
— कुमार कृष्णन —
खनन के लिए यदि ‘पॉंचवीं अनुसूची’ के क्षेत्रों में जमीनें ली जाएंगी, तो सबसे पहले ग्रामसभा की मंजूरी जरूरी है, अन्यथा यह गैर-कानूनी हो जाएगा। संविधान की ‘पॉंचवीं अनुसूची’ और ‘छठी अनुसूची’ ने आदिवासियों को उन इलाकों की सारी भूमि का मालिक बनाया है। ‘संथाल परगना टेनेंसी एक्ट’ के अनुसार, इस इलाके की जमीन को न तो बेचा जा सकता है और न ही इसका हस्तांतरण किया जा सकता है, चाहे वह आदिवासियों की जमीन हो या गैर-आदिवासियों की, लेकिन विकास का मॉडल दूसरे की जमीन छीनकर ही बनता है।
झारखंड में ढेर सारी कोयला खदानें हैं, लेकिन वे आदिवासियों के लिए अभिशाप हैं। गोड्डा जिला में कोयला निकालने के लिए ‘राजमहल परियोजना’ के अंतर्गत ‘ईसीएल’ (ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) लगातार कई गाँवों को विस्थापित कर रही है। गोड्डा जिला के लालमटिया प्रखंड के कई गाँव देखते-ही-देखते नक्शे से गायब होकर विकास की भेंट चढ़ गए हैं। पहले कुछ गाँवों को लालच देकर और बाद में कई गाँवों को जबरदस्ती, दमन करके विस्थापित किया गया और खदान बनाकर कोयला निकाला गया।

बसडीहा, लोहंडिया, डकैटा, सहित कई गाँव आज हैं ही नहीं या फिर थोड़ा बहुत बचे हैं जो कुछ दिनों में खत्म हो जाएंगे। इसी क्रम में तालझारी गाँव भी है, जहाँ संथाल जनजाति के लोग बहुसंख्यक हैं। बेहद शांत और पहाड़ी के किनारे बसे इस गाँव में बहुफसली खेती होती है, लेकिन आज यह गाँव अपने अस्तित्व के लिए सरकारी तंत्र से लड़ रहा है। ऐसा नहीं है कि झारखंड के खतियानी लोगों का यह गाँव गैर-कानूनी तरीके से बसा है। सभी के पास जमीनों के दस्तावेज हैं जो कानूनन वैध भी हैं, लेकिन फिर भी इसे जबरदस्ती खनन के नाम पर विस्थापित करने के लिए गोड्डा का जिला प्रशासन हर हथकंडा अख्तियार कर रहा है।
पिछले दिनों जब ‘ईसीएल’ खनन का अपना क्षेत्र बढ़ा रही थी और तलझारी गाँव की सीमा के पास पहुँच गई थी, उसी समय संथाल समुदाय के हजारों आदिवासी अपने परंपरागत हथियारों के साथ वहाँ पहुँच गए और अपनी जमीनों पर जबरदस्ती खनन का विरोध किया। गाँववालों का कहना था कि हम ‘जान दे देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे।’
आदिवासी समाज के लोगों का कहना था कि ‘हमें मत उजाड़ो, हमारी जमीनें चली जाएंगी तो हम जीते जी मर जाएंगी। यहाँ खदान से कोई फायदा नहीं है, बल्कि यह हमारे पर्यावरण और प्रकृति का नुकसान कर रही है। इसके साथ-साथ आदिवासी संस्कृति और आजीविका भी संकट में है।’ इसके बावजूद प्रशासन ‘ईसीएल’ के लिए जबरदस्ती जमीन अधिग्रहीत करने की जोर-आजमाइश करता हुआ कंपनी के एजेंट के रूप में दीखा।

जब आदिवासी पुरुष थक गए तो आदिवासी महिलाओं ने मोर्चा सॅंभाला। सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों के बीच टकराव ने हिंसक रूप ले लिया। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए वाटर-कैनन और टीयर-गैस का इस्तेमाल किया गया। इस संघर्ष में महगामा के एसडीओपी सहित सुरक्षा बलों के पॉंच जवान और लगभग एक दर्जन ग्रामीण घायल हुए तथा एक दर्जन से ज्यादा ग्रामीणों को हिरासत में लिया गया। संघर्ष, तनाव और ग्रामीणों की नारेबाजी के बीच ‘ईसीएल’ के अफसरों ने तालझारी गॉंव में अधिग्रहित जमीन पर बुलडोजर और जेसीबी की मदद से सीमांकन और समतलीकरण शुरू करा दिया। इस क्षेत्र में कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है।
‘ईसीएल’ ने अपनी ‘राजमहल कोल परियोजना’ के विस्तार के लिए बीते पॉंच सालों में बोआरीजार प्रखंड के तालझारी गाँव की 125 एकड़ जमीन अधिग्रहित की है। वर्ष 2018 से ही वहाँ ‘ईसीएल’ की ओर से खदान विस्तार की प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन तालझारी के रैयतों सहित आसपास के गॉंवों ने कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि आदिवासी बहुल क्षेत्र में ‘पॉंचवीं अनुसूची’ के अनुसार कोई भी कार्य बिना ग्रामसभा की सहमति के शुरू नहीं किया जा सकता। सन् 2018 में तालझारी गाँव के ग्रामीणों ने ग्रामसभा के माध्यम से निश्चय किया था कि गाँव और गाँव की बाकी जमीनों को किसी भी हाल में कोयला खनन के लिए ‘ईसीएल’ को नहीं दिया जाएगा। फिर भी जबरदस्ती कई प्रयास किये गए कि जमीन हथिया ली जाए। लेकिन यह नहीं हो सका।
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