— विनोद कोचर —
सन् 1930, 12 मार्च. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक स्वर्णिम दिवस है। इस दिन महात्मा गांधी ने अपने कुछ चुने हुए सत्याग्रही साथियों के साथ, पदयात्रा करते हुए दांडी पहुंचकर, ब्रिटिश राज की टैक्स नीति के सर्वाधिक बर्बर नमक कानून को तोड़कर, ब्रिटिश साम्राज्य को ऐतिहासिक चुनौती दी थी। इस अनोखे अहिंसात्मक संघर्ष की पहली तोप, लाहौर में दिनांक 31 दिसंबर 1929 को पूर्ण स्वराज्य का सुप्रसिद्ध प्रस्ताव पारित करके दागी गई थी। 26जनवरी1930 को मनाया गया स्वाधीनता दिवस और भारतीय जनता द्वारा ली गई आजादी की शपथ, जिसमें जेफरसन द्वारा लिखे गए अमेरिका के सुप्रसिद्ध स्वातंत्र्य घोषणापत्र की गूंज थी, इस लड़ाई में दागी गई दूसरी तोप थी। और 2 मार्च 1930 को वॉयसराय लॉर्ड इरविन को ऐतिहासिक पत्र लिखकर गांधीजी ने इस लड़ाई की आखिरी तोप दागी थी। इस विस्तृत पत्र के कुछ प्रमुख अंश, वर्तमान भारतीय राजनीति के संदर्भ में आज भी पठनीय, और मननीय हैं :
# ‘दिन पर दिन बढ़ते जाते शोषण की प्रणाली और जानलेवा खर्चीली सैनिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था ने, जिसका भार ये देश कभी नहीं उठा सकता, यहाँ के करोड़ों बेजुबां हिंदुस्तानियों को निर्धन बना डाला है।’
#’जब तक राष्ट्र के नाम पर काम करने वाले लोग स्वराज्य की मांग के पीछे छिपे आशय को समझकर, जिनका स्वराज्य से कोई वास्ता है, उनके सामने वह आशय नहीं रखते, तब तक स्वराज्य के ऐसे बदले हुए रूप में हासिल होने का भय बना रहेगा जो उन करोड़ों मेहनतकश और बेजुबान हिंदुस्तानियों के लिए किसी मतलब का नहीं रहेगा जिनके लिए यह जरूरी भी है।’
#’ब्रिटिश प्रणाली भारत के मेहनतकश किसान-मजदूर की प्राणशक्ति को कुचलने के लिए ही बनी हुई मालूम पड़ती है। जिन्दा रहने के लिए उसे जिस नमक का इस्तेमाल करना पड़ता है उस पर तक इस तरीके से टैक्स लगाया गया है कि अधिकतम बोझ उसी पर पड़े। जब ये ख्याल आता है कि व्यक्तिगत और सामूहिक, दोनों ही रूप में, गरीब को अमीर की बजाय नमक का ज्यादा इस्तेमाल करना पड़ता है, तो ये टैक्स खुद ही बतलाता है कि गरीब पर ही इसका बोझ सबसे ज्यादा है।’
#’इन बुराइयों से निपटने का अगर आपको कोई रास्ता नहीं सूझता और मेरा ये पत्र अगर आपके हृदय को प्रभावित नहीं करता तो इस महीने की 11तारीख को, आश्रम के जितने साथियों को मैं साथ में ले सकता हूँ, उनके साथ, नमक कानून को तोड़ने के लिए मैं निकल पड़ूॅंगा.’