4 जून। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट और डाउन टु अर्थ पत्रिका द्वारा हाल ही में जारी एक रिपोर्ट कहा गया है, कि देश के 71 फीसदी लोग अपने लिए शुद्ध आहार का प्रबंध कर पाने में असमर्थ हैं।
इस रिपोर्ट के मुताबिक अधिकतर भारतीय भोजन का खर्च नहीं उठा सकते हैं, और इस कारण खराब भोजन का सेवन करके गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं और उचित इलाज के अभाव में उनकी मौत तक हो जाती है। इस रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है, कि औसत भारतीयों की थाली से पौष्टिक भोजन के रूप में मान्य फल, दूध तथा हरी सब्जियाँ गायब हैं, ऐसे में उनका स्वास्थ्य पोषक तत्वों की कमी के कारण प्रभावित हो रहा है।
रिपोर्ट में बताया गया है, कि खराब आहार की वजह से लोग गंभीर बीमारियों का शिकार हो सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, सर्वेक्षण में श्वसन संबंधी बीमारियों, मधुमेह, कैंसर, स्ट्रोक, कोरोना और हृदय रोग हो सकता है। सर्वे रिपोर्ट में आँकड़ों के साथ ही शुद्ध भोजन का खर्च नहीं उठा पाने के पीछे की वजह भी बताई गई है। अधिकांश भारतीय इस वजह से भी शुद्ध भोजन का खर्च नहीं उठा सकते, क्योंकि उनकी आय, हर दिन शुद्ध भोजन का खर्च नहीं वहन कर सकती है।
देश में लगातार महंगाई बढ़ती जा रही है। पिछले एक साल में उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में 327 की वृद्धि देखी गई है, जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 84 फीसदी की वृद्धि देखी गई है। वहीं डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा ने कहा, कि वास्तव में क्रिसिल डेटा के विश्लेषण से पता चलता है कि मार्च-अप्रैल 2022 में शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य कीमतों में उच्च दर से वृद्धि हुई है।
बता दें कि बीते साल आयी विश्व भूख सूचकांक की सूची में भारत 116 देशों में 101वें स्थान पर है। यानी इस मामले में भारत अपने पड़ोसी नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी पीछे है। रिपोर्ट में कहा गया था, कि भारत में भूख की स्थिति गंभीर है। वहीं मोदी सरकार में बढ़ती महंगाई ने इसमें और बढ़ोत्तरी कर दी है। जीवनावश्यक और खानपान से संबंधित जरूरी चीजों के दाम बढ़ने से आम आदमी शुद्ध भोजन का खर्च उठा पाने में असमर्थ है।
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