— Prof. Raj Kumar Jain —
सेठों, साहूकारों, गद्दीनशीन नेताओं, सियासतदानों तथा अपने घर के बुज़ुर्गों और गुरुओं के नाम पर या उनकी स्मृति में जन्मदिन अथवा व्याख्यान आयोजित करने का संकल्प, उनकी मृत्यु के तत्काल बाद भावनाओं में डूबे उनके अनुयायियों, भक्तों तथा उनसे लाभान्वित लोगों में प्रायः देखा गया है। कुछ वर्षों तक ऐसे आयोजनों का सिलसिला चलता रहता है, परंतु थोड़ी-सी अवधि के बाद यह जज़्बा, जोश और भक्ति का असर कम होने लगता है और इस तरह के आयोजन धीरे-धीरे गायब हो जाते हैं।
परंतु इससे बिल्कुल अलग एक ऐसा दीवाना भी था, जो पिछले 30 वर्षों से पूरी शिद्दत और भव्यता के साथ निरंतर अपने राजनीतिक आदर्श मधु लिमये की स्मृति में 1 मई को उनके जन्मदिवस के अवसर पर पटना में कार्यक्रम आयोजित करता आ रहा था। उस दीवाने का नाम था—राजनीति प्रसाद।
पटना हाई कोर्ट के वकील और भूतपूर्व राज्यसभा सांसद साथी राजनीति प्रसाद अस्वस्थ होने के बावजूद महीनों पहले से ही इस आयोजन की तैयारी में जुट जाते थे। उनके द्वारा आयोजित इन यादगार सभाओं में पटना और बिहार के बुद्धिजीवियों, वैचारिक रूप से प्रतिबद्ध लोगों, प्रोफेसरों, अधिवक्ताओं, कलाकारों और राजनेताओं का जमघट लगता रहा है।
मधु लिमये के साथ राजनीति प्रसाद का रिश्ता क्या था?
मधु जी बिहार में पहले मुंगेर और फिर बाँका से लोकसभा चुनाव लड़ने गए थे। नौजवान राजनीति प्रसाद ने उनका भाषण सुना। फिर रुचि लेकर उस समय की संसदीय कार्यवाही में मधु जी के धमाकेदार हस्तक्षेपों और उच्चस्तरीय बहसों को अख़बारों और रेडियो पर ध्यानपूर्वक सुनने लगा। उनकी विद्वत्ता के साथ-साथ सादगी और ईमानदारी के चर्चे सुनकर मधु जी के प्रति उसकी दीवानगी बढ़ती गई।
इसी क्रम में मधु जी से उसका व्यक्तिगत संपर्क भी हो गया। मधु जी स्वभाव से बहुत जल्दी किसी से घनिष्ठ संबंध नहीं बनाते थे, लेकिन राजनीति प्रसाद दीवाने की तरह उनका पीछा करने लगा। जब भी मधु जी बिहार के दौरे पर आते, राजनीति दिन हो या रात, बरसात हो या तूफ़ान—अपना झोला, जिसमें पहनने के दो जोड़े कपड़े होते, लेकर स्टेशन, हवाई अड्डे या किसी भी उपलब्ध साधन से उनकी अगवानी के लिए पहुँच जाता। जब तक मधु जी बिहार की धरती पर रहते, वह साये की तरह उनके साथ चुनावी दौरों, जनसभाओं और शिक्षण शिविरों में धूप-धूल खाते हुए घूमता रहता।
राजनीति प्रसाद की सादगी, ईमानदारी और अपने लिए कभी कुछ न माँगने की प्रवृत्ति उल्लेखनीय थी—जबकि उन दिनों बिहार विधानसभा और लोकसभा के लिए सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवारों के चयन में मधु जी की निर्णायक भूमिका होती थी।
दिल्ली आने पर राजनीति प्रसाद को मधु जी की सख़्त हिदायत होती थी कि वह सीधे उनके सरकारी आवास पर ही ठहरे। मधु जी उस समय सांसद नहीं थे और लाडली मोहन निगम को राज्यसभा सदस्य होने के नाते वेस्टर्न कोर्ट में आवंटित दो कमरों में से एक में रहते थे। राजनीति प्रसाद यह सोचकर कि मधु जी स्वयं एक कमरे में रहते हैं, बिना सामान लिए उनसे मिलने पहुँच गया। मधु जी ने देखा कि उसके पास कोई सामान नहीं है और पूछा—“तुम्हारा सामान कहाँ है?”
