आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नए दौर में साइबर एनकाउंटर्स

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— कौशल किशोर —

पिछले साल भारत में लगभग बीस लाख साइबर क्राइम की रिपोर्ट दर्ज की जाती है। इसका मतलब औसतन पांच हजार से भी ज्यादा साइबर अपराध प्रतिदिन दर्ज किए गए थे। इसके अतिरिक्त भारत और अन्य देशों में रिपोर्ट नहीं किए गए साइबर अपराधों की लंबी फेहरिस्त है। यह बेहद गंभीर मामला है। वैश्विक स्तर पर ठगी का यह आकलन एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर सालाना हो चुका है। अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के प्रणेता और कंप्यूटिंग के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाले जेफ्री हिंटन को अपनी उपलब्धि पर पछतावा हो रहा है। एक दशक की लंबी सेवा के बाद हाल ही में वह गूगल की मातृ संस्थान अल्फाबेट इंक से इस्तीफा दे चुके हैं। इसके साथ ही एआई के लगातार बढ़ते जोखिम के बारे में खुलकर बात भी करने लगे हैं।

इस इस्तीफे से थोड़ा पहले पिछले महीने के तीसरे हफ्ते में आईआईटी दिल्ली के सभागार में लगातार बढ़ते साइबर क्राइम पर चर्चा हुई थी। वास्तव में ये चर्चा साइबर एनकाउंटर्स नामक किताब पर आधारित संवाद श्रृंखला का हिस्सा थी। यह पुस्तक आईआईटी दिल्ली के ही पूर्व छात्र और उत्तराखंड पुलिस के महानिदेशक अशोक कुमार और डीआरडीओ के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक ओमप्रकाश मनोचा ने मिलकर लिखी है। इस साहित्यिक कृति में साइबर अपराधियों के साथ पुलिस के कारनामों का विस्तार से वर्णन किया गया है। इसकी बारह कहानी उन ऑनलाइन अपराधों से संबंधित हैं, जिसे पुलिस द्वारा पिछले पंद्रह सालों में सफलतापूर्वक सुलझाया गया है। इसे पढ़कर अपराधियों की रणनीति और कार्यप्रणाली को समझने में मदद मिलती है। साथ ही पाठकों को साइबर अपराधों के मामलों में पीड़ितों की मानसिकता का भी पता चलता है।

साइबर अपराध की पड़ताल का मामला पुलिस की सामान्य कार्यप्रणाली से अलग है। यह मकड़ी के जाले की तरह जटिल है। इसे उजागर करना वाकई बहुत मुश्किल काम है। इसलिए इस श्रृंखला को अक्सर डार्क वेब कहा जाता है। इन कहानियों को पढ़कर पता चलता है निश्चय ही पुलिस के कुशल अधिकारियों ने उत्कृष्ट काम किया है। लेकिन अपराधों की लंबी फेहरिस्त के सामने यह ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित होता है।

उत्तराखंड पुलिस 2007 में पहले साइबर अपराध की गुत्थी सुलझाने का काम पूरा करती है। इस मामले में पीड़िता ने करीब 2 करोड़ रुपये मूल्य की ऑनलाइन ब्रिटिश लॉटरी जीतने की सूचना दी थी। उसने यह पुरस्कार राशि प्राप्त करने हेतु बीस लाख रुपये खर्च किये थे। लालच ने चोरी करने के लिए उसे उकसाया था। नब्बे के दशक के मध्य में नाइजीरिया और कैमरून जैसे अफ्रीकी देशों से ईमेल आधारित लॉटरी घोटाला शुरू हुआ। अब प्रतिदिन करोड़ों की संख्या में फर्जी ईमेल भेजा जाने लगा है। ऐसे अधिकांश मामलों में बिना किसी लॉटरी योजना में भाग लिये विजेता घोषित किया जाता है। ऐसे मामलों में धोखेबाजों की सफलता के लिए लालच और जल्दी अमीर बनने की इच्छा ही मुख्य वजह है। उत्तराखंड पुलिस इस मामले में उपलब्धि हासिल करती है।

महामारी के दौरान उत्तराखंड पुलिस पोंजी स्कीम से जुड़े संगीन मामले का पर्दाफाश करती है। पावरबैंक ऐप घोटाला साबित हुआ। इसमें उत्तराखंड पुलिस से गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक, दिल्ली और तेलंगाना जैसे अन्य राज्यों को 2700 करोड़ रुपये के घोटाले से जुड़े 350 केस का पर्दाफाश करने में मदद मिली। अपराधियों के इस नेटवर्क ने पीड़ितों को फॅंसाने हेतु आसान कर्ज और पैसा दोगुना करने की योजनाओं को बढ़ावा देने के वास्ते एक ऐप लॉन्च किया था। शेल कंपनियों की भागीदारी के साथ क्रिप्टो-करेंसी के आदान-प्रदान से ये चीनी खजाने को भरने का काम साबित हुआ है। भविष्य में राष्ट्रीय नुकसान की इस समस्या से निपटने की जरूरत खत्म नहीं हुई है।

