमारी किसी बात से कष्ट हुआ हो तो क्षमा कीजिएगा। आशा है आप स्वस्थ तथा प्रसन्न हैं।
आपका
राजनारायण
राजनारायणजी ने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत ‘कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ से की थी। कई तरह के राजनैतिक प्रयोगों, जनता पार्टी, लोकदल इत्यादि से गुजरने के बावजूद अंत में उन्होंने 1985 में अपनी मूल आस्था वाली सोशलिस्ट पार्टी फिर से स्थापना कर ली थी, पर जल्द ही 31 दिसंबर 1986 को इनका इंतकाल हो गया।
अंत में अगर जनता पार्टी, सरकार के बनने और खत्म होने का तटस्थ मूल्यांकन किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि राजनारायणजी के बेखौफ़, बड़ी से बड़ी ताक़त के ख़िलाफ़ टकराने की दिमाग़ी बुनावट तथा जहां अन्याय तत्काल प्रतिकार। समर्थन और विरोध में किसी भी हद तक जाने, चाहे उसमें उनका व्यक्तिगत रूप से कितना भी नुक़सान हो जाए, इसकी परवाह नहीं की थी।
जनता पार्टी सरकार में राजनारायण और मधु लिमये ये दो नेता थे, जिन्होंने आर.एस.एस. जनसंघ को ललकारा। इस पूरे प्रकरण में इन्होंने अपने लिए कुछ नहीं चाहा, परंतु जहां सिद्धांतों का सवाल था, यह मुमकिन नहीं था कि ये चुपचाप बैठ जाते। इस कारण तात्कालिक रूप से इन्होंने विरोधियों को छोड़िये, अपनों के लांछन, लानत विरोध को भी सहा। आज मोदी राज में बार-बार इनको याद किया जा रहा है। अपने और विरोधियों को अपनी ग़लती का अहसास होना लाज़मी है।
काशी नरेश के वंशजों के मालदार जमींदार घराने में जन्म लेने वाले राजनारायण ने अपने समय के बड़े-से-बड़े सत्ताधीशों को धूल चटा दी। वे चाहते तो, बड़ा से बड़ा पद दौलत पा सकते थे, परंतु इनका जीवन, एक फ़क़़ीर की तरह था, कोई दौलत, ज़मीन-जायदाद नहीं। इसके कारण ही इनके इंतक़ाल के बाद बनारस में निकली इनकी शवयात्रा में लाखों लोग शामिल थे। बीड़ी-सिगरेट, चाय तक की दुकाने बंद थी। पूरा बनारस शहर ठप्प था। सड़क के किनारे बैठने वाले मोची, धोबी, नाई जुलूस में ‘इन्कलाब जिंदाबाद’, ‘राजनारायण जिंदाबाद, ‘राजनारायण बोल रहा है कमाने वाला खाएगा, लूटने वाला जाएगा’ नारा-ए-तकबीर-अल्ला हू अकबर, हर-हर महादेव, वाहे गुरुजी का खालसा के नारों से इस राजनैतिक संन्यासी को विदाई दे रहे थे।
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