— परिचय दास —
डिजिटल युग ने दुनिया को बदल दिया है। मानव सभ्यता के इतिहास में संचार के साधनों का विकास जिस गति और रूप में इक्कीसवीं शताब्दी में हुआ है, उसका पूर्व उदाहरण ढूँढना कठिन है। आज दुनिया का हर व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म से जुड़ा है। मोबाइल फोन, इंटरनेट, सोशल मीडिया, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और वर्चुअल नेटवर्क जैसी तकनीकें अब केवल सुविधाएँ भर नहीं हैं, बल्कि जीवन का अनिवार्य हिस्सा बन चुकी हैं। ऐसे समय में सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि इस डिजिटल व्यवस्था में हमारी भाषाएँ किस प्रकार अपनी पहचान बना रही हैं और विशेष रूप से हिंदी ने इस परिवेश में अपनी उपस्थिति कैसे दर्ज कराई है। हिंदी का प्रश्न केवल भाषा का प्रश्न नहीं है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक अस्मिता, परंपरा और आधुनिकता के संगम का प्रश्न भी है।
हिंदी की यात्रा सदियों से चली आ रही है। बोलियों से निकलकर वह साहित्यिक भाषा बनी और फिर राष्ट्रीय स्तर पर उसे मान्यता प्राप्त हुई। आज वही हिंदी डिजिटल तकनीक के सबसे बड़े मंचों पर मौजूद है। हिंदी की पहुँच इतनी विस्तृत हो चुकी है कि फेसबुक, ट्विटर (एक्स), इंस्टाग्राम, यूट्यूब, व्हाट्सऐप, टेलीग्राम से लेकर समाचार पोर्टलों और ब्लॉगों तक, हिंदी की उपस्थिति किसी भी अन्य वैश्विक भाषा से कम नहीं है। यदि हम बीते पंद्रह वर्षों पर दृष्टि डालें तो पाएँगे कि पहले जहाँ डिजिटल दुनिया अंग्रेज़ी की बपौती लगती थी, वहीं अब हिंदी का दबदबा निरंतर बढ़ रहा है। गूगल, मेटा, अमेज़न और माइक्रोसॉफ़्ट जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भी हिंदी को अपनी सेवाओं में प्राथमिकता देने लगी हैं।
हिंदी की यह बढ़त अचानक नहीं आई। इसके पीछे तकनीकी विकास, उपयोगकर्ताओं की संख्या और सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों का बड़ा योगदान है। भारत आज इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या में विश्व का सबसे बड़ा देश है और इनमें से अधिकांश उपभोक्ता हिंदीभाषी क्षेत्रों से आते हैं। स्मार्टफ़ोन और सस्ती डाटा सेवाओं ने गाँव-गाँव तक इंटरनेट पहुँचाया और इसके साथ ही हिंदी भाषी लोग डिजिटल संवाद में सक्रिय हो गए। जब किसी भाषा के प्रयोगकर्ता इतनी बड़ी संख्या में डिजिटल माध्यम पर सक्रिय हों, तो उस भाषा को नज़रअंदाज़ करना संभव नहीं होता। यही कारण है कि आज हिंदी गूगल सर्च से लेकर ऑनलाइन ख़रीदारी और मनोरंजन तक हर जगह अपनी नई पहचान बना रही है।
डिजिटल मंचों ने हिंदी साहित्य और सृजनात्मकता को भी नया जीवन दिया है। जहाँ पहले हिंदी लेखक या कवि को अपनी रचनाएँ पत्रिकाओं या प्रकाशकों के माध्यम से ही पाठकों तक पहुँचानी पड़ती थीं, वहीं अब ब्लॉग, ई-बुक्स, पॉडकास्ट और यूट्यूब चैनलों ने रचनाकारों को सीधा पाठक और श्रोता उपलब्ध करा दिया है। डिजिटल मंचों ने लोकतांत्रिक संवाद की संभावना को बहुत अधिक बढ़ा दिया है। अब न तो बड़े अख़बारों और न ही प्रकाशन संस्थानों की मोहर आवश्यक है। एक सामान्य व्यक्ति भी अपनी रचनाओं को पूरी दुनिया तक पहुँचा सकता है। हिंदी ने इस अवसर का लाभ उठाया और नए-नए कवि, लेखक, विचारक और वक्ता डिजिटल माध्यम से उभरे।
