हाथ से मैला ढोने के कारण किसी की मृत्यु होने की रिपोर्ट नहीं : सरकार

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8 अप्रैल। सरकार ने बुधवार को संसद में कहा कि हाथ से मैला ढोने (मैनुअल स्केवेंजिंग) के कारण किसी व्यक्ति की मृत्यु होने की कोई रिपोर्ट नहीं है। जबकि पिछले तीन साल के दौरान सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई करते समय हुई दुर्घटनाओं के कारण 161 लोगों की मौत हो गयी।

सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार ने राज्यसभा में पूरक सवालों के जवाब में कहा कि प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार, वर्तमान में कोई भी व्यक्ति हाथ से मैला ढोने का कार्य नहीं कर रहा है। राज्यसभा में भाजपा के सांसद महेश पोद्दार ने जानना चाहा था कि पिछले तीन वर्षों में कितने मैला ढोनेवालों की मौत हुई है? मंत्री ने इसके लिखित जवाब में बताया, ‘हाथ से मैला ढोने से हुईं मौतों की कोई सूचना नहीं है। हालांकि, पिछले तीन वर्षों के दौरान सीवर और सेप्टिक टैंक की खतरनाक सफाई के दौरान दुर्घटनाओं के कारण 161 लोगों की मौत हो गयी है।

उन्होंने कहा कि 1993 से लेकर 31 मार्च 2022 तक सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 791 लोगों की मौत हो गयी। उन्होंने बताया कि इस क्रम में संबंधित कानून के तहत 536 प्राथमिकी दर्ज की गयी और 703 पीड़ितों के आश्रितों को यथोचित मुआवजा दिया गया है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा 136 आश्रितों को आंशिक भुगतान किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि, ऐसे लोगों की पहचान के लिए 2013 और 2018 में दो सर्वेक्षण कराए गए थे और ऐसे 58,098 लोगों की पहचान की गयी थी।

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, कुमार ने कहा कि मैनुअल स्कैवेंजर्स पुनर्वास योजना (एसआरएमएस) के तहत सभी चिह्नित और पात्र 58,098 हाथ से मैला ढोनेवालों के बैंक खाते में सीधे 40,000 रुपये की एकमुश्त नकद सहायता राशि जमा की गयी थी। मैला ढोनेवालों की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश से सामने आयी है।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मंत्रालय ने 2020 में एक मोबाइल ऐप स्वच्छता अभियान भी लॉन्च किया था, ताकि उनसे जुड़े गंदे शौचालयों और हाथ से मैला ढोनेवालों, यदि कोई हो, पर डेटा प्राप्त किया जा सके। उन्होंने कहा, हालांकि अभी तक एक भी हाथ से मैला ढोनेवाले ओर गंदे शौचालय की पुष्टि नहीं हुई है।

उन्होंने हाथ से मैला ढोनेवाले लोगों के पुनर्वास के लिए सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों का जिक्र करते हुए कहा कि अब मशीनों से सफाई पर जोर दिया जा रहा है और इस संबंध में कर्मचारियों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। सफाई कर्मचारियों के लिए काम करनेवाले संगठन ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के संस्थापक बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि सरकार का हाथ से मैला उठानेवालों को नकारना कोई नयी बात नहीं है, सरकार इस तरह के झूठे बयान नहीं दे सकती।

बेजवाड़ा विल्सन बताते हैं कि यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार और जम्मू-कश्मीर में सूखे शौचालय की सफाई की प्रथा बहुत प्रचलित है। हमारे पास इसके सबूत हैं और जब हम यह सबूत देते हैं तो सरकार पुलिस के साथ-साथ उन सफाईकर्मियों को भी आतंकित करती है। मेरे पास इस बात का रिकॉर्ड है कि अधिकारी उनसे कैसे बात कर रहे हैं, इसलिए हो सकता है कि ऐसी परिस्थितियों में लोग आकर खुलकर बयान न दें।

उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाथ से मैला ढोने और सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई में लगे लोगों के लिए एक पैकेज लाने का भी आग्रह किया।

गौरतलब है कि इससे पहले पिछले साल दिसंबर में केंद्र सरकार ने संसद में जानकारी दी थी कि देश में 58,098 हाथ से मैला ढोनेवाले हैं और उनमें से 42,594 अनुसूचित जाति के हैं। सरकार ने कहा था कि देश में इन पहचानशुदा 43,797 लोगों में से 42,594 अनुसूचित जातियों से हैं, जबकि 421 अनुसूचित जनजाति से हैं। कुल 431 लोग अन्य पिछड़े वर्ग से हैं, जबकि 351 अन्य (Others) श्रेणी से हैं। इससे पहले फरवरी 2021 में केंद्र सरकार ने बताया था कि देश में हाथ से मैला ढोनेवाले (मैनुअल स्कैवेंजर) 66,692 लोगों की पहचान कर ली गयी है। इनमें से 37,379 लोग उत्तर प्रदेश के हैं।

मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था। इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया। हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है। हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है।


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