‘लोक संसद’ : संवाद की संस्कृति के संवर्धन की पहल

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9 अप्रैल। संवाद की संस्कृति को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से नयी दिल्ली में ‘लोक संसद’ के प्रथम संस्करण का आयोजन हुआ। एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में भारी संख्या में श्रोताओं ने एकत्रित होकर देश के कई जाने-माने लोगों को सुना। लोक संसद को सद्भाव, समाज और राज संसद नामक तीन सत्रों में बांटा गया।

वक्ताओं ने स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ पर देश के हालात की समीक्षा की। बतौर मुख्य अतिथि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान ने कार्यक्रम में शिरकत की और स्वामी चिदानंद सरस्वती ने लोक संसद की अध्यक्षता की। उदघाटन सत्र में सामाजिक चिंतक के एन गोविंदाचार्य, इमाम उमेर अहमद इलियासी, जलपुरुष राजेन्द्र सिंह, डॉ. मौलाना कल्बे रुशैद, बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे समेत कई गणमान्य लोग शामिल रहे।

लोक संसद में अपनी बात रखते हुए महामहिम राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ख़ान ने कहा कि देश की ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। वहीं सद्भाव संसद की अध्यक्षता कर रहे स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि देश में बढ़ रहे नफरत के माहौल को ठीक करने की जरूरत है। इस देश में हरियाली तभी आएगी जब हरी को माननेवाले और अली को माननेवाले दोनों में प्रेम हो। वहीं डॉ इमाम उमर अहमद इलियासी ने कहा कि मदरसे और गुरुकुल से निकले बच्चे एक दूसरे को समझें तो समाज में ये नफरत का माहौल नहीं रहेगा।

लोक संसद में बोलते हुए के ‘युवा हल्ला बोल’ के संस्थापक अनुपम ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन ने देश के विचार को गढ़ा, विकास की अवधारणा दी और हमें एक ऐसा संविधान दिया जिसने राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समानता का वादा किया। राजनीतिक समानता तो वोट के अधिकार के साथ पहले दिन से मिल गयी लेकिन आर्थिक और सामाजिक पैमानों पर हम आज भी बुरी अवस्था में हैं। अनुपम ने कहा कि इस असमानता को दूर करने में युवाओं को शिक्षा, रोजगार कौशल और मूल्य देना अति आवश्यक है। वरना हमारा डेमोग्राफिक डिविडेंड कहीं डेमोग्राफिक डिसास्टर न बन जाए।

आगे ‘समाज संसद’ में बोलते हुए डॉ फैयाज खुदसर ने जैव विविधता को बचाए रखने की जरूरत पर बल दिया। दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सीमा सिंह ने शिक्षा व्यवस्था की खामियों को बताते हुए शिक्षा स्तर को बेहतर करने के सुझाव दिए।

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने लोक संसद में शिरकत करते हुए कहा कि “हमारे देश में शिक्षण संस्थानों में शिक्षा के उच्चतम स्तर की बात तो होती है लेकिन स्कूल कॉलेजों का न्यूनतम स्तर क्या होना चाहिए ये बात कभी नहीं होती। हर शिक्षा संस्थान को सुनिश्चित करना चहिए कि उनके छात्रों का स्तर इससे नीचे नहीं जाएगा।”

वरिष्ठ गांधीवादी और एकता परिषद के नेता पीवी राजगोपाल ने ‘राज संसद’ में कहा कि अब वक्त आ गया है कि हमें अपने विश्वविद्यालयों में अहिंसा को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए और विकास को पुनः परिभाषित किया जाय। उन्होंने कहा कि हर चीज को अहिंसा के लेंस से देखने की आवश्यकता है और अहिंसा के लिए तो मंत्रालय बनना चाहिए।

समाजवादी चिंतक रघु ठाकुर ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जनता के खर्च पर चल रही देश की संसद असल मुद्दों का समाधान नहीं कर पा रही। उन्होंने कहा कि इस कारण से भी लोक संसद की महत्ता बढ़ जाती है।

लोक संसद के कार्यकारी संयोजक वरिष्ठ पत्रकार रविशंकर तिवारी ने कहा कि “यह लोक संसद संवाद की हमारी परंपरा को पुनर्जीवित करने की मुहिम का आगाज है। चाहे समस्या सामाजिक हो या राजनीतिक, हर समस्या का समाधान सकारात्मक संवाद से निकाला जा सकता है।”


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