स्व सच्चिदानंद सिन्हा की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा

0
Tribute meeting in the memory of Late Sachchidanand Sinha

श्री सच्चिदानंद सिन्हा स्वातंत्र्योत्तर भारत के ऐसे समाजवादी चिंतक और राजनैतिक कार्यकर्ता थे जिनका सरोकार सभ्यतागत था। आधुनिक औद्योगिक सभ्यता ने जिस तरह के विश्रृंखलित समाज का निर्माण किया, उसे व्यवस्थित आधार प्रदान करने के माध्यम के रूप में जिस समाजवाद का रास्ता चुना, उस पर न केवल अविराम अनथक योद्धा के रूप में चलते रहे बल्कि उसे बदलती परिस्थितियों के साथ निरंतर व्याख्यायित करते हुए बौद्धिक धार प्रदान करते रहे।

ये बातें शीर्ष समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा की स्मृति में गांधी शांति प्रतिष्ठान एवं समाजवादी जन परिषद के संयुक्त तत्वावधान में लंगट सिंह कॉलेज के आचार्य कृपलानी सभागार शनिवार को आयोजित शोक सभा में पारित प्रस्ताव में कही गई हैं।

प्रस्ताव में कहा गया है कि मजदूर संगठन, किसान संगठन, राजनीतिक आंदोलन, राजनीतिक दल और जनांदोलनों के साथ मिलकर करीब आठ दशकों तक निरंतर सक्रिय रहे। इन वर्षों में बेहतर मानवीय सभ्यता व मनुष्य के निर्माण के वैकल्पिक आधारों को प्रस्तावित करने का महान कार्य किया। अपनी इस बौद्धिक यात्रा में वे मार्क्स से टकराते हुए बरास्ते जेपी-लोहिया- गांधी के विचारों को ज्यादा मानवीय और व्यावहारिक बताते हुए उसे नई आधारभूमि प्रदान करते रहे। प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि उपभोक्तावाद, सांप्रदायिकता, सिमटता लोकतंत्र और और असहिष्णुता तथा कट्टर होता हुआ व्यक्ति उनके अंतिम दौर की चिंता के केंद्र में रहे। उनका परवर्ती लेखन इन्हीं चुनौतियों को संबोधित है। पारित प्रस्ताव में यह संकल्प लिया गया कि इन समसामयिक चुनौतियों से अपने-अपने सामर्थ्य की सीमा में लड़ने का हम प्रयास करेंगे।

शोक सभा में प्रमुख श्रद्धांजलि वक्तव्य देते हुए स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के प्रो प्रमोद कुमार ने कहा कि सच्चिदा बाबू की चिंता के केंद्र में मजदूर, किसान और गांव थे, क्योंकि उनका मानना था कि सबसे उपेक्षित यही हैं। बेहतर समाज कैसे बने, इसके लिए वे आजीवन विभिन्न मोर्चों पर लगातार काम करते रहे। लोहिया के बाद समाजवाद को बौद्धिक आयाम देने का दायित्व सच्चिदा बाबू के कंधों पर आ गया।
प्रो प्रमोद कुमार ने कहा कि न्यूनतम जरूरतों के साथ कैसे जिया जा सकता है, इसके वे दुर्लभ उदाहरण बन गए। उदारीकरण, भूमंडलीकरण एवं सांप्रदायीकरण अंत में उनकी चिंता के केंद्र में थे।

श्रद्धांजलि सभा में स्व सच्चिदानंद सिन्हा के दोनों भाई- प्रमुख मानवाधिकारवादी प्रो प्रभाकर सिन्हा एवं कॉमरेड अरविन्द सिन्हा ने उनकी जीवन-यात्रा की विस्तार से चर्चा की। बताया कि सदाकत आश्रम में गांधीजी से हुई मुलाकात ने उनके जीवन और चिंतन को गहरे प्रभावित किया।
सिंडिकेट के पूर्व सदस्य डॉ हरेंद्र कुमार ने कहा कि सच्चिदा बाबू के जाने से एक वैचारिक शून्यता सी कायम हो गई है। अधिवक्ता ललितेश्वर मिश्रा ने कहा कि कम से कम लेकर कैसे रहा जा सकता है, यह हम उनके जीवन से सीख सकते हैं। मुकेश नेमानी ने कहा कि वे सही मामले में राजर्षि थे। डॉ ब्रजेश कुमार शर्मा ने उन्हें मानवता का गौरव बताया।
वरिष्ठ पत्रकार पुष्पराज ने मनिका के उनके घर को एक बौद्धिक केंद्र के रूप में विकसित करने की जरूरत बताई।
पूर्व प्राचार्य प्रो अबुजर कमालुद्दीन ने कहा कि आने वाली नस्लें उन पर नाज करेंगी। उनमें जेपी और गांधी की छवि इकट्ठे दिखती थी।
वरिष्ठ गांधीवादी सुरेंद्र कुमार ने कहा कि उनका परलोक गमन हो गया है, लेकिन उसका जीवन उनका संदेश बनकर हमारे बीच विराजमान रहेगा।
सच्चिदानंद सिन्हा की जीवनी पर पिछले कुछ सालों से लगातार काम कर रहीं शेफाली ने कहा कि वे मानव मात्र से बेइंतहा मोहब्बत करते थे।
पत्रकार विभेष त्रिवेदी ने कहा कि उनका व्यक्तिगत जीवन एक साधना था।
श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता करते हुए वयोवृद्ध सर्वोदयी लक्षणदेव प्रसाद सिंह ने उनके चले जाने को अपनी व्यक्तिगत क्षति बताते हुए कहा कि सच्चिदा बाबू तब तक प्रासंगिक रहेंगे जब तक विषमता कायम रहेगी।
सभा में पारित प्रस्ताव गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉ अरुण कुमार सिंह ने रखा तथा यह घोषणा की कि सच्चिदा बाबू की पुण्यतिथि पर हर वर्ष स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया जाएगा।
श्रद्धांजलि सभा में गांधीवादी अशोक भारत, प्रो विजय कुमार जायसवाल, पूर्व प्राचार्या प्रो अनिता सिंह, प्रो विकास उपाध्याय, डॉ अनिल अरुण, अधिवक्ता मुकेश ठाकुर, एसयूसीआई के मोहम्मद इदरीश, डॉ श्याम कल्याण पासवान, अमरनाथ सिंह, प्रभात कुमार ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।

श्रद्धांजलि सभा का आरंभ डॉ अरुण कुमार सिंह द्वारा वैष्णव जन तो तेने कहिए भजन के गायन से हुआ।
सभा का संचालन गांधी शांति प्रतिष्ठान के सचिव अरविंद वरुण ने किया और धन्यवाद ज्ञापन समाजवादी जन परिषद के जगत नारायण राय ने किया।

अंत में सच्चिदा बाबू की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखा गया।


Discover more from समता मार्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Comment