गुएर्निका की चीख

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— रवींद्र गोयल —

दुनिया के दस सर्वाधिक मशहूर चित्रों में से एक, पाब्लो पिकासो का चित्र ‘गुएर्निका’ है। 1937 में युद्ध की विभीषिका का चित्रण करता यह चित्र अपनी युद्ध विरोधी प्रतीकात्मकता के लिए भी अपने बनने के समय से ही चर्चित है। मूल चित्र स्पेन के मेड्रिड के संग्रहालय में है। और इस चित्र की टेपेस्ट्री (tapestry – एक मोटे धागे/ऊन से बुने गए चित्र को कहते हैं , जो आमतौर पर दीवार पर लटकाया जाता है) अनुकृति फिलहाल संयुक्त राष्ट्र संघ में सुरक्षा परिषद कक्ष के बाहर प्रवेश द्वार लटकी हुई है। अपने युद्ध विरोधी सन्देश के लिए इस चित्र का उचित स्थान संयुक्त राष्ट्र संघ में सुरक्षा परिषद कक्ष का प्रवेशद्वार माना गया था और कुछ समय को छोड़ दिया जाए तो मूल चित्र की यह टेपेस्ट्री अनुकृति 1984 से वहीं पर है।

इस चित्र के बारे में हम दो स्तर पर बात कर सकते हैं। पहला, अपनी सुविधा के अनुसार संयुक्त राष्ट्र में प्रभावी दुनिया के हुक्मरानों, खासकर अमरीका, ने इस चित्र के प्रतीकात्मक महत्त्व का कैसे इस्तेमाल किया और जरूरत पड़ने पर क्यों निषेध भी किया है। और दूसरे यह चित्र क्या कहता है और किस राह से यह चित्र संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय तक पहुंचा।

इस चित्र के राजनीतिक इस्तेमाल का ताजा उदहारण 25 फरवरी को यूक्रेन के सवाल पर सुरक्षा परिषद की बैठक के समय देखा गया। उस दिन यूरोप और यूक्रेन के राजनयिक दुनिया को रूस विरोधी, युद्ध विरोधी सन्देश देने और यूक्रेन के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करने के उद्देश्य से यूक्रेन के झंडे के साथ इस चित्र के सामने खड़े हुए थे। लेकिन ऐसा नहीं है कि सुरक्षा परिषद हमेशा युद्ध विरोधी सन्देश ही देती है। साम्राज्यवादी देश अपने युद्ध के मंसूबों पर भी संयुक्त राष्ट्र की मोहर लगवाना पसंद करते हैं। उस समय यह चित्र उनके लिए समस्या का सबब भी बन जाता है।

पाब्लो पिकासो (25 अक्टूबर 1881 – 8 अप्रैल 1973)

पिकासो का यह चित्र अब अनिवार्य रूप से इराक में अमरीका के नेतृत्व वाले युद्ध से भी जुड़ा हुआ है। 5 फरवरी 2003 को संयुक्त राष्ट्र में इस चित्र को ढकने के उद्देश्य से एक बड़ा नीला पर्दा रखा गया था, ताकि यह चित्र अमरीकी नुमाइंदे कॉलिन पॉवेल और जॉन नेग्रोपोंटे द्वारा उस समय की गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पृष्ठभूमि में दिखाई न दे। ये प्रेस कॉन्फ्रेंस इराक युद्ध की अनिवार्यता सम्बन्धी सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद हुई थी। अगले दिन, संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने दावा किया कि टेलीविजन समाचार कर्मचारियों के अनुरोध पर पर्दा वहां रखा गया था। हालांकि कुछ राजनयिकों ने पत्रकारों के साथ बातचीत में बताया कि बुश प्रशासन ने संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों पर टेपेस्ट्री को ढकने के लिए दबाव डाला था। विशेषज्ञों का कहना है कि गुएर्निका के चित्र के नीचे दुनिया को यह बताने के लिए कि अमरीका इराक में युद्ध के लिए क्यों जा रहा था बहुत ही हास्यास्पद लगता इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि वो उस समय “एक असुविधाजनक कृति” हो गयी थी और उसे ढका गया।

अगर गुएर्निका की बात करें तो यह चित्र 1937 में पिकासो ने लगभग पांच हजार की आबादी वाले स्पेन के गुएर्निका शहर पर हवाई बमबारी की भयावहता को दिखाने के लिए इस चित्र को बनाया था। इस चित्र में काले और धूसर (grey) रंग की भिन्न भिन्न रंगतों के द्वारा गुएर्निका पर बमबारी की भयावहता को दर्शाया गया है। बमबारी ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली और शहर की अधिकांश ऐतिहासिक वास्तुकला को नष्ट कर दिया। इसी तबाही को यह चित्र मनुष्यों और जानवरों के चीखने-चिल्लाने की छवियों के माध्यम से चित्रित करती है। आग की लपटों में घिरा हुआ चिल्लाता आदमी, घबराया हुआ घोड़ा, और अपने बच्चे के शव को ले जा रही बिलखती हुई एक महिला, सब, उस तबाही का चित्र देखनेवालों से, सामना कराते हैं। चित्र में बायीं ओर एक बैल असमान आँखों से आपकी ओर देखता है। नीचे एक योद्धा मृत पड़ा हुआ है, वो फिर भी एक टूटी हुई तलवार पकड़े हुए है। इस चौतरफा पागलपन के बीच भी, एक औरत रोशनी के लिए दीया लिये हुए है ताकि हम सब युद्ध की तबाही को साक्षात देखें और उसकी गवाही दें। और भविष्य की आशा के संकेत स्वरूप टूटी हुई छवियों के नीचे मुश्किल से ध्यान देने पर, एक लिली का फूल भी दिखाई देता है।

आज गुएर्निका युद्ध की पीड़ा और तबाही के खिलाफ मानवता को चेतावनी देनेवाला एक सार्वभौमिक और शक्तिशाली प्रतीक बन गया है। कला आलोचक अलेजांद्रो एस्कालोना के शब्दों में कहें तो “गुएर्निका का चित्रकला में वही महत्त्व है जो बीथोवेन की नौवीं सिम्फनी का संगीत में है। वह एक ऐसा सांस्कृतिक प्रतीक है जो मानवजाति से न केवल युद्ध के खिलाफ बल्कि आशा और शांति के बारे में भी बात करता है।”

इस पेंटिंग को अमरीकी उपराष्ट्रपति और न्यू यॉर्क गवर्नर नेल्सन रोकफेलर खरीदना चाहते थे लेकिन पिकासो ने उसे बेचने से मना कर दिया। तब फ्रांस के एक वस्त्र कालाकर से इसे 1955 में बुनवाया गया। बुनी गयी टेपेस्ट्री मूल चित्र की तरह एकरंगी नहीं बल्कि इसमें भूरे (brown) रंग की कई रंगतों का इस्तेमाल किया गया है। 1984 में रोकफेलर परिवार ने इसे संयुक्त राष्ट्र संघ को उधार दिया। बीच बीच में थोड़े समय के लिए बाहर आने जाने के बावजूद तब से यह टेपेस्ट्री मुख्यतः वहीं रही है। लेकिन कितने दिन वह वहां रहेगी कहना मुश्किल है। रोकफेलर परिवार ने बयान दिया है कि वो इस टेपेस्ट्री को भी अपने परिवार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय ट्रस्ट को भविष्य में दान दे देंगे।

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