शंख घोष की कविता

0
शंख घोष (5 फरवरी 1932 – 21 अप्रैल 2021)

मेघ जैसा मनुष्य

गुजर जाता है सामने से मेरे वह मेघ जैसा मनुष्य

लगता है छू दें उसे तो झर पड़ेगा जल
गुजर जाता है सामने से मेरे वह मेघ जैसा मनुष्य
लगता है जा बैठें पास में उसके तो छाया उतर आएगी
वह देगा या लेगा? आश्रय है वह एक, या चाहता आश्रय?
गुजर जाता है सामने से मेरे वह मेघ जैसा मनुष्य
सम्भव है जाऊं यदि पास में उसके किसी दिन तो
मैं भी बन जाऊं एक मेघ।
अनुवाद और ड्राइंग : प्रयाग शुक्ल

Discover more from समता मार्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Comment