हिंदी पत्रकारिता का भी स्वरूप पूरी तरह बदल गया है। पहले केवल प्रिंट और टीवी तक सीमित हिंदी पत्रकारिता अब वेब पोर्टलों, यूट्यूब न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया हैंडल तक विस्तृत हो चुकी है। इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नए आयाम खुले हैं। ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों की समस्याएँ भी अब तुरंत राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर सामने आ जाती हैं। डिजिटल मंचों पर हिंदी में हो रहा यह संवाद समाज के लोकतांत्रिक ढाँचे को मजबूत कर रहा है।
सिनेमा और मनोरंजन की दुनिया भी इससे अछूती नहीं रही। ओटीटी प्लेटफ़ॉर्मों ने हिंदी को विश्व स्तर पर प्रस्तुत किया है। नेटफ़्लिक्स, अमेज़न प्राइम और हॉटस्टार जैसे मंच अब हिंदी में मूल सामग्री का निर्माण कर रहे हैं। हिंदी गाने, नाटक और शॉर्ट फ़िल्में वैश्विक दर्शकों तक पहुँच रही हैं। हिंदी का यह सांस्कृतिक विस्तार डिजिटल दुनिया में उसकी नई पहचान को और गहराई देता है।
हिंदी शिक्षण और अनुसंधान भी डिजिटल माध्यम से नया आयाम प्राप्त कर रहे हैं। ऑनलाइन पाठ्यक्रम, वेबिनार, ई-कक्षाएँ और डिजिटल पुस्तकालयों ने हिंदी अध्ययन को सरल और व्यापक बना दिया है। आज विद्यार्थी कहीं भी बैठकर हिंदी साहित्य, भाषा विज्ञान, अनुवाद और पत्रकारिता का अध्ययन कर सकते हैं। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर हिंदी का यह विस्तार ज्ञान की लोकतांत्रिक पहुँच को सुनिश्चित करता है।
डिजिटल युग में हिंदी केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं रही, बल्कि वह रोज़गार और व्यवसाय का भी साधन बन चुकी है। ऑनलाइन मार्केटिंग, कंटेंट राइटिंग, ब्लॉगिंग, यूट्यूब, पॉडकास्टिंग और अनुवाद उद्योग ने हजारों-लाखों युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया है। हिंदी ने इस क्षेत्र में इतनी तेजी से स्थान बनाया कि बड़ी-बड़ी कंपनियाँ भी अपने विज्ञापन और प्रचार सामग्री हिंदी में तैयार कराने लगी हैं। गाँवों और कस्बों तक पहुँचने के लिए हिंदी सबसे उपयुक्त माध्यम सिद्ध हो रही है।
इस नई पहचान के बावजूद चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। डिजिटल माध्यम पर हिंदी की वर्तनी, व्याकरण और शुद्धता पर लगातार प्रश्न उठते रहते हैं। अनेक लोग अंग्रेज़ी और हिंदी का मिश्रण कर ‘हिंग्लिश’ का प्रयोग करते हैं, जिससे शुद्ध हिंदी की गरिमा को क्षति पहुँचने का डर है। इसके अलावा तकनीकी शब्दावली का विकास भी अभी पर्याप्त नहीं हुआ है। कंप्यूटर, विज्ञान, प्रबंधन और सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में हिंदी का योगदान और शब्दावली विकसित करने की आवश्यकता है। यदि इस दिशा में गंभीर प्रयास नहीं हुए तो हिंदी केवल अनौपचारिक संवाद की भाषा बनकर रह जाएगी।
यहाँ पर हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि डिजिटल दुनिया केवल भाषा की लोकप्रियता पर निर्भर नहीं करती, बल्कि तकनीकी नवाचार पर भी आधारित है। यदि हिंदी में पर्याप्त ऐप्स, सॉफ़्टवेयर और एआई टूल्स विकसित नहीं होंगे तो हिंदी की प्रगति सीमित रह जाएगी। इसीलिए आवश्यक है कि सरकार, विश्वविद्यालय और निजी क्षेत्र मिलकर हिंदी के तकनीकी विकास पर काम करें। हिंदी के लिए यूनिकोड का विकास, गूगल ट्रांसलेट और हिंदी कीबोर्ड जैसी सुविधाओं ने बहुत मदद की है, परंतु आगे और भी लंबा रास्ता तय करना शेष है।
