— डॉ सुरेश खैरनार —
चार दिन पहले, 28 फरवरी को, 87 साल की जकिया जाफरी के इक्कीस साल के बाद अहमदाबाद शहर के मध्यवर्ती इलाके चमनपुरा में गुलबर्ग सोसायटी में जाने की खबर इंडियन एक्सप्रेस में छपी है, जिस सोसायटी में उनका घर था.
28 फरवरी 2002 की सुबह 7-30 से अपराह्न के 4-30 तक, अहमदाबाद शहर के मध्यवर्ती इलाके चमनपुरा मोहल्ले को बीस से पच्चीस हजार की संख्या में दंगाइयों ने घेर रखा था. इस बात की एफआईआर मेघानी नगर पुलिस स्टेशन में वरिष्ठ इंस्पेक्टर श्री. जी. इरडा ने दर्ज कराई थी. लेकिन दंगाइयों के द्वारा लगातार सुबह से ही तोड़-फोड़ और आगजनी की घटनाओं को अंजाम देना जारी था. इसी दौरान अहमदाबाद शहर के पुलिस कमिश्नर श्री पी.सी. पांडे सुबह के 10-30 बजे गुलबर्ग सोसायटी के रहवासी और पूर्व सांसद श्री एहसान जाफरी से मिलकर गए थे, और उन्हें उनकी सुरक्षा के बारे में आश्वस्त किया था. गुलबर्ग सोसायटी के भीतर, अगल-बगल के लोगों ने भी, अपनी जान बचाने के लिए पनाह ली हुई थी.
इधर सुबह 10-30 बजे कमिश्नर सी.पी. पांडे तथा कांग्रेस के 19 नंबर वॉर्ड के महामंत्री अंबालाल नाडिया और 20 नंबर वॉर्ड के कन्नूलाल सोलंकी के साथ में, एहसान जाफरी को मिलकर, आश्वासन देकर गए कि “आपकी सुरक्षा के लिए पूरा प्रबंध कर दिया है” और उधर 10-35 बजे उस इलाके की झहीर बेकरी और एक ऑटोरिक्शा को आग लगा दी गई ! 11.15 से 11.30 के बीच में गुलबर्ग सोसायटी पर पत्थर फेंकना शुरू हुआ ! 12.15 से 12.45 के दौरान पड़ोसी गैरमुस्लिम की छत पर से बडे़-बडे़ पत्थर फेंके जाते रहे.
और सवा बजे के आसपास पत्थरों के साथ एसिड बल्ब और कपड़े के आग लगे हुए बॉल भी गुलबर्ग सोसायटी पर फेंके जाने लगे ! उसी गड़बड़ी में, किसी युसूफ को पकड़कर जला दिया. ढाई से पौने तीन के बीच! ‘घुसी जाओ’ के चिल्लाने के साथ ! गुलबर्ग सोसायटी के रेलवे लाइन की तरफ वाले गेट से लोगों के घुसने की शुरुआत हुई, और किसी अनवर को बगल के संसार बेकरी से उठा लाकर उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके जला दिया!
साढे़ तीन बजे के आसपास, गुलबर्ग सोसायटी के भीतर से, एहसान जाफरी को पकड़कर बाहर लाकर, नग्न करने के बाद उन्हें बुरी तरह से पीटा जा रहा था ! और उनका जुलूस निकाला गया ! दंगाई उन्हें ‘वंदे मातरम’ और ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाने के लिए कह रहे थे ! यह सब 45 मिनट तक चला ! पहले उनकी उंगलियों को काटा गया ! फिर हाथ और पांव काटे जाने के बाद, किसी मरे हुए जानवर की तरह, उनकी गर्दन काटकर उसे आग में डाला गया ! उनके साथ उनके तीन भाई और दो भतीजे, और एक मुन्नवर शेख नाम के आश्रय लेने आए हुए लोगों में से एक आदमी को भी उसी तरह टुकड़े-टुकड़े करके आग में डाला गया ! 3-30 से 4-30 के दौरान 10-12 औरतों के साथ बलात्कार करने के बाद उनके भी शरीरों को काटकर आग में डाल दिया गया ! साढे़ चार, पॉंच बजे के आसपास पुलिस आई, और पत्थरबाजी के बीच में से कुछ लोगों को बचाने के प्रयास सात बजे तक करती रही
इस घटना की जघन्यता से अगर किसी तथाकथित हिंदुत्ववादी को गर्व महसूस हो रहा होगा, या किसी की चौवालीस इंची छाती फूलकर छप्पन इंची होती है तो ऐसे व्यक्ति को मैं परपीड़ा से खुश होने वाले विकृत या मनोरुग्ण के अलावा और कुछ नहीं कहना चाहूंगा ! और हिंदुत्व की राजनीति के इर्द-गिर्द हमारे देश की राजनीति, और वह भी देश की आजादी के पचहत्तर साल के दौरान ! और आगे के पच्चीस साल के सफर को अमृत काल बोला जाता है !
