मध्यप्रदेश में बेरोजगारी के खिलाफ हल्लाबोल

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25 जून। भोपाल स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान में रविवार को आयोजित प्रेसवार्ता के माध्यम से मध्यप्रदेश में बेरोजगारी के खिलाफ ‘हल्ला बोल’ अभियान की घोषणा की गई।

‘युवा हल्ला बोल’ के राष्ट्रीय महासचिव प्रशांत कमल ने प्रेसवार्ता में कहा कि बेरोजगारी अब राष्ट्रीय आपदा का रूप ले चुकी है। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के 17 वर्षों के कार्यकाल में 6999 बेरोजगार आत्महत्या करने को मजबूर हुए। पिछले 5 वर्षों में लाखों युवा भर्ती परीक्षा का इंतजार करते करते नौकरी पाने की उम्र पार कर गए। लेकिन, दुर्भाग्य की बात है कि आज भी मध्यप्रदेश के राजनीतिक विमर्श में यह मुद्दा नहीं है। इसलिए युवाओं ने बेरोजगारी के खिलाफ हल्ला बोलने का निर्णय लिया है।

प्रेसवार्ता में शामिल युवा हल्ला बोल के केंद्रीय नेतृत्व से रजत यादव, प्रदेश अध्यक्ष अरुणोदय परमार, प्रदेश महासचिव दीप करण सिंह, आकाश विद्यार्थी, अमित प्रकाश सहित आंदोलन के अन्य नेताओं ने ‘युवाओं के नौ सवाल’ शीर्षक से एक पत्र जारी किया। पत्र में रोजगार से संबंधित नौ सवाल मुख्यमंत्री से पूछे गए हैं।

पत्र को जारी करते हुए युवा हल्ला बोल के राष्ट्रीय महासचिव रजत यादव ने कहा कि “बेरोजगारी के तमाम आंकड़े, एनसीआरबी के सुसाइड के आंकड़े के साथ-साथ प्रदेश में लगातार चल रहे युवा आंदोलनों से स्पष्ट होता है की मध्य प्रदेश में बेरोजगारी जीवन-मरण का सवाल बन गई है। लाखों सरकारी पद खाली होने के बावजूद सरकार ने इन्हें भरने की इच्छाशक्ति नहीं दिखाई जो सबित करता है रोज़गार देने में प्रदेश सरकार पूरी तरह विफल रही है।

प्रदेश अध्यक्ष अरुणोदय परमार ने कहा कि हमने मध्यप्रदेश में बेरोजगारी के खिलाफ “हल्ला बोल अभियान” का आरंभ बेरोजगारी को चुनावी विमर्श के केंद्र में लाने के संकल्प के साथ किया है। अभियान के पहले चरण में प्रदेश भर के युवा मुख्यमंत्री को 50 हजार पत्र भेजेंगे जिसमें युवाओं से जुड़े 9 सवाल पूछे गए हैं। प्रदेश महासचिव दीपकरण सिंह ने आगामी रणनीति साझा करते हुए बताया कि विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से रोजगार के मसले पर प्रदेश के युवाओं को लामबंद किया जाएगा।

युवा हल्लाबोल के अभियान के तहत जो 9 सवाल मुख्यमंत्री से पूछे जा रहे हैं वे इस प्रकार हैं –

1) आपने अपने कार्यकाल में कितने युवाओं को रोजगार दिया?

भाजपा ने 2018 विधानसभा चुनाव में अपने मेनिफेस्टो (दृष्टि पत्र) में प्रति वर्ष 10 लाख रोजगार देने का वादा किया था।

2) ओवरएज हुए युवाओं का गुनहगार कौन?

पिछले 5 वर्षो में प्रदेश के 1.96 लाख युवा ओवरएज हो गए। 6 साल से नहीं निकली सब इंस्पेक्टर भर्ती, कई उम्मीदवार हो रहे ओवरएज।

3) 2018 के बाद MPPSC की कोई भी भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हुई। इसका गुनहगार कौन?

मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग साल 2018 के बाद से अब तक किसी भी अधिकारी-कर्मचारी की भर्ती नहीं कर पाया है। 2019 से आयोग की राज्य सेवा भर्ती परीक्षाएं अटकी हुई हैं। प्रदेश में हर साल करीब साढे़ 3 से 4 लाख उम्मीदवार राज्य सेवा परीक्षा के लिए आवेदन करते हैं।

4) मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी होने के बावजूद चयनित शिक्षकों को नियुक्तियां क्यों नहीं दी जा रहीं?

14 दिसंबर 2022 को शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लिखित जवाब दिया। जिसके अनुसार मध्य प्रदेश के स्कूलों में शिक्षकों के 98,562 पद खाली पड़े हैं।

22 मार्च 2023 को एक सवाल के लिखित जवाब में शिक्षा राज्यमंत्री अन्नपूर्णा देवी ने बताया है कि मध्य प्रदेश के 17,085 स्कूल मात्र एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं।

5) मध्यप्रदेश में बदहाल शिक्षा व्यवस्था का गुनहगार कौन?

