जनजाति आयोग निठल्लेपन का शिकार?

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22 मार्च। संविधान द्वारा प्राप्त जनजातियों के अधिकारों की रक्षा करना और विभिन्न सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर इनकी भागीदारी सुनिश्चित करना, साथ ही उनकी हर समस्याओं का समाधान करना राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की जिम्मेदारी है। लेकिन राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) पिछले चार वर्षों से निष्क्रिय पड़ा है। संसद में उसने एक भी रिपोर्ट पेश नहीं की है। अपनी हालिया एक रिपोर्ट में एक संसदीय समिति ने यह बात कही है। ‘वायर’ के अनुसार, आंध्र प्रदेश में इंदिरा सागर पोलावरम परियोजना के आदिवासी आबादी पर प्रभाव संबंधी आयोग द्वारा किया अध्ययन और राउरकेला स्टील प्लांट की वजह से विस्थापित हुए आदिवासियों के पुनर्वास पर एक विशेष रिपोर्ट आयोग की ओर से लंबित रिपोर्ट में शामिल हैं।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता पर गठित संसदीय समिति ने पाया कि इन रिपोर्ट्स को आयोग द्वारा अंतिम रूप दे दिया गया है लेकिन केंद्रीय जनजाति मंत्रालय के पास रुकी हुई हैं। समिति ने कहा है, समिति यह नोट करने के लिए विवश है कि 2018 से आयोग की रिपोर्ट्स अभी भी जनजातीय मंत्रालय में प्रक्रियाधीन हैं और आज तक संसद में प्रस्तुत नहीं की गयी हैं। समिति चाहती है कि मामले में तेजी लायी जाए और बिना किसी देरी के रिपोर्ट प्रस्तुत की जाए।

समिति ने आयोग के पास स्टाफ की कमी और बजटीय कमी के साथ काम करने के चलते निष्क्रिय होने संबंधी तर्कों पर निराशा व्यक्त की। साथ ही संसदीय समिति ने आगे कहा कि वह हतप्रभ है कि आयोग में कई पद अब भी रिक्त हैं। वहीं, मंत्रालय ने दावा किया कि आयोग में भर्ती आवेदकों की कमी के कारण रोक दी गयी थी क्योंकि पात्रता की सीमा बहुत अधिक निर्धारित की गयी थी। अब नियमों में सुधार किया जा रहा है ताकि अधिक उम्मीदवार आवेदन कर सकें।

आयोग की वेबसाइट के मुताबिक, वित्तवर्ष 2021-22 में आयोग की केवल चार बैठकें हुईं हैं। शिकायतों के समाधान और आयोग को प्राप्त होनेवाले मामलों के लंबित होने की दर भी 50 प्रतिशत के करीब है। सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट को पिछले सप्ताह लोकसभा में पेश किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह समिति यह देखकर लाचार है कि एनसीएसटी की रिपोर्ट वर्ष 2018 से जनजातीय मामलों के मंत्रालय में प्रक्रियाधीन है और अब तक संसद में पेश नहीं की गयी है।

बता दें कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग केवल शिकायत का एक मंच नहीं है बल्कि जनजातीय समाज तक जानकारी पहुँचाने का भी एक माध्यम है। आयोग का उद्देश्य जनजातीय समाज के साथ संवाद को बढ़ाना, उनके लिए बननेवाली योजनाओं को उन तक सही माध्यम से पहुँचाना और उनको आनेवाली समस्याओं के समाधान के लिए एक सार्थक मंच प्रदान करना भी है।

जनजाति समुदाय के कुछ प्रमुख मुद्दे हैं जैसे, भूमि बेदखलीकरण, पुनर्वास, शिक्षा, स्वास्थ्य, वित्तीय समावेशन, वनाधिकार इत्यादि मुद्दों का समाधान करना आयोग का काम है। जनजातियों की संविधान द्वारा प्राप्त अधिकारों की रक्षा करना और विभिन्न सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर इनकी भागीदारी सुनिश्चित करना आयोग का महत्वपूर्ण काम है। आयोग के पास किसी सिविल कोर्ट के समान ही शक्तियाँ होती हैं, वह आदिवासियों के अधिकारों और सुरक्षा संबंधित मामलों पर जांच करता है। लेकिन हैरत वाली बात यह है कि यह आयोग ही निष्क्रिय पड़ा हुआ है तो आदिवासियों की समस्याओं का समाधान कैसे हो सकता है।

(MN News से साभार)

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