मुझे तो यह अमृत काल की जगह विष काल नजर आ रहा है ! क्योंकि रोजमर्रा के सवाल हल करने की जगह हमारे देश की राजनीति सिर्फ हिंदू-मुस्लिम के इर्द-गिर्द घूमती नजर आ रही है ! अन्यों में हाल ही में पंजाब में पुनः खालिस्तान के नारे लग रहे हैं ! तो हमें क्या नैतिक अधिकार है यह कहने का कि वे खालिस्तान के नारे नहीं लगाएं ! यह एक चेनरिएक्शन है ! और किसी भी धर्म की आड़ में राजनीति करनेवाले अन्य धर्मों के लोगों को यह कैसे कह सकते हैं कि धर्म के आधार पर राजनीति मत करो. इसलिए हमारे संविधान निर्माताओं ने धर्म को व्यक्तिगत जीवन में, घर की चारदिवारों के भीतर ही रखकर ठीक ही किया ! अगर आप धर्म को सड़क पर लाकर उसी के आधार पर राजनीति करोगे तो अन्य धर्मों के लोगों को किस मुॅंह से रोकने की कोशिश करोगे ?
दस से बारह गैस सिलेंडर गुलबर्ग सोसायटी को जलाने के लिए इस्तेमाल किए गए ! यह हर किसी ने अपनी आंखों से देखा था ! पुलिस कमिश्नर सी.पी. पांडे भले सुबह के साढे़ दस बजे गुलबर्ग सोसायटी में एहसान जाफरी को मिलकर आश्वासन देकर गए थे कि “मैं सुरक्षा की गारंटी देता हूँ !” वह इस घटना के बाद कहते हैं कि “क्या करें हमारे पास पर्याप्त पुलिस फोर्स था नहीं !” जहाँ आठ-दस घंटे तक लोग अपने जीवन को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हों और पुलिस को अच्छी तरह मालूम है कि वहां पपर भीड़ ज्यादा है, तो क्यों अतिरिक्त पुलिस बल तैनात नहीं किया गया? या किसी ऊपर के स्तर से गुलबर्ग सोसायटी की घटना को होने देने का इशारा था? यह प्रदेश की राजधानी अहमदाबाद के मध्यवर्ती इलाके चमनपुरा मोहल्ले की घटना है, किसी सुदूर गांव-देहांत की नहीं !
एहसान जाफरी कांग्रेस के पूर्व सांसद थे और कमिश्नर से लेकर मुख्यमंत्री तक उन्होंने फरियाद की. कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी एहसान जाफरी की और उनकी सोसायटी में सुरक्षा के लिए पनाह लिये हुए सत्तर से अधिक लोगों को बचाने के लिए पुलिस-प्रशासन और मुख्यतः गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन करके विशेष रूप से विनती की थो ! इसके बावजूद 70 से अधिक लोग, जिनमें पुरुषों के अलावा महिलाएँ और बच्चे भी थे, टुकड़े – टुकड़े करके आग में डाल दिए गए!
सुबह के साढे़ सात बजे से रात के पौने नौ बजे तक अहमदाबाद शहर के बीचोबीच में यह सब चलता रहा. पूर्व सांसद से लेकर छोटे-छोटे बच्चे तक आग के हवाले कर दिए गए. दस से बारह महिलाओं के साथ बलात्कार करके उन्हें भी टुकड़े-टुकड़े करके जला दिया गया.
मतलब बारह घंटे से अधिक समय तक 20-25 हजार के बीच की संख्या दंगाइयों की ! जिन्हें सुबह साढ़े दस बजे के आसपास अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर सी.पी. पांडे खुद अपनी आंखों से देखकर गए थे. उसके बाद सात-आठ घंटे तक के बीच के समय में पांडे या उनके पुलिसकर्मियों की तैनाती करने के आश्वासन के बाद भी अगर इतनी जघन्य घटना हुई तो इसे सिर्फ चंद दंगाइयों के द्वारा किया गया कांड नहीं कहा जा सकता. यह पुलिस-प्रशासन की ओर से जानबूझ कर होने दी गयी घटना थी ! नानावटी कमीशन से लेकर एसआईटी तथा हाल ही में हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने निराश किया है. आरबी श्रीकुमार जैसे जांबाज अफसर और तीस्ता सीतलवाड़ को, न्याय की लड़ाई लड़ने के एवज में जेल में बंद किया जाएगा, तो इस देश में कोई भी अत्याचार-पीड़ित अपने ऊपर हुए अत्याचार के लिए न्याय मॉंगने कहॉं जाएगा? यूएनओ?
