झारखंड जनाधिकार महासभा ने की मानवाधिकार हनन के विरुद्ध कार्रवाई की मांग

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प्रतिवेदन के वक्त का फोटो .

16 जनवरी. झारखंड जनाधिकार महासभा के प्रतिनिधिमण्डल ने सोमवार को राज्य के गृहसचिव सह मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव राजीव अरुण एक्का से मुलाकात करके राज्य में आदिवासियों-वंचितों के मानवाधिकारों के लगातार हनन के विरुद्ध कार्रवाई की मांग की और ज्ञापन सौंपा. सचिव ने कार्रवाई का आश्वासन दिया.

महासभा ने सचिव को वर्तमान में आदिवासियों -मूलवासियों-वंचितों के विरुद्ध विभिन्न तरीकों से पुलिसिया व सुरक्षा बलों द्वारा किए जा रहे दमन के मामलों से अवगत कराया. पश्चिमी सिंहभूम, लातेहार समेत अन्य कई ज़िलों में नक्सल विरोधी अभियान की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा आदिवासियों पर व्यापक हिंसा हो रही है. हिरासत में भी हिंसा के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. हिंसा के विरुद्ध प्राथमिकी तक दर्ज नहीं की जाती. अधिकांश मामलों में न तो पीड़ितों को मुआवज़ा मिला है और न ही दोषियों पर कार्रवाई हुई है. केवल संदेह के आधार पर या माओवादियों को महज़ खाना खिलाने की बिना पर निर्दोष आदिवासियों -वंचितों को माओवादी हिंसा के मामलों में फ़र्ज़ी रूप से आरोपित किया जा रहा है.

बिना ग्राम सभा की सहमति व बिना लोगों से चर्चा किए गांवों में सुरक्षा बलों के कैंप को जबरन स्थापित किया जा रहा है. इससे गावों में और खासकर ग्रामीण आदिवासियों में डर का माहौल है एवं गाँव-समाज में विभाजन भी हो रहा है. पुलिस के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वर्षों में पुरे राज्य में 44 कैम्पों की स्थापना की गयी जिसमें 22 तो 2022 में स्थापित किए गए. प्रतिनधिमंडल ने कहा कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र जैसे पश्चिमी सिंहभूम में स्थापित किए गए कैंप की स्थापना सम्बंधित दस्तावेजों जैसे ग्राम सभा सहमति पत्र, वन विभाग NOC आदि को सरकार सार्वजानिक करे.

प्रतिनिधिमंडल ने गृह सचिव को कई ख़ास (अनुलग्नक 1) की विस्तृत जानकारी दिया जैसे – 1)चिरियाबेड़ा (पश्चिमी सिंहभूम) के आदिवासियों की CRPF द्वारा पिटाई व महिला के साथ छेड़खानी, 2) अक्टूबर-नवम्बर में लातेहार में टाना भगतों व अन्य आदिवासियों के विरुद्ध पुलिसिया दमन व फ़र्ज़ी मामले, 3) बरवाडीह (लातेहार) के आदिवासी अनिल सिंह पर हिरासत में हिंसा, 4) गोमिया (बोकारो) में आदिवासी-वंचितों पर माओवाद व अन्य आरोपों एवं UAPA की धाराओं अंतर्गत फ़र्ज़ी मामले, 5) पिरी (लातेहार) के ब्रम्हदेव सिंह की सुरक्षा बलों के द्वारा हत्या के 1.5 साल बाद भी दोषियों पर कार्रवाई लंबित आदि. प्रतिनिधिमंडल ने सचिव से निम्नलिखित मांग की है:

• सूची के सभी मामलों में उचित कार्यवाई कर पीड़ितों को न्याय और मुआवज़ा व दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई सुनिश्चित की जाए. सरकार सुनिश्चित करे कि पुलिस व सुरक्षा बलों की हिंसा के पीड़ितों द्वारा दोषियों पर प्राथमिकी दर्ज कराने में किसी प्रकार की परेशानी न हो.

• नक्सल विरोधी अभियानों की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा लोगों को परेशान न किया जाए. केवल संदेह के आधार पर या केवल माओवादियों को महज़ खाना खिलाने के लिए निर्दोष आदिवासी-वंचितों को माओवादी घटनाओं के मामलों में न जोड़ा जाए. लोगों पर फ़र्ज़ी आरोपों पर मामला दर्ज करना पूरी तरह से बंद हो.

• पांचवी अनुसूची क्षेत्र में किसी भी गाँव ककी सीमा में सर्च अभियान चलाने से पहले एवं कैंप स्थापित करने से पहले ग्राम सभा व पारंपरिक ग्राम प्रधानों की सहमति ली जाए. बिना ग्राम सभा की सहमति के लगाए गए सुरक्षा बलों के कैंप को हटाया जाए. स्थानीय पुलिस और सुरक्षा बलों को आदिवासी भाषा, रीति-रिवाज, संस्कृति और उनके जीवन-मूल्यों के बारे में प्रशिक्षित किया जाए और संवेदनशील बनाया जाए.

• राज्य में UAPA व राजद्रोह धारा के इस्तेमाल पर पूर्ण रोक लगे.

• सभी पत्थलगड़ी प्राथमिकियों में क्लोजर रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें बंद किया जाए. टाना भगत के विरुद्ध मामलों को वापिस लिया जाए.

• हिरासत में मौत के मामलों में दोषी पुलिस अधिकारियों पर न्यायसंगत कार्रवाई की जाए, लंबित मामलों में चार्जशीट दाखिल कर जांच पूरी की जाए एवं सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप प्रत्येक थाने में सीसीटीवी कैमरा लगाया जाए.

• अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हाल के धार्मिक उन्माद व हिंसा के लिए ज़िम्मेवार दोषियों पर कार्रवाई हो, इन्हें न रोकने के दोषी पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कार्रवाई हो, हिंसा में मारे गए मृतक के परिवार को मुआवज़ा मिले. साथ ही, यह सुनिश्चित किया जाए कि स्थानीय पुलिस संवैधानिक मूल्यों व कानून का पूर्ण पालन करते हुए किसी भी प्रकार के धार्मिक उन्माद और हिंसा के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करे तथा सरकारी वकील द्वारा पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए निष्पक्ष रूप से कार्य किया जाए.

• निर्जीव पड़े हुए राज्य मानवाधिकार आयोग और महिला आयोग को पुनर्जीवित किया जाए और इस आयोग की कार्यप्रणाली जनता के लिए सुलभ हो. महिलाओं के लिए एक सिंगल विण्डो शिकायत निवारण प्रणाली बनाई जाए जिससे महिलाएँ किसी भी प्रकार के शोषण की स्थिति में न्यूनतम दस्तावेजों के साथ शिकायत दर्ज करा सकें.

प्रतिनिधिमंडल में अलोका कुजूर, अनिल सिंह, एलिना होरो, लालमोहन सिंह, पी एम टोनी व सिराज शामिल थे.

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