अन्य मानवीय कमजोरी का दो मामलों से पता चलता है। हनी ट्रैप और सेक्सटॉर्शन के केस में पुलिस को सफलता मिली थी। इन मामलों में अपराधियों की सफलता में पीड़ित की कमजोरी ने भूमिका निभाई है। इसके अभाव में केवल तकनीकी के बूते सफलता की कोई संभावना नहीं रही। यह लालच के बाद दूसरी मानवीय कमजोरी है, जिसे साइबर अपराधी इस्तेमाल करते हैं।

पुलिस ने 2017 में एक एटीएम क्लोनिंग घोटाले का पर्दाफाश किया था। बैंकों को कार्ड की सुरक्षा को बेहतर बनाने में मदद मिली। चिप आधारित प्लास्टिक कार्ड शुरू किया गया। इसमें पीड़ित बिना कोई गलत काम किए नुकसान झेलते हैं। अदालत ने समय पर सूचना देने वालों को क्षतिपूर्ति का निर्देश दिया था। यहां एक और साइबर फ्रॉड का जिक्र है। बैंक कर्मियों के अपराध का इसमें पुलिस पर्दाफाश करती है।

यह जानकर यकीन नहीं होता कि सुरक्षा अधिकारी की विधवा ने 15,000 रुपये के कुत्ते के लिए 66 लाख रुपये का भुगतान किया था। साइबर अपराधी गंभीर आर्थिक अपराध के लिए कॉल सेंटर चला रहे थे। ऐसा ही दूसरा समूह नोएडा और देहरादून जैसे स्थानों से बुजुर्ग अमेरिकी नागरिकों को धोखा दे रहा था। ऐसे अपराधियों ने ही रैंसमवेयर और मैलवेयर जैसे नए शब्द को जन्म दिया। उत्तराखंड में तीर्थयात्रियों को धोखा देने का व्यापार पुराना है। अब कॉल सेंटर आधारित साइबर क्राइम भी होता है। पुलिस ने धोखाधड़ी के एक ऐसे मामले को सुलझाया, जिसमें तीर्थयात्रियों के समूह ने केदारनाथ जाने के लिए हेलीकॉप्टर की सवारी के लिए भुगतान किया था। उन्होंने झारखंड के जामताड़ा, हरियाणा के मेवात और राजस्थान के भरतपुर से संचालित हो रहे कॉल सेंटरों की श्रृंखला का पर्दाफाश किया है।

एआई के रूप में विकसित हुई तकनीक से अपराधियों को मदद मिलती है। आज ऐसे अपराधों की संख्या बेतहाशा बढ़ रही है। आधुनिक तकनीक की सभ्यता बढ़ती हुई समस्याओं को दूर करने का दावा करती। लेकिन इस प्रक्रिया में नए और अज्ञात भय की श्रंखला खड़ी करती। इससे पहले कि यह मानवता के मूल्यों का सफाया कर दे, विकास के इस नए मॉडल पर गंभीरता से विचार करना होगा।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के शीर्ष चैटबॉट चैटजीपीटी, बार्ड और बिंग इन दिनों चर्चा में हैं। 5जी के आगमन से इंटरनेट ऑफ थिंग्स में सुधार होगा। साइबर अपराधों का दायरा और बढ़ेगा। अपराधियों के हाथों में उपलब्ध आधुनिक टूल किट की तुलना में कानून अक्षम है। कानून लागू करने में लगी पुलिस के सामने मुश्किलों का पहाड़ खड़ा है। व्यवस्था में सुधार के बिना सरकार उस खतरे को दूर नहीं कर सकती है, जिसका सामना करने के लिए मानवता बाध्य है।

हाल में हिंटन ने कहा, “मैं अपने आप को सामान्य बहाने से सांत्वना देता हूं : अगर मैंने ऐसा नहीं किया होता, तो कोई और करता।” यही भाव अशोक और मनोचा की बात से प्रतिध्वनित होता है। उन्होंने 19वीं सदी के फ्रांसीसी लेखक और राजनीतिज्ञ विक्टर ह्यूगो का उल्लेख किया था, “जिस विचार का समय आ जाता है, उसे कोई भी ताकत रोक नहीं सकती है।” हालांकि इन तीनों विद्वानों के इरादे एआई और साइबर अपराधों के मामलों में स्थिति में सुधार पर केंद्रित हैं। लेकिन खुद को मिटाने में लगी मानवता को बचाने में कौन सक्षम होगा? निस्संदेह अगला युद्ध साइबर स्पेस में ही लड़ा जाएगा। दुनिया ऐसे युद्ध की तैयारी के लिए आज पुरजोर कोशिश कर रही है। 21वीं सदी के नेताओं को अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित सभ्यता के चंगुल से मानवता को बचाने का प्रयास करना चाहिए।

एक मौके पर आईआईटी ऑडिटोरियम में सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह ने इस संकट को दूर करने की कोशिश की थी। उस दिन उन्हें सेकुलर मीडिया और सोशल मीडिया के ट्रोल्स से डर लग रहा था। इसलिए बात चंद लोगों तक सीमित रह गयी। उन्होंने कहा था कि धर्म (शाश्वत नियम) की जगह धन (मुद्रा) ने ले ली है, ऐसी दशा में मानव सभ्यता को पिछले क्रम को बहाल करने की जरूरत है। तकनीकी के आधुनिक जमाने में उपकरणों के पुराने युग की ओर फिर से देखने की जरूरत है।

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