26 अप्रैल। देश आजाद होने के बाद भी रहन-सहन और पहनावे के कारण अपने बच्चों के साथ हो रही अस्पृश्यता से तंग आकर पुष्कर के कालबेलिया समाज के परिवारों ने रेतीले धोरों में खुद अपना स्कूल खोल लिया। एक कमरे में चल रहे इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए अलग से शिक्षक की व्यवस्था भी अपने स्तर पर कर ली। बच्चों को बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाएँ भले ही नहीं मिल पा रही हैं, इसके बावजूद बिना किसी हीन भावना के बच्चे पूरी लगन से शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
मूलतः घुमक्कड़ कहे जानेवाले कालबेलिया समाज के लोग नृत्य कला के लिए विख्यात हैं। लेकिन समय के साथ-साथ इस समाज के लोग भी विकास की मुख्य धारा में शामिल होना चाहते हैं। खानाबदोश जीवन छोड़कर ये भी स्थायी रूप से एक जगह बसना चाहते हैं। समाज के लोगों ने बताया, कि वे अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देकर अच्छा इंसान बनाना चाहते हैं, ताकि उनके बच्चे भी उच्च जीवन स्तर जी सकें।
कालबेलिया परिवार के बच्चों को सरकारी व निजी विद्यालयों में दाखिला तो मिल जाता है। लेकिन बाद में वे अपने सहपाठियों के बीच असहज महसूस करते हैं। असहजता का एकमात्र कारण समय के अनुरूप इनका रहन-सहन व पहनावा न होने के साथ ही पारिवारिक स्थिति कमजोर होना माना जाता है। साथ ही इन परिवार के बच्चों को स्कूल में छूआछूत का शिकार भी होना पड़ता है। इससे उनमें हीन भावना पनपने लगती है। कालबेलिया समाज के बच्चे भी अन्य बच्चों के समान उच्च शिक्षा प्राप्त कर सभी के बराबर खड़े हो सकें, इसलिए इन बच्चों को पढ़ाई के साथ ही व्यक्तित्व निर्माण व कला संस्कृति का पाठ भी पढ़ाया जाता है।
(rajasthanpatrika.com से साभार)