27 फरवरी को सुबह, गोधरा कांड में 59 लोगों के एवज में , और कितने लोगों को जलाने से गोधरा का हिसाब पूरा होगा? नरेंद्र मोदी जी दोपहर को गोधरा जाने से पहले ही, दूरदर्शन पर मुस्लिम समुदाय और पाकिस्तान के षड्यंत्र की बात बोल चुके थे ! और पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि “इस घटना को अंजाम देने वाले को बक्शा नहीं जाएगा ! उसे ऐसा सबक सिखाया जाएगा कि वह जिंदगी भर कभी भी भूल नहीं सकता !”
मुख्य सचिव और गृहसचिव तथा पुलिस महानिदेशक के.चक्रवर्ती ने कहा कि “मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोधरा से वापसी के बाद सभी वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि सांप्रदायिक हिंसा के समय पुलिस-प्रशासन को समान रूप से दंगाइयों के साथ व्यवहार करना पड़ता है . लेकिन अब हिंदू-मुस्लिम के साथ एक जैसा नहीं होगा. हिंदुओं को अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए पूरी तरह खुली छूट देने होगी !” के. चक्रवर्ती ने कहा कि उस बैठक में अहमदाबाद के पुलिस कमिश्नर सी.पी. पांडे, अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) अशोक नारायण, कार्यवाहक मुख्य सचिव स्वर्णकांत वर्मा, मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव डॉ. पी.के. मिश्रा (जो फिलहाल प्रधानमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव हैं !) गृहसचिव के नित्यानंदम और खुद के. चक्रवर्ती उस बैठक में शामिल थे !
और उनमें से किसी ने भी मुख्यमंत्री की इस प्रकार की भेदभावपूर्ण बात का विरोध नहीं किया ! के. चक्रवर्ती ने कहा कि “मुख्यमंत्री के मौखिक आदेश के कारण और विशेष रूप से गोधरा कांड में 59 अधजले शवों को खुलेआम ट्रकों पर रखकर अहमदाबाद शहर में घुमाने ने आग में घी का काम किया ! उन शवों का अहमदाबाद शहर से कोई संबंध न होने के बावजूद, उन्हें विश्व हिंदू परिषद के कब्जे में देकर, जुलूस की शक्ल में निकालने के पीछे, भयंकर दंगे की शुरुआत करने के अलावा और क्या उद्देश्य हो सकता था?
लेकिन न ही जांच आयोग (जस्टिस नानावटी) ने और न ही एसआईटी के प्रमुख (डॉ. आर. के. राघवन ) ने और सबसे दुखद बात, न ही हमारे देश के सबसे बड़े न्यायालय ने इस बात का संज्ञान लिया ! और इसीलिए यह सवाल उठता है कि तथाकथित क्लीन चिट, सचमुच कितनी क्लीन है?
लेफ्टिनेंट जनरल जमीरुद्दीन शाह ने भी बताया है कि “28 फरवरी 2002 से अहमदाबाद के एअरपोर्ट पर साठ हवाई उड़ानों से, जोधपुर बेस से आए तीन हजार भारतीय सेना के जवानों को तीन दिनों तक एअरपोर्ट के बाहर नहीं आने दिया गया, क्या यह गुजरात की शांति-सद्भावना के लिए आवश्यक कदम था? और जाँच आयोग से लेकर एसआईटी को भी इस बात का संज्ञान लेने की जरूरत महसूस नहीं हुई?
आर. बी. श्रीकुमार ने कहा कि मुझे पहले ही लग रहा था कि “दोनों (जस्टिस नानावटी और डॉ. आर. के. राघवन) ने पहले ही मोदी को क्लीन चिट देने का निर्णय ले लिया है, और जांच-पड़ताल सिर्फ एक फॉरमैलिटी (औपचारिकता) के लिए कर रहे हैं.
और अंत में सर्वोच्च न्यायालय ने भी जकिया जाफरी के केस में फैसला देते हुए आर. बी. श्रीकुमार जैसे जांबाज पुलिस अफसर और तीस्ता सीतलवाड को जेल में बंद कर दिया ! भारत के न्यायिक इतिहास का यह सबसे हैरान कर देने वाला फैसला था! और इसी कारण दुनिया भर में हमारे देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं !
और सबसे अंतिम बात. आजकल नरेंद्र मोदी जी पसमांदा मुसलमानों को स्नेह करने की बात बोल रहे हैं ! यह अचानक मुसलमानों के प्रति स्नेह का झरना कहाँ से फूट रहा है? एक तरफ उग्र हिंदुत्ववादी मुसलमानों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं को लगातार अंजाम दे रहे हैं, कहीं लव जेहाद तो कहीं गाय के नाम पर मुसलमान को पीट-पीट कर मार डालने की घटनाएं होती हैं, और पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है. मोदी जी, क्या पसमांदा मुसलमानों के प्रति आपके स्नेह की व्याख्या यही है? तो आप अपना स्नेह अपने पास रखिए !