बाढ़, बाल मजदूरी और मानव तस्करी बिहार की विकट समस्या

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2 मई। बिहार भारत का सबसे अधिक बाढ़ग्रस्त राज्य है। एक ऐसा राज्य, जहाँ हजारों लोग हर साल बाढ़ के कारण विस्थापित होते हैं। इसी राज्य में सुपौल जिले के पकड़ी गाँव में हिमांशु एक छोटे से ठेले पर सब्जियाँ बेचता है। हिमांशु भी इन्हीं हजारों विस्थापितों में से एक हैं, फिर भी वह खुद को भाग्यशाली मानता है। 18 वर्षीय हिमांशु ने कहा, जुलाई 2018 में बाढ़ आने के बाद मैं कोसी नदी के किनारे सरकारी राहत कैंप में अपने परिवार के साथ रह रहा था। वहाँ से कुछ एजेंट मुझे लुधियाना में कपड़े के कारखाने पर काम करने के लिए ले गए।

हिमांशु ने बताया, वहाँ मुझसे दिन में कई घंटे काम करवाया जाता था, और बदले में सिर्फ खाना और रहने की जगह दी जाती थी। मालूम हो कि बिहार भारत का सबसे अधिक बाढ़ग्रस्त राज्य है, जिसके 38 जिलों में से 28 जिले बाढ़ से प्रभावित होते रहते हैं। लगातार आती बाढ़ और उसके साथ घोर गरीबी के चलते गाँव वाले, खासकर छोटे बच्चे, किशोर और उनके माता-पिता बाल मजदूरी के व्यवसाय में लगे लोगों के लिए एक आसान लक्ष्य बन जाते हैं।

राज्य के बाल कल्याण संगठन, समाज कल्याण विभाग और बाल संरक्षण इकाई के आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, जुलाई 2020 से सितंबर 2020 के बीच बिहार के लगभग 250 बच्चों को इन सब से बचाया गया है। राज्य के श्रम संसाधन विभाग के अनुसार, 2020-21 में 466 बाल मजदूरों को बचाया गया था। वहीं पिछले साल 2019-20 में यह संख्या 750 थी। 2018-19 में कुल 1,045 बच्चों को बचाया गया था, जिनमें से 750 अकेले सुपौल जिले के थे। इतना ही नहीं, बिहार में लापता बच्चों की संख्या भी काफी ज्यादा है।

देश में लापता बच्चों की संख्या में यह तीसरा स्थान रखता है। इस मामले में हमेशा वृद्धि दर्ज की गई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा दर्ज किया गया है, कि 2016 में लापता बच्चों की संख्या 4817 थी। यही संख्या 2017 में बढ़कर 5547 हो गई और 2018 में यह 6950 तक पहुँच गई। बिहार में 2017 में मानव तस्करी से जुड़े 121 मामले दर्ज हैं। यह आँकड़े 2018 में बढ़कर 179 हो गए। इसकी जानकारी राज्य मंत्री ने दी।

2019 के आँकड़े एनसीआरबी की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं हैं। वहीं 2020 में कोविड-19 महामारी के चलते लोगों के इधर उधर जाने पर प्रतिबंधित था। बावजूद इसके जुलाई 2020 और सितंबर 2020 के बीच बिहार के करीब 250 बच्चों को दूसरी जगहों से छुड़ाया गया। इन मामलों के जानकार कहते हैं, कि यह आँकड़े तो कुछ भी नहीं इसके पीछे पूरा एक गोरखधंधा है।

स्थानीय कार्यकर्ताओं का कहना है, कि बिहार के कोसी क्षेत्र में सिर्फ बाल श्रम ही नहीं, मानव अंगों का व्यापार और यौन तस्करी भी बड़े पैमाने पर हो रही है। भारत और नेपाल सीमा पर स्थित गाँव मुख्य रूप से इसके हॉटस्पॉट हैं। गाँव के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा इस क्षेत्र में मानव तस्करी का एक बड़ा तंत्र फैला हुआ है। सीमांचल, मिथिलांचल और कोसी की गरीब लड़कियों को बराबर निशाना बनाया जाता है। वह आगे बताते हैं, इन्हें नौकरी का झांसा दिया जाता है, फिर इन्हें यौन कार्यों के लिए खरीदा और बेचा जाता है। सीमावर्ती इलाकों में खासतौर से महिलाओं, युवा लड़कियों और शिशुओं की मानव तस्करी एक गंभीर समस्या के रूप में फैल रही है।

बार-बार आती बाढ़ के साथ बढ़ता बाल श्रम

नीति आयोग के अनुसार देश का सबसे गरीब राज्य होने के कारण बिहार में काफी गरीबी फैली हुई है। सुपौल जिले में मुसर्निया गाँव के 62 वर्षीय निवासी मनोज पासवान ने बताया, आधा साल तो लोग सरकारी राहत शिविर में ही बिताते हैं। आमतौर पर गाँव के पुरुष दूसरे राज्यों में काम करने के लिए जाते हैं। ऐसे में महिलाएँ और बच्चे पीछे छूट जाते हैं, इन्हें तस्करों से ज्यादा खतरा है। मानव तस्करी के इर्द-गिर्द कई आपराधिक गतिविधियाँ भी जुड़ी हुई है। इनमें यौन कार्य, बंधुआ मज़दूरी और लोगों को घरेलू नौकर बनाना शामिल है। केंद्रीय सरकार के एनसीआरबी के आँकड़ों के मुताबिक यह संख्या काफी परेशान करने वाले हैं।

(MN News से साभार)

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