मध्यप्रदेश के 13 विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के 75 फीसदी पद खाली हैं।

एक शिक्षक के भरोसे चलने वाले स्कूल के मामले में मध्यप्रदेश देश में पहले स्थान पर है।

स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय के अनुसार –

मध्यप्रदेश के 1,770 स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग से टॉयलेट नहीं है।

एमपी के 33,623 यानी 36% स्कूलों में लाइब्रेरी नहीं है। जिन स्कूलों में लाइब्रेरी है इसका मतलब ये नहीं है कि उनमें किताबें भी हों। क्योंकि मध्यप्रदेश के 35,451 यानी 38% ऐसे स्कूल हैं जिनमें किताबों वाली लाइब्रेरी नहीं है। आंकड़ों से पता चलता है कि एमपी का हर तीसरा स्कूल बिना लाइब्रेरी के चल रहा है।

एमपी के 52,888 यानी 57% स्कूलों में बिजली नहीं है। एमपी के आधे से ज्यादा यानी हर दूसरा स्कूल बिना बिजली के चल रहा है। जिन स्कूलों में बत्तीगुल है उनमें बच्चों का “सुनहरा भविष्य” गढ़ा जा रहा है। 1,431 स्कूलों में पीने के पानी की सुविधा नहीं है। 35,882 यानी 39% स्कूलों में हाथ धोने की सुविधा नहीं है। 66,882 यानी 72% स्कूलों में मेडिकल सुविधा नहीं है।

6) सरकारी विभागों में रिक्त पड़े पद क्यों नहीं भरे जा सके?

1, अप्रैल 2020 से एमपी सरकार ने राज्य के 52 जिलों में इम्प्लॉयमेंट ऑफिस खोले। इसके लिए सरकार ने खर्च किए 16.74 करोड़ रुपये।

सरकार ने विधानसभा में बताया कि बीते तीन साल में कुल 21 लोगों को सरकारी नौकरी मिली है।

यानी शिवराज सरकार ये कहना चाह रही है कि तीन साल में करीब 17 करोड़ रुपये खर्च करके 21 लोगों को नौकरी मिली। मतलब एक शख्स को नौकरी दिलवाने में करीब 80 लाख रुपये खर्च हुए।

करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद विभागों में पड़े रिक्त पद सरकार नहीं भर पायी।

7) बेरोजगारी से प्रताड़ित युवा आत्महत्या करने पर मजबूर। इसका जिम्मेदार कौन?

एनसीआरबी के अनुसार, भाजपा सरकार के 17 वर्षों के कार्यकाल में 6999 बेरोजगारों ने आत्महत्या कर ली।

अब चुनाव के मुहाने पर सीखो-कमाओ योजना के माध्यम से पैसा देने की घोषणा करना युवाओं को गुमराह करने जैसा है।

8) पेपर लीक का दोषी कौन?

रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक हुई 15 परीक्षाओं में से 12 के पेपर ऑनलाइन लीक हो गए।

मध्यप्रदेश में 2023 के बोर्ड की परीक्षा छात्रों के लिए मजाक बन गई है। 10वीं-12वीं के पर्चे परीक्षा से 50 मिनट पहले लीक हो रहे हैं। लीक हुए पेपर 299 रुपये में ऑनलाइन बिक भी रहे हैं। राज्य में लगभग 20 लाख छात्र कक्षा 10 और 12 की बोर्ड परीक्षा देते हैं। कड़ी मेहनत करने वाले छात्रों को पेपर लीक की घटनाओं ने हतोत्साहित किया है।

MP NHM (2023) पेपर लीक स्‍टाफ नर्स 2284 पदों पर भर्ती के लिए 45,000 अभ्यर्थी परीक्षा में शामिल हुए थे। जब ग्वालियर में परीक्षा पेपर लीक हुआ तो पहली शिफ्ट के बाद परीक्षा रद्द कर दी गई।

9) मध्यप्रदेश में पलायन का गुनहगार कौन?

2022 में आई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दूसरे राज्यों में मध्यप्रदेश के 4 लाख मजदूर काम कर रहे, इनमें से आधे सिर्फ दिल्ली में।

खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के वन नेशन वन कार्ड के आंकड़ों से पता चला है कि करीब 4 लाख लोग और 79,282 गरीब परिवार मध्यप्रदेश छोड़कर दूसरे राज्यों में काम करने चले गए हैं। गौरवशाली इतिहास वाले हमारे प्रदेश को पलायन के कारण अपमान का घूंट पीना पड़ रहा है।

“हल्ला बोल अभियान” आने वाले विधानसभा चुनाव में इन 9 सवालों पर पूरे मध्यप्रदेश में विमर्श खड़ा करेगा और बेरोजगारी को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाएगा।

– अमित प्रकाश

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