25 अक्टूबर। केंद्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में महिला मजदूरों को काम मिलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार जागरूकता की कमी और उलझी हुई आवेदन प्रक्रिया के कारण ग्रामीण मजदूर महिलाएं मनरेगा में आवेदन ही नहीं करना चाहती हैं। रिपोर्ट में पाया गया है, कि मनरेगा में काम करने के लिए महिलाओं को नामांकन के लिए संघर्ष करना पड़ता है। साथ ही पाया गया है, कि मनरेगा में नामांकन करना एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया है।
“भारत के 5 राज्यों में मनरेगा पर एक नजर” शीर्षक वाली एक रिपोर्ट डालबर्ग एसोसिएट्स (एक सामाजिक प्रभाव सलाहकार समूह) द्वारा जारी की गई थी। रिपोर्ट उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, राजस्थान और आंध्र प्रदेश के आँकड़ों पर आधारित है। प्रबंधन सूचना प्रणाली पोर्टल के अनुसार, 2022 में मनरेगा योजना के तहत काम पाने वाले लगभग 50 फीसदी लाभार्थी महिलाएं हैं। डाउन टू अर्थ से मिली जानकारी के मुताबिक सर्वे में पाया गया है, कि करीब 26 फीसदी महिलाएं ही मनरेगा में काम चाहती थीं। लेकिन जटिल आवेदन प्रक्रिया होने के कारण उन्होंने कुछ और काम तलाश लिये। यह संख्या चौंका देने वाली 42 लाख है।
काम की तलाश करने वाले लोगों के लिए उपलब्ध काम की कमी एक और बड़ी बाधा है। लगभग 28 फीसदी या 15 लाख महिलाओं ने काम के लिए आवेदन करने की कोशिश की है। रिपोर्ट के अनुसार जो महिलाएं मनरेगा में काम करना चाहती थीं, उनमें से केवल 6 फीसदी महिलाओं के पास ही जॉब कार्ड्स थे। इसके अलावा, महिलाओं को काम की तलाश में फील्ड स्टाफ द्वारा भेदभाव का सामना करने की की घटनाएं सामने आयी हैं। अध्ययन में पाया गया है, कि मनरेगा COVID-19 महामारी के दौरान शहरों से पलायन करने वाले मजदूरों के जीवनयापन में बहुत मददगार साबित हुआ। लेकिन अब बिना जॉब कार्ड वाले लगभग 29 फीसदी मजदूरों ने कहा है, कि उन्हें काम की जरूरत है।
वहीं लगभग 70 फीसदी सक्रिय जॉब कार्ड धारकों का कहना है, कि उनको केवल एक बार ही काम मिला है, और 18 फीसदी ऐसे मजदूर हैं, जिनका कहना है, कि काम के दौरान होनेवाले भेदभाव के कारण उन्होंने आवेदन ही नहीं किया। सर्वे में पाया गया है कि 100 दिनों का रोजगार देने वाली मनरेगा में मजदूरों को मात्र 66 दिनों का ही रोजगार मिलता है। जिसमें से केवल 95 फीसदी जॉब कार्ड धारकों को ही मजदूरी मिली। और उनमें से भी केवल 37 फीसदी मजदूर ऐसे हैं जिनको मजदूरी मिली है। जारी रिपोर्ट के अनुसार सभी राज्यों में काम की कमी देखने को मिली है।
(‘वर्कर्स यूनिटी’ से साभार)