अग्निवीर या बलि के बकरे?

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Ram sharan
— रामशरण —

पको याद होगा जब भारत चीन सीमा पर तनाव चरम पर था सरकार-भक्त मीडिया में एक वीडियो खूब दिखाया गया था। इसमें युद्ध में जा रहे कुछ युवा सैनिक रो रहे थे। निश्चय ही ये सैनिक सीमा पर देशभक्ति के कारण नहीं जा रहे थे। जाना उनकी मजबूरी थी। कहा जाता है कि मात्र छह माह की ट्रेनिंग देकर इन्हें मोर्चे पर भेज दिया गया था। ऐसी चर्चा है कि यूक्रेन युद्ध में रूस ने भी शुरू में अपने अल्पशिक्षित सैनिकों को भेजा था जिनमें बहुतों की जान चली गयी।

भारत ने भी अग्निपथ योजना के तहत साढ़े सत्रह साल के बच्चों को, जो वयस्क भी नहीं होंगे, छह माह की ट्रेनिंग देकर सेना में शामिल करना तय किया है। यदि चीन या पाकिस्तान से युद्ध भड़कता है तो इन्हीं नौसिखिए को पहले लड़ने भेजा जाएगा। ज्यादा संकट आने पर ही रेगुलर सैनिकों का प्रयोग किया जाएगा।

क्या इनमें वर्षों प्रशिक्षित सैनिकों जैसी क्षमता और दृढ़ता होगी? क्या ये अग्निवीर कहे जानेवाले युवा बलि के बकरे नहीं होंगे?

सरकार की मजबूरी है कि मात्र चार साल के सेवाकाल के लिए भर्ती सैनिकों को साल-दो साल का प्रशिक्षण दे भी नहीं सकती। थार के रेगिस्तान से लेकर सियाचिन ग्लेशियर की ऊंचाई तक के विभिन्न रणक्षेत्रों में लड़ने का अभ्यास कराना क्या छह माह में संभव है? लेकिन सेना हमेशा मजबूत ताकत को रिजर्व रखती है और गंभीर स्थिति में ही उसका प्रयोग करती है। इसलिए युद्ध हुआ तो इन तथाकथित अग्निवीरों को ही बलि के बकरे बनने के लिए पहले सीमा पर भेजा जाएगा।

सेना में भर्ती के लिए इंतजार कर रहे युवा इस योजना से अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। याद रखिए, इन युवाओं में अधिकांश अत्यंत गरीब परिवारों से आते हैं, जो उन्हें पढ़ा-लिखा कर डाक्टर, इंजीनियर या आइएएस नहीं बना सकते। इसलिए शारीरिक फिटनेस के आधार पर सेना में भर्ती होना ही इनका एकमात्र सपना होता है। सेना में भर्ती होने से इन्हें सम्मान, सुविधा और भविष्य की सुरक्षा मिलती है।

लेकिन अग्निवीरों को वह सम्मान नहीं मिलेगा जो सैनिकों को मिलता है। आर्थिक लाभ भी सिर्फ चार वर्षों तक मिलेगा। 75 फीसद अग्निवीरों को छांट दिया जाएगा। इनमें से ज्यादातर को दुकानों, मकानों में दरबान की नौकरी मिलेगी, जो यूं ही मिल जाती है। सबसे बड़ी चिंता पेंशन नहीं मिलने की है, जिससे इनका भविष्य असुरक्षित हो जाएगा। इसीलिए ये लोग अचानक उत्तेजित हो गये हैं।

पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह, जो अभी केंद्रीय राज्यमंत्री हैं, इस उपद्रव का सीधा आरोप विपक्षी दलों पर लगा रहे हैं, जो सर्वथा अनुचित है। इस विद्रोह में शामिल युवा ज्यादातर उन क्षेत्रों से आते हैं, जहां भाजपा की मजबूत पकड़ रही है। इनमें से बहुतों ने चुनाव में भाजपा की भरपूर मदद की होगी। इसीलिए युवाओं को लगता है कि उनके साथ भाजपा ने विश्वासघात किया है। यही कारण है कि गुस्सा भाजपा नेताओं और कार्यालय पर उतारा जा रहा है। यह अलग बात है कि विपक्षी दल इन परिस्थितियों का फायदा उठाने से चूकनेवाले नहीं हैं।

