30 मई। ‘हमें मारना बंद करो’, ये शब्द सोशल मीडिया और भारत में समान रूप से घूम रहे हैं। यह नारा हाथ से मैला ढोने के खिलाफ सफाई कर्मचारी आंदोलन (एसकेयू) के 75 दिनों के अभियान की गूंज है। दिल्ली के करोलबाग में शुरू किया गया ‘Stop Killing Us’ अभियान पूरे भारत में विरोध प्रदर्शन का आह्वान करता है, जहाँ वर्कर्स सीवर, सेप्टिक टैंक में होनेवाली मौतों के लिए मुआवजे की माँग करेंगे। अभियान 18 मई तक राष्ट्रीय राजधानी में केंद्रित रहा और फिर अलग-अलग शहरों में फैला।
हाल के दिनों में यह अभियान उत्तराखंड के देहरादून, राजस्थान के सीकर, हरियाणा के सधौरा तक पहुँचा। इन सभी जगहों पर, सफाई कर्मचारी इकट्ठा हुए और बड़े-बड़े बड़े अक्षरों में “Stop Killing Us” वाक्यांश बनाया। कई अन्य क्षेत्रों ने भी इस तरह के विरोध की सूचना दी। यह कॉल देने वाले एसकेए के संस्थापक बेजवाड़ा विल्सन ने अभियान की शुरुआत में ट्वीट किया था, कि कैसे चार राज्यों में 27 मार्च से 30 मार्च के बीच सीवर के अंदर 14 श्रमिकों की मौत हो गई। हालांकि उन्होंने इस संबंध में सभी सरकारों पर “आपराधिक चुप्पी” का आरोप लगाया। बाद में, टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि कैसे 2021 में स्वतंत्रता दिवस के बाद से ऐसी परिस्थितियों में 57 लोगों की मौत हो गई थी।
जबकि मुख्यधारा के मीडिया ने इस खबर को कवर किया है, लेकिन कवरेज उस स्तर तक नहीं पहुँच पाया है, जहाँ तक यह आंदोलन फैल गया है। उदाहरण के लिए, 13 मई को टाइम्स ऑफ इंडिया ने दिल्ली में एक स्थानीय विरोध की सूचना दी। 2018 में SKA ने देश में सैकड़ों लोगों की मैला ढोने से संबंधित मौतों के बावजूद सरकार की निष्क्रियता को रोकने के लिए जंतर मंतर पर इसी नाम का एक कार्यक्रम आयोजित किया था। सरकार की यह उदासीनता हाल की विधायी बैठकों के दौरान भी स्पष्ट हुई जब सामाजिक न्याय मंत्री रामदास अठावले ने दावा किया, कि पिछले पाँच वर्षों में मैला ढोने के कारण शून्य मौतें हुई हैं। बाद में उन्होंने सफाई देते हुए दुर्घटनाओं में 325 मौतों को स्वीकार किया।
(‘सबरंग इंडिया’ से साभार)
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