हनुमान पुराण

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Hanuman

— विमल कुमार —

राम- हनुमान ! क्या आजकल तुम्हारे शहर में गीता प्रेस को लेकर कोई बहस चल रही है?
हनुमान- हां प्रभु! गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार मिल गया जिसकी राशि एक करोड़ रुपए की है। उस पुरस्कार के कारण ही गीता प्रेस को लेकर बहस छिड़ी हुई है।

राम- आखिर बहस का मुद्दा क्या है?
हनुमान -मुद्दा यह है रघुनंदन! वामपंथी बुद्धिजीवी और स्त्री विमर्शकार गीता प्रेस को पुरस्कार दिए जाने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि गीता प्रेस ने देश में सांप्रदायिकता और कट्टरता को फैलाने में भूमिका निभाई है। वह स्त्री विरोधी है। इसलिए इसे पुरस्कार नहीं दिया जाना चाहिए। कोई पत्रकार हैं अक्षय मुकुल उन्होंने गीता प्रेस पर एक किताब भी लिखी है।

राम- लेकिन गीता प्रेस से तो तुम्हारे ऊपर भी हनुमान चालीसा निकली है और मेरे ऊपर भी किताबें निकली हैं तो क्या हम लोग सांप्रदायिक हैं?
हनुमान- प्रभु ! कट्टर वामपंथियों को कौन समझाए कि हम लोग सांप्रदायिक नहीं हैं। “कल्याण” में गांधीजी, मदन मोहन मालवीय, प्रेमचन्द के भी लेख छपे लेकिन क्या हम लोग उनको साम्प्रदायिक मान लें।

राम- कांग्रेस तो खुद को सेकुलर कहती आयी है उसने पोद्दार साहब को भारत रत्न देने की पेशकश क्यों की। नवल किशोर प्रेस को क्यों नहीं दिया?
हनुमान- लेकिन प्रभु ! कल्याण में बहुत सारी बातें स्त्री विरोधी हैं। सीता मइया भी पसंद नहीं करेंगी।

राम- स्त्री विरोधी बातें तो कबीर, तुलसी, तिलक, गांधी, प्रेमचन्द सब में हैं। क्या सबको हम गाली दें। इसका जवाब तो हम यही दें कि नवल किशोर प्रेस को फिर से खड़ा करें।बिहार में खड्ग विलास प्रेस को बाधाएं। नवल किशोर प्रेस पर तो हिंदी में एक किताब तक नहीं। शुक्र हो शिवपूजन बाबू का कि उन्होंने उस प्रेस पर एक किताब निकलवाई।कितने बुद्धिजीवी जानते हैं।
हनुमान- आप ठीक कह रहे हैं लेकिन ये मानेंगे कि सरकार ने इस पुरस्कार के जरिए समाज का ध्रुवीकरण किया है।

मैं तो बचपन मे “नंदन” पढ़ता था या कॉमिक्स या बेताल, मुझे तो कल्याण बहुत ही बोर लगता था। इसलिए मैं कुछ कह नहीं सकता। प्रभु आप क्या पढ़ते थे। तेनालीराम चंदामामा या पराग।

राम- हनुमान! हम लोग भी अच्छी तरह समझते हैं। देश में धर्म का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है लेकिन हम लोग संसद में नहीं हैं न टीवी के एंकर हैं। आखिर अपनी बात कैसे पहुंचाएं। हमारा कोई आईटी सेल भी नहीं है। हम अपनी बात कैसे कहें।
हनमान- प्रभु आपका एक ट्वीटर अकाउंट खोल देता हूँ।एक पेज बना देता हूँ। एक ग्रुप और एक यूटुब चैनल भी।

राम- हाँ पवनसुत हम लोग इंस्टाग्राम पर भी आ जाएँ। तुम एक काम करो गीता प्रेस पर विवाद को लेकर किताब निकालो।
हनुमान- जी प्रभु! आपकी आज्ञा शिरोधार्य!!

माहौल बनाए और गीता प्रेस ने जाने अनजाने यह काम तो किया है और उसने 10000000 रुपए की उसकी राशि भी लौटा दी है। राम – हनुमान पता करो गीता शांति अहिंसा पुरस्कार हम लोगों को नहीं मिल सकता; मिल जाए तो हम लोगों का बुढ़ापा तो आराम से गुजरेगा। तुम तो जानते हो मुझे कोई पेंशन नहीं मिलती, आखिर मैं कब तक इस तरह जीवन गुजारता रहूंगा। हनुमान- आप ठीक कहते हैं महाराज, लेकिन क्या किया जाए आज का जमाना भी तो बदल गया, अब किसको जरूरत है हनुमान प्रसाद पोद्दार जी की।

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