हिंदी की इस डिजिटल यात्रा को केवल भाषा की दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी समझना आवश्यक है। हिंदी सिर्फ़ एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय जीवन का दर्शन है। उसमें लोक की गंध है, परंपरा की जड़ें हैं और आधुनिकता की आकांक्षाएँ भी। जब यह भाषा डिजिटल मंचों पर सक्रिय होती है, तो वह न केवल संवाद का माध्यम बनती है, बल्कि सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी बनती है। दुनिया भर के लोग हिंदी फिल्मों, गीतों, कहानियों और कविताओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति से परिचित होते हैं। हिंदी की यह भूमिका डिजिटल युग में और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गई है।
हिंदी की नई पहचान का एक और पक्ष है—लोकभाषाओं का समावेश। डिजिटल मंचों पर भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, हरियाणवी, राजस्थानी, बुंदेली आदि बोलियाँ भी सक्रिय हो रही हैं। इन बोलियों की सक्रियता हिंदी को और अधिक समृद्ध बनाती है। हिंदी केवल मानक भाषा के रूप में नहीं, बल्कि एक छत्रछाया के रूप में भी डिजिटल संसार में उपस्थित है।
यदि हम भविष्य की ओर देखें तो स्पष्ट है कि हिंदी डिजिटल संसार में और अधिक प्रबल होगी। भारत की जनसंख्या, हिंदी बोलने वालों की विशाल संख्या, तकनीकी पहुँच और सांस्कृतिक प्रभाव—ये सभी कारक हिंदी को डिजिटल दुनिया में प्रमुख स्थान प्रदान करेंगे। परंतु इसके लिए हमें सजग रहना होगा कि हिंदी केवल मनोरंजन या अनौपचारिक संवाद तक सीमित न हो, बल्कि वह ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान और नवाचार की भाषा भी बने।
इसलिए हमें हिंदी की शब्दावली को समृद्ध करना होगा, तकनीकी शब्दों के लिए हिंदी विकल्प तैयार करने होंगे, और सबसे बड़ी बात यह है कि हमें अपने लेखन और अभिव्यक्ति में हिंदी की शुद्धता और सुंदरता बनाए रखनी होगी। डिजिटल मंचों ने हमें अवसर दिया है कि हम हिंदी को वैश्विक पहचान दिलाएँ। अब यह हम पर निर्भर है कि हम इस अवसर का कितना सदुपयोग करते हैं।
डिजिटल दुनिया में हिंदी की नई पहचान वास्तव में आत्मविश्वास की पहचान है। यह उस आत्मविश्वास की झलक है, जो हमें यह कहने की शक्ति देता है कि हमारी भाषा किसी से कम नहीं है। यह उस सांस्कृतिक ऊर्जा की पहचान है, जो भारतीय जीवन की जड़ों से निकलकर आधुनिकता के शिखर तक पहुँचती है। हिंदी की यह यात्रा केवल भाषा की यात्रा नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता की निरंतरता और नवोन्मेष की यात्रा है।
आज हमें गर्व के साथ कहना चाहिए कि हिंदी अब केवल कक्षा या किताबों तक सीमित भाषा नहीं रही। वह तकनीक की भाषा है, रोज़गार की भाषा है, संवाद की भाषा है, और सबसे बढ़कर, आत्मगौरव की भाषा है। डिजिटल दुनिया में हिंदी की यह नई पहचान हमारे भविष्य को नई दिशा दे रही है।
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