दुखद बात यह है कि इस विद्रोह से रेलवे, बस आदि को भारी नुकसान हो रहा है। सरकार चाहे जिसकी हो, यह संपत्ति तो देश की है। इन सब कारणों से निर्दोष यात्रियों को भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस सब से जनमानस धीरे-धीरे युवाओं के खिलाफ होता चला जाएगा। और जन-सहयोग घटने से आन्दोलन धीमा होते होते खत्म हो जाएगा।

यदि युवाओं ने किसानों की तरह शांतिपूर्ण आन्दोलन का रास्ता अपनाया होता तो सफलता मिलने की संभावना ज्यादा थी। लेकिन यह आन्दोलन इसलिए हिंसक हो गया क्योंकि यह स्वतःस्फूर्त था। इसकी कोई केंद्रीय कमान नहीं थी, जो इसे नियंत्रित कर सके। इसकी तुलना 18 मार्च 1974 को पटना में हुए युवाओं के विद्रोह से की जा सकती है, जिसे बाद में जयप्रकाश नारायण ने सॅंभाल कर शांतिपूर्ण आन्दोलन से देश की दिशा बदल दी थी।

मोदी सरकार के लिए सबसे चिंता का विषय रेल का जलना नहीं है। उसे चिंता इस बात की होगी कि जिन युवाओं के भरोसे वह चुनाव जीतती आ रही है, वे उससे टूट न जाएं। लेकिन लोकसभा चुनाव आने में अभी दो साल का समय है। इस बीच में युवाओं का गुस्सा ठंडा करने के लिए मोदी सरकार बहुत कुछ कर सकती है। जैसे उसने दबाव में आकर उम्र सीमा दो साल बढ़ा दी। इससे उन युवाओं को राहत मिलेगी, जो कोरोना काल में भर्ती प्रक्रिया नहीं चलने के कारण उम्र सीमा पार कर गये थे। सबसे ज्यादा गुस्सा इन्हीं युवाओं में था, जो अब कम हो जाएगा। इसी प्रकार सरकार कुछ और कदम उठा सकती है। जैसे छंटनीग्रस्त 75 फीसद अग्निवीरों को भी बीएसएफ, पुलिस आदि में भरती करने की गारंटी देकर। लेकिन यह बात प्रमाणित हो गयी है कि यह योजना सही ढंग से सोच-विचार कर नहीं लायी गयी।

मुख्य सवाल यह है कि ऐसी योजना बनाई ही क्यों गयी? कई बुद्धिजीवी इस योजना की प्रशंसा कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे पैसा बहुत बचेगा। लेकिन यह बचाया गया पैसा कहाँ जानेवाला है? हथियार बनानेवाले देश लगातार इस बात के लिए दबाव बना रहे हैं कि सैनिकों की संख्या कम करके उनसे हथियार खरीदे जाएं। देश के पूंजीपतियों का भी दबाव है। उनका दावा है कि भावी युद्ध आधुनिक हथियारों के बल पर जीते जाएंगे। यह सही है कि आधुनिक हथियारों की भविष्य में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। पर युद्ध सक्षम सैनिकों के बिना जीतना कठिन है। हम देख रहे हैं कि दुनिया में अमेरिका से भी ज्यादा आधुनिक हथियार रखनेवाला देश रूस यूक्रेन में कितनी धीमी गति से आगे बढ़ पा रहा है। राष्ट्रभक्त यूक्रेनी नागरिक बड़ी संख्या में रूस के नौसिखुए सैनिकों को तबाह करने में सफल हुए।

इसलिए अग्निपथ योजना देश की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा है। यह अलग बात है कि सैनिकों से नेताओं को वह कमीशन नहीं मिलेगा जो हथियारों की खरीद में मिल सकता है।

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