अर्थशास्त्र के यशस्वी आचार्य प्रोफेसर सतीश जैन

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Professor Satish Jain

प्रोफेसर सतीश जैन के कैंसर के कारण आगरा में देहांत का समाचार आज सुबह भुवनेश्वर में मिला और शाम को एक आन-लाइन श्रद्धांजलि सभा की गई। हम दोनों एक ही पीढ़ी के हम उम्र थे। एक ही विश्वविद्यालय के एक ही संकाय में अध्यापन करते थे। वह अध्यापक संघ के प्रति उदासीनता रखते थे और मैं सक्रिय रहा। लेकिन दोनों एक ही विचार धारा के प्रति आकर्षित थे। जे. एन. यू. से अवकाश के बाद गुड़गांव के सेक्टर ४५ के अयाची अपार्टमेंट में हम आस-पास रहने लगे थे। वह अंतर्मुखी और हम किसी अजनबी को भी चाय पर बुलाने के लिए इच्छुक। लेकिन वह हमारे लिए वैचारिक सहयात्री से लेकर स्वास्थ्य सलाहकार तक बहुत कुछ थे। इसलिए उनके महाप्रस्थान से हमने एक तकलीफ और एक सूनापन महसूस किया।

मेरे लिए प्रो. सतीश परोपकार और शिष्टाचार की प्रतिमूर्ति थे। उनके आचरण में एक ख़ास तरह के वैराग्य की झलक मिलती थी—उदासीनता और आग्रह से अलग एक तीसरा भाव, अनासक्ति का। कीचड़ में कमल या बाज़ार में खड़े कबीर की तरह!

देश और दुनिया के श्रेष्ठ ज्ञान-केन्द्रों से अर्थशास्त्र की उच्च शिक्षा प्राप्त की। श्रेष्ठ अर्थशास्त्री उनकी तेजस्विता के कायल थे। उन्होंने भारत के उच्च स्तरीय विश्वविद्यालय में अध्यापन करते हुए विद्यार्थियों की एक आकर्षक क़तार बनाई। लेकिन अपनत्व आधारित कुछ करने की प्रवृत्ति नहीं दिखाई।

उन्होंने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश नहीं किया। यश स्पर्धा में शामिल नहीं हुए। कंचन और कामिनी से आकृष्ट नहीं हुए। संतति और संपत्ति की चिंता से दूर रहे। लेकिन एक बेहतर समाज की संभावना के प्रति आकर्षित थे। अनायास विवाद से दूर रहते हुए भी समाजवादी रुझान था। लोहिया को सबसे अधिक जानकार और मौलिक चिंतक मानते थे। संस्थाओं के दलदली संसार से दूर रहते हुए भी अपने एक तेजस्वी विद्यार्थी की अल्पायु में निधन के बाद उसकी स्मृति में बने प्रतिष्ठान से घनिष्ठ सम्बन्ध रखने में संकोच नहीं किया।

आज ऐसे लोगों की कमी है और अब सतीश जी को श्रद्धांजलि देने के बाद यह अभाव और ज़्यादा दुःखद लग रहा है।
अलविदा सतीश जी…।


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