राजनीति ने जवाब दिया—“अभी तो रेलवे के मालगोदाम में जमा करवा दिया है। किसी दोस्त का पता कर रहा हूँ, वहीं रुक जाऊँगा।”
इस पर मधु जी भड़क गए—
“नालायक! किससे पूछकर सामान वहाँ जमा करवा आए हो? यह कमरा क्या कमरा नहीं है? मैं भी तो इसी में रहता हूँ। फौरन जाओ और सामान लेकर आओ।”
भारतीय संसद को अपनी उँगली पर नचाने वाला, चार बार का सांसद—जिसने न जाने कितने लोगों को विधायक, मंत्री, सांसद और राज्यपाल जैसे बड़े पदों तक पहुँचाया—वह स्वयं एक कमरे के मकान में रहता था। उसी कमरे के एक कोने में राजनीति प्रसाद ने फर्श पर अपनी दरी बिछाई। वहाँ न एयर कंडीशनर था, न कूलर, न फ्रिज, न टेलीविजन—बस मटके का पानी और संगीत सुनने के लिए एक पुराना बाजा।
मधु जी के निधन को अब लगभग 30 वर्ष हो चुके हैं। राजनीति प्रसाद ने संकल्प लिया कि वह हर वर्ष मधु जी की स्मृति में एक यादगार सभा आयोजित करेगा। और पिछले लगभग 30 वर्षों से यह सिलसिला निरंतर चलता आ रहा है।
राजनीति प्रसाद की मधु जी के प्रति इस समर्पित आस्था से बिहार की राजनीतिक दुनिया भली-भाँति परिचित है। लालू प्रसाद यादव भी इन सभाओं में शिरकत कर चुके हैं। जब उन्होंने देखा कि एक ऐसे व्यक्ति के लिए, जिनको याद करने से अब कोई दुनियावी लाभ नहीं होने वाला, राजनीति प्रसाद इतना समर्पित है, तो उन्होंने राजनीति को बुलाकर कहा—
“तुम्हें बिहार से राज्यसभा का पर्चा भरना चाहिए।”
इस प्रकार राजनीति प्रसाद राज्यसभा के सांसद बने। यूँ तो लालू प्रसाद यादव ने अनेक लोगों को केंद्र में मंत्री, बिहार विधानसभा के सदस्य और मंत्री पदों पर पहुँचाया, पर जब राजनीति प्रसाद सांसद बनकर दिल्ली गए, तो सोशलिस्ट पृष्ठभूमि के अन्य दलों के कई नेताओं ने भी लालू प्रसाद यादव द्वारा एक निष्ठावान कार्यकर्ता को संसद भेजने की भूरी-भूरी प्रशंसा की।
सांसद बनने के बाद राजनीति प्रसाद ने सांसद निधि से प्राप्त एक बड़ी राशि पटना स्थित ‘ए.एन. सिन्हा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़’ को दान कर दी। उसी राशि से वहाँ मधु लिमये गेस्ट हाउस की स्थापना की गई, जहाँ आज शोधार्थी रहते हैं। इस सदाशयता के कारण संस्थान ने प्रत्येक वर्ष होने वाले मधु लिमये स्मृति व्याख्यान के लिए स्थायी स्थान उपलब्ध कराने का दायित्व भी लिया।
मेरे बरसों पुराने साथी राजनीति प्रसाद ऐसे व्यक्ति थे, जो बिना किसी दिखावे के अपने काम में लगे रहते थे। हमने साथ मिलकर मधु जी के बिहार दौरों और दिल्ली प्रवास के अनेक दिन गुज़ारे हैं।
आज सब कुछ सूना-सा लग रहा है।
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