6 मार्च। पीयूसीएल महाराष्ट्र ने बीते 12 फरवरी को आईआईटी बॉम्बे के बी.टेक प्रथम वर्ष के दलित छात्र दर्शन सोलंकी की कथित आत्महत्या पर दुख व्यक्त करते हुए एक बयान जारी किया है। बयान में कहा गया है कि दर्शन ने अपनी बड़ी बहन और चाची को संस्थान में अपने साथ हुए भेदभाव के बारे में बताया था। 18 साल के इस युवा दलित छात्र को यह कठोर कदम उठाने के लिए किसने प्रेरित किया? यह घटना अंकित अंबोरे (2014 में IIT बॉम्बे में), डॉ. पायल तडवी (2019), रोहित वेमुला (2016) और सेंथिल कुमार (2008) या सैकड़ों अन्य लोगों से अलग नहीं है।
शिक्षा मंत्री द्वारा संसद में साझा किए गए आँकड़ों से पता चलता है कि उच्चशिक्षा संस्थानों में 2014 और 2021 के बीच के वर्षों में आत्महत्या से 122 छात्रों की मौत हुई है। आँकड़े यह भी बताते हैं कि छात्रों की मौतों का बड़ा हिस्सा सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों से है, जो संस्थागत जाति-भेदभाव को इंगित करता है, जो छात्रों को इस भयानक अंत तक ले जाता है। पिछले पाँच वर्षों में शीर्ष सात भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों(आईआईटी) में स्नातक छोड़ने वालों में से लगभग 63% आरक्षित श्रेणियों से हैं।
पीयूसीएल के बयान में कहा गया है कि 2014 में आईआईटी बॉम्बे के एक हाशिए के समुदाय के छात्र अनिकेत अंबोरे की आत्महत्या से मौत के बाद प्रोफेसर ए.के सुरेश की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्त की गई थी। समिति ने उपेक्षित समुदायों के छात्रों को सुविधाएं प्रदान करने के लिए सिफारिश प्रस्तुत की, जिसे संस्थान द्वारा स्वीकार कर लिया गया। पीयूसीएल संगठन के प्रतिनिधियों ने संस्थान के कुछ छात्रों से मुलाकात की। छात्र वॉलंटियर कई छात्रों को छात्रवृत्ति के मुद्दों में मदद करते हैं, क्योंकि हाशिए के समुदायों के अधिकांश छात्र भी आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं। इन वॉलंटियर और अन्य छात्रों ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के संयोजकों के साथ व्यापक चर्चा के बाद प्रकोष्ठ के लिए शासनादेश पर काम किया है और इसे जमा किया है।
(‘सबरंग इंडिया’ से साभार)