26 जुलाई। नई दिल्ली में जंतर- मंतर पर आंगनवाड़ी कर्मियों ने चार दिवसीय आंगनवाड़ी अधिकार महापडा़व शुरू कर दिया है। देश के विभिन्न राज्यों केरल, कर्नाटक, जम्मू- कश्मीर, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश कई अन्य राज्यों आई आंगनवाड़ी महिला कर्मियों ने इसमें अपना योगदान दिया।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं को श्रमिक के रूप में मान्यता, न्यूनतम वेतन का अधिकार, पेंशन, सामाजिक सुरक्षा और ट्रेड यूनियन अधिकार जैसी कई मांगों को लेकर प्रदर्शन शुरू किया है। अखिल भारतीय आंगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स फेडरेशन और CITU के बैनर तले इस प्रदर्शन का आवाहन किया गया है।
आंगनवाड़ी अधिकार महापड़ाव की जानकारी देते हुए सीटू नेता गंगेश्वर दत्त शर्मा ने बताया कि अपने अधिकारों को हासिल करने के लिए देश के कोने-कोने से आंगनवाड़ी कर्मियों ने आज से जंतर-मंतर पर महापड़ाव शुरू किया है जो 29 जुलाई तक चलेगा।
उन्होंने कहा कि कुपोषण को मिटाने के लिए जिन आंगनवाड़ी कर्मियों से पूरा काम सरकारें लेती हैं लेकिन उन्हें न्यूनतम वेतन तक नहीं देती हैं। वेतन के नाम पर कुछ मानदेय दिया जाता है जो नाकाफी है।
“आंगनवाड़ी कर्मी खुद कुपोषण की शिकार”
गंगेश्वर का कहना है कि सरकार की गलत नीतियों के कारण आंगनवाड़ी कार्यकर्ता खुद कुपोषण की शिकार हैं और इस नाइंसाफी के खिलाफ अगर वे आवाज उठाती हैं तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाता है जिसका ताजा उदाहरण हरियाणा और दिल्ली में देखने को मिला है। उन्होंने कहा कि शोषण के खत्म होने तक और आंगनवाड़ी कर्मियों को कर्मचारी का दर्जा मिलने तक सीटू का संघर्ष जारी रहेगा।
महापड़ाव को सम्बोधित करते हुए सीटू के राष्ट्रीय महासचिव कामरेड तपन सेन, सीटू दिल्ली एनसीआर राज्य अध्यक्ष वीरेंद्र गौड़, महासचिव अनुराग सक्सेना, आंगनवाड़ी कर्मियों की राष्ट्रीय नेता ए आर सिंधु सहित कई वरिष्ठ नेताओं ने संबोधित करते हुए केंद्र व प्रदेश सरकारों की श्रमिक विरोधी नीतियों को रेखांकित किया।
दिल्ली की 800 बर्खास्त आंगनबाड़ी कर्मियों के समर्थन में आईं प्रियंका गांधी ने ट्वीट करके आंगनवाड़ी कर्मियों के इस कदम की सराहना की है।
वहीं दूसरी तरफ दिल्ली स्टेट आंगनवाड़ी वर्कर्स एण्ड हेल्पर्स यूनियन का कहना है कि “कांग्रेस आंगनवाड़ी कर्मियों की कितनी हिमायती है, ये उन राज्यों के हालात देख कर पता चल जाता है जहाँ सत्ता में कांग्रेस बैठी है। 2019 की एक खबर के अनुसार कांग्रेस शासित राजस्थान में बढ़ोतरी के उपरान्त आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को ₹ 7000 व सहायिका को मात्र ₹ 4000 मानदेय मिलता है।”
“कांग्रेस को सम्मानजनक मानदेय की मांग से इतनी ही हमदर्दी है तो उन राज्यों में स्कीम वर्करों के मानदेय बढ़ाकर ₹ 25,000 व ₹ 20,000 करने में विलम्ब क्यों कर रही है जहां सरकार इनकी है! अव्वल तो समेकित बाल विकास परियोजना की शुरुआत ही 1975 में कांग्रेस के शासन में हुई थी।”
“कांग्रेस ने योजनाबद्ध तरीके से इस परियोजना में महिलाकर्मियों को “सशक्त” करने के नाम पर उनके श्रम की लूट का उपाय निकाला था। जो देश आज भी विश्व भूख सूचकांक में 116 देशों की सूची में 110वें स्थान पर है वहां समेकित बाल विकास परियोजना की आवश्यकता सहज ही समझ आ जाती है।”
“ऐसे में इस स्कीम में जमीनी स्तर पर कार्यरत आंगनवाड़ी कर्मियों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा न देकर उन्हें स्वयं सेविका की उपाधि से नवाज कर पल्ला झाड़ लेनेवाली कांग्रेस आज किस मुंह से दिल्ली सरकार पर उंगली उठा रही है?”
(workers unity.com से साभार)
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