आधुनिक युग में सनातन धर्म के सबसे बड़े व्याख्याता महामना मालवीय थे।हिन्दुत्व के नाम पर बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं !परन्तु हिन्दुत्व के मर्म को जानने वाला महामना मदनमोहन से बड़ा था कौन ? उनका साहित्य हिन्दुत्व की यथार्थ व्याख्या है !
मदनमोहन मालवीय को समझे जाने बिना हिन्दुत्व की व्याख्या कैसे हो सकती है? सनातन से विच्छिन्न करके हिंदुत्व की व्याख्या नहीं हो सकती. और सनातन को किसी चौखटे में जड़ा नहीं जा सकता.
यों तो काशी-विश्वविद्यालय महामना की कीर्ति का साकार रूप है किन्तु महामना-मालवीय की भूमिका इससे कहीं अधिक व्यापक है ! देश के अग्रणी नेता थे , देश की समस्याओं को गहराई से समझते थे ! उन्होंने जान लिया था कि लोकजागरण के लिए धर्म की मीमांसा करना आवश्यक है ! उन्होंने केवल सनातन-धर्म की मीमांसा ही नहीं की , सनातन-धर्म-सभा बनायी थी और उस मंच से उन्होंने स्पष्ट किया कि छूआछूत और जाति संबंधी भेदभाव धर्म नहीं , अधर्म है ! इतना ही नहीं , उन्होंने दलितों को मन्त्रदीक्षा का अधिकार दिया ! हजारों हजारों लोगों को अपने साथ एकत्र किया और लोकजीवन में एक नया तेज प्रकाशित किया ! १९२८ का कलकत्ता कांग्रेस-अधिवेशन महामना के इस अभिनव प्रयास के कारण भी ऐतिहासिक बन गया ! उन्होंने लगातार भाषण दिये कि >> यहाँ के रहने वाले हिन्दू-मुसलमान अलग अलग नहीं हैं , एक ही हैं ! यदि उनके मन में स्वराज का भाव जग जाय तो स्वराज मिलने में देर नहीं लगेगी!
लेकिन फिर क्या हुआ ? काशी के कुछ कट्टर धार्मिक नेताओं ने अखिल भारतीय सनातन-धर्म-सभा बनायी और व्यवस्था दी कि मदनमोहन मालवीय और उनकी सनातन-धर्म-सभा अधार्मिक तथा अशास्त्रीय है ! इतना ही नहीं उन लोगों ने मालवीयजी को देशद्रोही, नास्तिक तथा स्वयंभू नेता भी घोषित कर दिया !
[देखें सरस्वती : भाग ३० संख्या २]
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