प्रियदर्शन की दस ट्विटर ग़ज़लें

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पेंटिंग : कौशलेश पांडेय


1
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तुम्हें न गीता से मतलब न क़ुरान से
तुम्हारा वास्ता तो वोट की दुकान से
लफ़्ज़ तुम्हारे खोखले और ख़ाली हैं
और धर्म तुम्हारा कट गया ईमान से
सत्ता तो मिल गयी मुल्क मगर नहीं मिला
हिंदुस्तान ही निकल गया हिंदुस्तान से
न भेड़ बनो न भेड़िए न कुत्ते न सूअर
इंसान बनो और सीखो साथ के इंसान से।

2.

वाह, गिर गया घर, मुबारक-मुबारक!
हुकूमते बुलडोज़र मुबारक-मुबारक!
ईंट गिरी, दीवार गिरी, एक पूरी उम्र गिरी
और हंसते रहे बर्बर- मुबारक मुबारक!
ये बदहवास बीमार सा मुल्क का चेहरा
पसीने से तरबतर, मुबारक मुबारक!
न‌ मुल्क न मज़हब न इंसान की फ़िक्र
सत्ता के ये सौदागर मुबारक मुबारक!

3.

ऐसे तोड़ दोगे तुम घर किसी का?
क्या नहीं रहा तुम्हें डर किसी का?
वे कुछ कहें तो काट लोगे ज़ुबान?
उठाना भी गुनाह हुआ सर किसी का
जो चश्मदीद हैं इस नाइंसाफ़ी के
उन पर भी टूटेगा क़हर किसी का
सत्ता का ये कैसा गुमान है तुमको
तुम पे न चढ़े बुलडोज़र किसी का

4.

यहां भी दंगे वहां भी दंगे दोनों जगह मची चीख-पुकार
यहां भी गोली और वहां भी गोली हरकत में आयी सरकार
ये भी हॅंसे और वे भी हॅंसे कुछ ने तो बजा दी तालियां
बस इसी की थी कसर और कुछ ख़ून बहाने की दरकार
कुछ को गोरख याद आए कुछ को साहिर का ख़याल
खून की बारिश, फ़सल वोट की और उजड़ा सा दयार।

पेंटिंग : कौशलेश पांडेय

5.

हम यहां मस्जिद मांगेंगे, वे वहां मंदिर तोड़ेंगे
यहां भी‌ बेजा खून बहेगा, वहां भी वे सर फोड़ेंगे
दुनिया आगे बढ़ा करे, हम तो बस पीछे लौटेंगे
इतिहास की इस धारा को हम अब ऐसे ही मोड़ेंगे
ग़ालिब,‌ मीर, तुलसी, कबीर, बुद्ध और गांधी
कब तक हमसे बात करेंगे कब तक हम को जोड़ेंगे?

6.

पहले इस क़दर कभी न मिट्टी पलीद हुई
दुनिया हमारे उसूलों की हमेशा मुरीद हुई
अपनी इस बगिया में तो हर रंग के फूल हैं
यहां किस वजह से परायी होली और ईद हुई
आवाज़ें जोड़ती रहीं हमें और नज़्में पुकारती
यहां बेगम अख़्तर तो वहां किश्वर नाहीद हुई।

7.

मुबारक-मुबारक जीत गए आप
आपके ही मंत्र आपका ही जाप
बाकी सारे निशान मिटा देंगे हम
हर तरफ़ रहेगी आपकी ही छाप
जैसे भी चाहें आप चलाएं ये मुल्क
मानो छोड़ गए हों आपके लिए बाप
हर कोई पहने आपकी दी पोशाक
न अलग रंग हो और ना ही अलग नाप
मगर कब तक चलेगा आपका जादू
कोई हाय लगेगी, लगेगा कोई शाप।

8.

तुम्हारे दुख, तुम्हारी परेशानी एक तरफ़
उनकी मर्ज़ी, उनकी सुल्तानी एक तरफ़
अमीरों के महल और मंदिर हैं एक तरफ़
तुम्हारे छिनते खेत की कहानी एक तरफ़
तुम्हारी नागरिकता का हक़ तो एक तरफ़
वोट के लिए उनकी मेहरबानी एक तरफ़
मुल्क की बेहतरी का ख़याल एक तरफ़
उनकी हवाई‌ बातें आसमानी एक तरफ़।

9.

लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा पढ़ो
यों धर्म को किसी अधर्म की तरह गढ़ो
नफ़रत के लिए रोज़ खोजो नए बहाने
और नक़ली दुखों का दोष दूसरों पर मढ़ो
अब भी ये लोग तुम्हें रोकते-टोकते हैं?
मूंग दलो, सीधे उनके सीनों पर चढ़ो
इस मुल्क में इंसान कुछ ज़्यादा हो गए
मारो-काटो उनको, चुपचाप आगे बढ़ो।

10.

अपने तो बस मीर-ग़ालिब
फ़ैज़, कबीर, हबीब जालिब
नफ़रत अपना उसूल नहीं
हम‌ मोहब्बत के हैं तालिब
चाहे जितनी भी कड़वी हो
बात कहें जो हो‌ वाजिब
नहीं चाहिए मंदिर-मस्जिद
रखो अपनी अयोध्या साहिब
लिखते-लिखते उमर हो‌ गई
हिंसा लिखूं तो कांपे निब
वहां खड़े सौदागर सारे
मैं क्यों जाऊं उस जानिब।

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